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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ प्रमाणे सामायिक करते है पण इरियावहि प्रथम थकी पडिक्कमीने काउसग्ग करके लोगस्सका पाठ उच्चार करके पीछे मुहपत्ती पडिलेहके सामायिक संदिसाहु सामायिक ठाउ पाठ उच्चार करके सामायिकदंडक उच्चरते है । तपगच्छके तेरगच्छी १ अंचलगच्छी २ उक्केशगच्छी ३ सागरगच्छी ४ पायचंदगच्छी ५ कमलकलसगच्छी ६ चउदसीयागच्छी ७ कडुआमतीगच्छी ८ भ्रम्हामतीगच्छी ९ राजगच्छी १० बीजागच्छी ११ संडेरागच्छी १२ कतकपरागच्छी १३ फेर बहुत क्या कहे जो सर्व निन्हव दिगंबर हे सों भी इरियावहि पडिक्कमीने सामायिक करते हैं और महामिथ्यात्वी जिनप्रतिमाकी पूजाके द्वेषी वेष विडंबक लोक हे ओबी ईरियावहि पडिक्कमीने पछी सामायिक उच्चार करते हैं और खरतरगच्छवाले सर्व गच्छकी सामाचारीसें विरोधी और आवश्यकका पाठ माफिक पण नहीं आप मतसें कल्पित सामाचारी है सो समकितिकुं प्रमाण करनी नही एही शास्त्रका रहस्य है॥
यह उपर लिखा सर्व वृत्तांत जैसा श्री रुपविजयजी महाराजके दीये प्रश्नोत्तरमें लिखा हुआ है, तैसा हि हमने यहां भव्य जीवोंको मलूम करने वास्ते लिखा है।
(३८) तथा खरतरगच्छीय श्रीमदभयदेवसूरि विरचित सामाचारीकी परत जो के पाटणके फोफलीया वाडेके भंडारमें पुराणी परत है उस उपरसे लिखाइ गई है उसमें भी प्रथम इरियावहि पडिक्कमके पीछे सामायिक दंडकादि क्रिया कही है।
तथा च तत्पाठः ॥ "अंगीकृतसामायिकेन चोभयसंध्यं सामायिकं ग्राह्यं तस्यचार्यविधिः ॥ पोसहसालाए साहुसमीवे गिहेगदेसे वा इरियावहियं पडिक्कमियं खमासमणपुव्वं मुहपत्ति पडिलेहिय पढम खमासमणं सामाइयं संदिसावेमि बीय खमासमणे सामाइए ठामित्ति भणिउण अद्धावणओ नमोक्कारपुव्वं करेमिभंते सामाइयं इच्चाइ दंडगं भणिउण खमासमण दुगेण सज्झायं च
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