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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२
हमारे सर्व प्रत्यक्ष छे त्यारे बीजा साधु बोल्या स्वामी, शुं छे ? त्यारे आचार्यजीए कह्यं के चित्रावेल छे, ते साधु जोइ हाथमां लेवा मंड्या एटले सर्प, रुप थइ जलमां प्रवेश करी गई" वाह ! क्या हो संयमधारी साधु थे? जिनको जल निगोदके और वनस्पतिके जीवांकी भी दया न आइ ? इन लिखनेवालेकों भी ऐसी ही दया होवेगी ! ।।
(१७) पृष्ट ५३ में लिखता है कि "पछी त्यांथी वंदावता श्री जावरानगरे पधार्या, त्यारे त्यांना संघे बहु आदरताथी विनंती करी चोमासु राख्या; त्यारे जनाणी मीठालालजी प्रमुख श्रावकोना मुखथी प्रशंसा सांभली ने त्यांना श्री नवाब साहेबे प्रश्न पूछाव्यु के "तुमारा धर्म हम अंगीकार करे, तो हमारे साथ तुम खाना पीना करो के नही ? ते प्रश्ननो उत्तर श्रीजी साहेबे दीधो के, दीनका और जैनका घर एक है" वाह ! क्या उत्तर दीया ! जब तेरे गुरु श्रीराजेंद्रसूरिजीने यह कहा के दीनका और जैनका घर एक है तो क्या जैसे मुसलमान बकरी इदमें क्रोडो बकरे मारतें है यह बात तुमारी एक है ? वा जैसे मुसलमान काफरोंके कतल करनेमें पुण्य मानते है तैसे तुम भी पुण्य मानते हो यह एक है ? वा जैसे मुसलमान सुनत बैठते है. तैसे तुम भी सुनत कराते हो यह एक है ? वा जैसे मुसलमान महम्मदका कलमा पढते है तैसे तुम भी महम्मदका कलमा पढते हो यह एक है ? वा जैसे मुसलमान एक अल्लाह कहते है तैसे तुम भी अल्लाह मानते हो यह एक है ? वा जैसे मुसलमान एक अल्लाहकों ही सृष्टिका हरता करता मानते है तैसे तुम भी मानते हो यह एक है ? वा जैसे मुसलमान रोजे, नमाज, गौघात, मांसभक्षण, मक्केका हज करना इत्यादि कार्य मानते है और करते है इस वास्ते मुसलमानोका दीन और तुमारा कल्पित जैन एक है ? इस लेखसें तो तेरे गुरुने जैनमतको म्लेच्छ मतके साथ एक सरीखा करणेसें अनंत तीर्थकर गणधरोंकों म्लेच्छ मतके कर्ता समान कर दीया, इस हेतुसें तो तेरा
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