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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २
तथा बारव्रतना उच्चारमां देशथी विरतीरुप नवमं सामायिक व्रत तेहना अधिकारनो कहेनारो चूर्णीनो पाठ छे ते मध्ये च्यार स्थानके सामायिक कह्युं छे ते कहे छे,
"चेइयघरे १ साहसमीवे २ नियघरे ३ पोसहसालार ४ जत्थवावीसमइ अच्छइवानिव्वावारो सवत्थकरेइ सव्वं चउसुठाणेसुनियमाकायव्वंचेवेति" तेहमां जो कोइनुं देणुं लेणुं न होय को हाथ पकडीने बलात्कारे जोर करीने यद्वा तद्वा बोलनारानो भय न होय तो पोताने घरेज सामायिक करीने साधुनी परे जयणा सहित पंच सुमति त्रणगुप्ति इर्या उपयोगमां वर्ततो साधुनी परे उपयोग सहित मार्गमें चालतो
" तिविहेण नमिउण साहुणो पच्छा सामाइयं करेमिभंते सामाइयं सावज्झं जोगं पच्चक्खामि दुविहं तिविहेणं जाव साहु पज्जुवासामित्तिकाउणपच्छा इरियावहियं पडिक्कमइ पच्छाआलोइत्तावंदइ आयरियादिजहारायणियादे पुणोवि गुरुवंदित्ता पडिलेहित्ता निविट्ठो पुच्छइ पढइ वाएवं चेइएस विजयासगिहे पोसहसाला एवा आवासएवा तत्थनवरिगमणंनत्थि "
ए हरिभद्रसूरिकृत वृत्तिनो पाठ जाणवो.
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चूर्णीमां पण एमज छे " एवं चेइसुवि असइसाहुचेइयाणं पोसहसालाए सगिहे वा एवं सामाइयं वा आवस्सयं वा करेंति तत्थनवरिगमणं नत्थिभाइ जावणियमं समाणेमी"
तथा जे ऋद्धिवंत छे ते सामायिक करतो थको माथे थकी मुगट उतारे तेहनो ए पाठ छे
"सोयकिरसामाइयं करिंतो मउडंण अवणेति कुंडलाणि १ णाममुद्द २ पुप्फ ३ तंबोल ४ पावरग ५ मादि वोसरति अन्ने भांति मउडंपि अवणेति" इहां चूर्णी मध्ये कह्युं छे जे ऋद्धिवंत होय ते माथानो मुगट माथे राखीने सामायिक करे तथा केटलाक आचार्य कहे छे जे मुगट
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