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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २
थाय ते श्रुतदेवताने नमस्कार करूं छं । ए रीते शास्त्रकार तो बहुमान करे छे अने तुमें पडिक्कमणा मध्ये कहेतां शंका राखो छो सो अच्छी नही है ||६|| तथा देवभद्राचार्य कृत भाष्यमां पण कह्युं छे ||७|৷
तथा आवश्यक निर्युक्तिनें घुरें पिण श्रुताधिष्टायिका ने नमस्कार करयो छे ॥८॥
तथा वादीवेताल उत्तराध्ययननी प्राचीन टीका मध्ये पिण नमस्कार करयो छे ॥९॥
तथा पडिक्कमणा सूत्र मध्ये चोथा आवश्यकमां वंदितु सव्वसिद्धे एहमां पिण पाठ छे समकितदृष्टि देवतानो छे ते तो तुमे पिण भण्यो छो तो पिण संभारवाने लिख्यो छें पाठ " सम्मद्दिठो देवा दिंतु समाहिं च बोहिं च " ए गाथामां पिण कह्युं छे । तथा कोइक गच्छवाला पाछली ८ गाथा सूत्रनी काढी नांखे छे। अने पापबुद्धि आगल करे छे, पिण ते वात युक्त नहीं । गणधरजीनुं रच्युं पडिक्कमणुं छे ते गणधरजीनी खोट काढवी तो युक्त नही छे, गणधरथी अधिक कोइ होयज नही । तथा सूत्रनो १ अक्षर लोपे तो अनंतसंसार वधी जाय तो आठ गाथाज काढे तेहने स्युं कहेतुं ? तथा चोरासी सुविहित गच्छने मानवा योग्य श्री प्रवचनसारोद्धार वृत्तिमां संपूर्णज कह्यो छे ।
तथा च तत्पाठः ॥ “सुत्तंति सामायिकादि सूत्र भणंति साधुः स्वकीयं श्रावकस्तु स्वकीयं यावत् वंदामि जिणेय चउविसमिति' एहमां संपूर्ण पचास ५० गाथा कही छे ते माटे वंदितु गणधरजीनुं करयुं छे। माटे प्रभुजीना वारानीज श्रुतदेवतानी क्षेत्रदेवतानी थोय छे, पिण नवी करी नहीं छे ॥१०॥
(५५) तथा क्षेत्रदेवतानों निरंतर पडिक्कमणामें काउसग्ग करवो ते युक्त छे । साधुने त्रीजा व्रतनी भावनामें अभिक्षणावग्रह रुप भावना
पिण
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