Book Title: Chaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Nareshbhai Navsariwala Mumbai
View full book text
________________
श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २
चउमासिए एसा उवसग्ग देवयाए उसग्गो कीरई संवच्छरिए खित्तदेवयाए विकीरति अप्भहियो” इति आवश्यक चूर्णो ॥ एमां पण कह्युं जे उपसर्गकारी देवतानो काउसग्ग करवो, तथा संवच्छरीए क्षेत्रदेवतानो काउसग्ग करवो ए पाठ आवश्यक चूर्णि मध्ये छें ||३||
(५३) तथा भगवत श्री महावीरस्वामीना हस्तदीक्षित चवदेंहजार १४००० साधु तेहना रच्या चउदहजार १४००० पयत्रा ते मध्ये आराधनापताका पयत्रा मध्ये पिण पाठ छें ।
यथा ॥ " जाव दिट्ठी दाणमित्तेण देई पणईण नर सुर समिद्धि सिव पुररज्झं आणारयाण देवीए तीए नमो ॥१॥" व्याख्या । जो दृष्टि प्रसन्न करें तो प्रणत लोकनें नर सुर समृद्धि देवें आज्ञा श्री भगवतनी पालणहारनें मोक्ष साधन करतां विघ्र टालवें मोक्षज दीएछें एहवी श्रुतदेवीनें नमस्कार थाओ । गाथा आराधनापताका सूत्रनी छे ते माटे भगवंतना वारानी श्रुति हैं सो जाणसीजी ॥४॥
३५८
(५४) तथा प्रवचनसारोद्धार वृत्तिकार श्री सिद्धसेनाचार्य पण प्रवचनसारोद्धारमां कही गया छे । तथा च तत्पाठः " सुयदेवय खित्तदेवयाणं वत्ति तदनुश्रुत समृद्धि निमित्तं श्रुतदेवतायाः कायोत्सग्र्गों नमस्कारस्यैकस्य चिंतनं च कृत्वा तदीयां स्तुतिं ददाति परेण दीयमानां वा श्रृणोति च समुच्चये तदनु सकलविघ्रदलननिमित्तं क्षेत्रदेवतायाः कायोत्सर्गमेकनमस्कार चिंतनं कृत्वा तदीयां स्तुतिं ददाति" एहमां श्रुतदेवता क्षेत्रदेवतानी स्तुति कही छे जी ॥५॥
तथा अनुयोग द्वार सूत्रनी वृत्तिने घुरें पिण श्रुता धिष्टायिका देवीनें नमस्कार करयो छे । तथा च तत्पाठः ॥
"यस्याः प्रसादमतुलं संप्राप्य भवंति भव्यजन निवहाः अनुयोगद्वार वेदिन स्तांप्रयतः श्रुतदेवतां वंदे" ||१|| व्याख्या || जे श्रुताधिष्टायिका देवीनो अतुल प्रसन्नता भाव पामीने अनुयोगद्वारना वेत्ता जाण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386