Book Title: Chaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Nareshbhai Navsariwala Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 319
________________ ३१८ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ प्रतिक्रमणतः किल धर्मकृत्यं सामायिकादि विदधीत ततः प्रभूतं तत्पूर्वमत्र चपदावनिमार्ज्जनं त्रिः १ व्याख्या पुक्खलि श्रावके थोडुंसुक धर्मकार्य करयुं साहमीवच्छलमां तेडवा मात्र ते पण इरियावहि पडिक्कमीने शंखनामा श्रमणोपासकने कह्युं ते माटे सामायिकादि विशेष करणी तो इरियावहि पडिक्कमीनेज करवुं त्रणवार भूमि पूंजिने करवुं इति संघाचार वृत्तौ ॥ तथा प्रभातिक सामायिक करवाने अधिकारे प्रथम इरियावहि पडिक्कमीने पछी सामायिकका पाठ उचरया हैं तेहनो ए पाठ हैं | "तओराइएचरमजामे उट्ठउण इरियावहियं पडिक्कमियपुविंच पोत्तिपेहिय नमोक्कारपुव्वं सामाइयसुत्तं कढिय संदिसावियसज्झायंकुणइ" ॥ व्याख्या, ते वारे रात्रिने चोथे प्रहरे इरियावहि पडिक्कमीने प्रथम थकी तेवार पछी मुहपत्ती पडिलेहीने नमस्कार १ गणीने सामायिक दंडक उच्चार करीने संदिसाविय कहेतां बेसणे संदीसामी बेसणे ठाएमी कहीने सज्झाय करे ए पाठ छे । तथा जिनवल्लभसूरिकृत पोषध विविध प्रकरणमां लख्युं छे जे रात्रीए पोसह करयो होय ते पाछली राते उठीने प्रथम इरियावहि पडिक्कमीने च्यार नोकारनो काउसग्ग करी उपर लोगस्स कहीने मुहपत्ती पडिलेहीने नोकार गणीने सामायिक लेवुं. श्री जिनवल्लभसूरिजीए कह्युं के, गृहस्थ चंचल जोगनो धणी इरियावहिया पडिक्कम्या विना सामायिक करे तेहने सामायिक शुद्ध नज होय । स्नान करीने पूजा करे ए तो सर्व लोकमां प्रसिद्ध छे पण पूजा करीने न्हावुं एम तो कोई करतुं नथी, तेम इरियावहि ते पापनी टालणहारी छे भावना जल छे तेणे शुद्ध थइने पछी सामायिकमां प्रवर्त्ते, तो ज सामायिक शुद्ध थाय. इरियावहि पडिक्कम्या विना सामायिक सुद्ध ज न होय. इहां कोइ गच्छममत्वे करीने विवेक रहित थका एम बोले छे जे गणधर महारजनुं रच्युं श्री महानिशीथ सूत्र तेहने सामान्य सूत्र कहे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386