Book Title: Chaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Nareshbhai Navsariwala Mumbai

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Page 333
________________ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ तो श्रीधनविजयजीका यह लेख धूर्तता छल दंभता रुप है। क्योंकि, चौथी थुइसहित त्रण थुइ ऐसा लेख पूर्वोक्त ११ ग्रंथोमें नहीं है। इसने अपनी मति कल्पनासें लिखा है, इस लेखसे इसकी कुछभी सिद्धि नही होती है। और इसने जो पूजादि विशिष्ट कारणे लिखा है, तिसमें जो आदि शब्द इसने लिखे है, तिस आदि शब्दसें जिनभुवन बिना अन्यस्थान प्रतिक्रमणादिमें भी पूर्वोक्त चार थुइकी चैत्यवंदना सिद्ध होती है । इस पोथीमें जो झूठ लिखा है, उसके सबबसे क्या जाने इस बिचारेकी क्या दुर्दशा होवेगी? (४१) पृष्ट ४६४ में जो इसने चैत्यवंदन नव प्रकारे लिखके यंत्र लिखा है, सो महा मिथ्यात्वके उदयसें लिखा है । क्योंकि, इसने यह यंत्र चतुर्थस्तुतिनिर्णयके यंत्रकी नकल करी है, परंतु संघाचारभाष्य वृत्ति १ लघुचैत्यवंदन भाष्य वृत्ति २ प्रवचनसारोद्धार बृहद्वृत्तिमें ऐसा यंत्र नही है, और न ऐसे यंत्र बनानेकी विधिकी गाथा है। और जो मैने नव प्रकारना यंत्र लिखा है, सो श्री राधनपुरके भंडारमें जो पुस्तक धर्मसंग्रहका है, तिसके यंत्रसे लिखा है। तिस वास्ते हे भव्य जीवो ! श्रीधनविजयजीने जो जो पुस्तक नवीन लिखवाइ है, तिनमें प्रायः करके स्वकपोल कल्पनासे अनेक पाठार्थ प्रक्षेप करवाए है। ऐसा हमने श्रावक लोकादिकोके मुखसे सुना है। और इसकी पोथी भी सिद्ध करती है कि, श्रीधनविजयजी महा झूठ स्वकपोल कल्पित लिखनेवाला है; इस वास्ते इसके कथनकी किसीभी भव्य जीवोंकों प्रतीति करनी नही चाहिये। पृष्ट ४७० सें पृष्ट ४७८ तक जो इसने स्वकपोल कल्पित लिखा है, तिन में इसने 'सम्मद्दिठि देवा' इस पदकी जगें 'सम्मत्तस्स य सुद्धि' यह पद पाठांतर सिद्ध करा है। परंतु मूल-पाठ तथा टीका चूर्णिमें होवे तब तो पाठांतर सिद्ध होवे, ऐसा तो कोइ पाठांतरका पाठ साक्षी सहित नही लिखा है, इस वास्ते यह सिद्ध होता है कि, इन श्रीधनविजय-राजेंद्रसूरिजीने ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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