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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २
कि, येह लिखता है कि, उत्तराध्ययनकी बृहद्वृत्तिमें पीले आदि रंगे वस्त्रोके रखनेवाले महावीर के साधु विडंबक एटले वेष विगोवनेवाले कहे है । परंतु इस पूर्वोक्त लेखकी गंध भी उत्तराध्ययन बृहद्वृतिमें नही है, वहां तो ऐसा लेख है कि, साधुका भेख लोकोंकी प्रतीति वास्ते है, जिस्से लोक साधु माने, और नाना प्रकारके जो उपकरणकी कल्पना है, सो इस वास्ते है कि, कोइ विडंबकादि स्वयमेव साधु नही बन जावे । इस टीकाकों वांचके बुधजन आप ही जान जावेगें कि, श्रीधनविजयजीने झूठ लिखा है, इस झूठका दंड श्री संघको तैसा देना चाहिये, जैसा धर्मसंग्रह बाबत लिखा है और निशीथ सूत्रमें नवीन वस्त्रकों तीन चुलु रंग देना लिखा है, उस जगे भी इसने स्वकपोल कल्पित झूठ ही लिखा है, परंतु चूर्णिका पाठ नही लिखा है ।। (२६) पृष्ट १८० में श्रीआत्मारामजी श्री शत्रुंजय तीर्थका विरोधी इत्यादि जो लेख इसने लिखा है सो सर्व ही मिथ्या है, क्यों कि, इस लेखकी बाबत आर्यदेशदर्पण नामा पुस्तक अहमदावादके छापेमें छपवाके श्री संघने सर्व जगे प्रसिद्ध करा है, सो सर्व सुज्ञजनोमें प्रसिद्ध है । इस वास्ते मैं श्री शत्रुंजय तीर्थका विरोधी नहीं हूं, परंतु भक्ति करनेवाला हूं. इस श्रीधनविजयजी अन्यायीने क्या जाने मिथ्यात्व के उदयसे यह झूठा लेख किस वास्ते लिखा है ? इसने अपने पक्षी तीन थुइके माननेवाले आदि मूढमति बनियोंकों श्रीआत्मारामजीके द्वेषी हो जाने वास्ते लिखा है ? इस दंभी छल कपटीका क्यों कर कल्याण होवेगा ?
और जैनशास्त्रका विरोधी लिखा सो भी मिथ्या है । क्यों कि, श्री पूज्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजीने श्री संग्रहणी सूत्रमें कोडि शब्दके वास्ते आचार्योंके दो मत लिखे है । एक तो सौ लाखकों कहना, और दूसरा कोडी कोई गिणती विशेषका नाम है इस वास्ते लिखा है कि, श्री कल्पभाष्य वृत्तिमें श्री पुंडरीक गणधरके गच्छमें बत्तीस हजार साधु लिखे है, तो पांच
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