Book Title: Chaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Nareshbhai Navsariwala Mumbai

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Page 373
________________ ३७२ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ भूल नही है। किंतु शास्त्र शैलीकी अनभिज्ञताका सूचक है । क्योंकि इस धनविजयने तत्र शब्दका "त्यां कहे छे" ऐसा अर्थ लिखा है; इस वास्ते इसकों शब्दार्थका यथार्थ ज्ञान नही है, यह सिद्ध होता ही। इस वास्ते सर्व सुझ जनोंकों इसका लेख सत्य नही मानना चाहिये। (६१) पृष्ट ६३० में सेनप्रश्नका पाठ लिखके पृष्ट ६३१ में जो इसने स्वकपोल कल्पना करी है, सोभी इसकी शास्त्रार्थकी अबोधिकताकी सूचक है। सेनप्रश्नका पााठ यह है॥ "तथा श्री हीप्रभृति देव्यश्चतुर्विंशति जिनयक्षिण्य: षट्पंचाशद्दिक् कुमार्यः सरस्वती श्रुतदेवी शासनदेवी चेत्येतासां मध्येका भवनपति निकायवासिन्यः काश्चव्यंतरनिकायवासिन्य इति साक्षरं व्यक्त्या प्रसाद्यमिति प्र० श्रीहीप्रभृति षट्देव्यो भवनपतिनिकायांतर्गता इति मलयगिरिकृत बृहत्क्षेत्रविचारटीकायामिति तथा चतुर्विंशति जिनयक्षिण्यस्तु व्यंतरनिकायांतर्गताः एव संभाव्यते यत उक्तं संग्रहणीसूत्रे वंतर पुण अट्ठविहा पिसाय भूआ तहा जक्खेत्यादि तथा षट्पंचाशद्दिकुमार्यस्तु श्रीआवश्यकचूर्णी षट्पंचाशद्दिकुमारीणां ऋद्धिवर्णने बहुहिं वाणमंतरेहिं देवेहिं देवीहिं सद्धि संपरीवुडा इत्याधुक्तानुसारेण व्यंतनिकायांतर्गता ज्ञायंत इति तथा शासनदेवी तु जिनयक्षिण्येव नापरेति तथा सरस्वती श्रुतदेवी तु पर्यायांतरमिति ज्ञायते परकुत्रापि तथायुर्माननिकायादि न दृश्यत ॥ इति" (६२) ॥ भावार्थः ॥ श्री विजयसेनसूरिजीकों पृच्छकने पूछा है कि, श्री हीप्रमुख देवीयां, और चौवीस जिन यक्षणियां, छप्पन दिशाकुमारीयां, सरस्वती, श्रुतदेवी, शासनदेवी, इनोमेंसें भवनपतियोंकी निकायमें वसने वालीयां कौन कौन है ? इस प्रश्नके उत्तरमें ग्रंथके अक्षर सहित कृपा करणी । इति प्रश्नः ॥ अथोत्तरं ॥ श्री विजयसेनसूरि उत्तर देते है, यह कथन मलयगिरिकृत बडी क्षेत्रसमासकी टीकामें है तथा चोवीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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