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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग - २
आप दुर्गतिके अधिकारी होते है, और पीछे लगे सेवकांको भी करते है । और गोडीदास अत्युत्तम श्रावककों धर्मठग धर्मोपजीवी विगेरे शब्द लिखे है, सो भी इसकी अज्ञानता तीव्र कषायता अभिमानता निर्धर्मता निर्विवेकतादिकोंके सूचक है । इसी तरे इस धनविजयकी थोथी पोथीकी प्रस्तावना निःकेवल कर्ताकी अधर्म सूचकतासें भरी है सो सर्व सुज्ञजन आपही वांचके देख लेवेंगे ॥ इति श्रीधनविजयकृत चतुर्थस्तुतिनिर्णयशंकोद्धार प्रस्तावनाया यत्किंचित्खंडनं सम्पूर्णम् ।
( १९ ) अथ श्रीधनविजयजीने इस पुस्तकमें जो जो पंचांगी मूल सूत्र नियुक्ति भाष्य चूर्णि टीका विगेरेके पाठ लिखे है सो सर्व हमारे को प्रमाण है, तथा पूर्वधर अथवा अन्य जो जो प्रमाणिक आचार्योंके रचे ग्रंथ पाठ लिखे है वे भी सर्व प्रमाण है, तपगच्छके आचार्योंने जो लिखा है, सो भी प्रमाण है, और अन्य शुद्ध गच्छवाले आचार्योका लेख भी प्रमाण है, और जो मतरुप गच्छ वर्त्तमानमें चल रहे है तिनोका कथन जो पूर्वाचार्योके लेखानुसार है सो सर्व प्रमाण है, और जो सामाचारी खरतर गच्छकी तिसमेसें विरुद्ध नही सो भी हमको प्रमाण है, और जो सामाचारी तपगच्छसें विरुद्ध है तिसके माननेमें हम मध्यस्थ है, अर्थात् हम तिस सामाचारीकों करते भी नही है, और निषेधते भी नही है, और महोपाध्याय श्रीमद्यशोविजयजी महाराजका कथन भी हमकों प्रमाण है, इसी तरेसें हमारी जिनमार्गकी श्रद्धा है, श्रीधनविजयजीने उपर लिखे प्रमाण जो पाठार्थ इस पोथीमें लिखे है वे सर्व हमको प्रमाण. इस वास्ते इन पाठोका उत्तर लिखना आवश्यक नही है । किंतु जो इस श्रीधनविजयजीने अंधी भेंसकी तरे "जैसे अंधी भेंस अनाज घास कष्ठ कांटे आदि खाइ जाती है, तैसें इस श्रीधनविजयजीने" झूठ तोफान अगडम सगडम अंडबंड स्वकपोल कल्पित लिखा है सो सर्व इसहीकों वा इसके लेख माननेवालेंकों दुःखदाइ
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