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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२
है । जेकर व्यंतर जातिकी देवीका अर्थ न मानीये, तो अधिष्टित शब्दका कदापि अर्थ नही बनेगा | सो तो सुझ जन आपही आवश्यक चूर्णि, तथा आवश्यक बृहद्वत्तिका पाठ देखके विचार लेवेंगे । इस मतांधने उत्सूत्र रुप अर्थ अपनी अज्ञता प्रगट करने वास्ते लिखा है ।
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(५२) तथा पृष्ट ६२१ में आराधनापताकाके अर्थमें श्रुतदेवीका अर्थ जिनवाणी लिखा है, सो भी लेख इसकी निःकेवल मिथ्यात्वोदयकी प्रबलताका सूचक है । क्यों कि, यहां भी श्रुत अधिष्टात्री देवीकाही अर्थ, श्रीतपगच्छीय गणि श्री रुपविजयजीने अपने रचे प्रश्नोत्तर ग्रंथमें लिखा है; सो नीचे लिख दिखलाते है |
" अथ श्रीमतं दोलतराव लस्कर स्थानतो लिखितं गुलेछा शिवदान सिंहजीयें लिख्युं छे जे पडिक्कमणा मध्ये श्रुतदेवतानी तथा क्षेत्रदेवतानी थुइ ते श्री महावीरस्वामी थकांनी परंपरा छे के पछवाडें आचार्य थकी परंपरा छे ? सो विवरो लिखज्यो । सो समाचार साराइ जाण्या छे अबे उत्तर लिख्यो छे सो विचारीनें श्रद्धा थिर राखणीजी । प्रथम पंचवस्तु शास्त्रनो पाठ छें ॥
" आयरणा सुयदेवयमाईणं होइ उसग्गो ॥ व्याख्या || आचरणेदाने श्रुतदेवतादीनां भवति कायोत्सर्गः आदि शब्दात् क्षेत्र-भवनदेवता परिग्रह इति गाथार्थ: ।।" ए गाथा मध्ये श्रुतदेवता क्षेत्रदेवतानो काउसग्ग कह्यो छें अने चउदेंसेंने चुंआलीस १४४४ ग्रंथ कर्त्ता श्री हरिभद्रसूरियें ए पाठ पंचवस्तु ग्रंथ मध्ये कह्यो छें जे ते जाणजोजी १ ॥
तथा आवश्यक निर्युक्ति मध्ये पिण पाठ छें ते एछें । “चाउमासिय संवच्छरिएसु सव्वेवि मूल गुण उत्तर गुणाणं आलोयणं दाउण पडिक्कमंति खित्तदेवाए उसग्गं करिंति " ॥ इति आवश्यक निर्युक्तौ ॥
इहां पण क्षेत्रदेवतानो शय्याधिष्टायकनो काउसग्ग साधु करें ए अर्थ
है २||
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