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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ शिक्षणीयसत्वानुरुप्येण भवंति हि केचित्ते विने या ये साभिष्वंगानुष्ठानप्रवृत्ताः संतो निरभिष्वंगमनुष्ठानं लभंत इति गाथाद्धयार्थः ॥
(६३) इस पाठकी भाषा लिखते है ॥ अन्नोवि इत्यादि गाथा ॥ व्याख्या || अन्य प्रकारे पूर्वोक्त तपके स्वरुपसें अन्यतरेकाभी विचित्र प्रकारका तप है तिस तिस प्रकार लोक रूढी करके देवताके उद्देश्य करके भोले अव्युत्पन्न बुद्धिवाले लोकोकों विषयाभ्यास रुप होनेसें हित पथ्ये सुखदाइही है. रोहिणी आदि देवतायोंके उद्देश करके जो तप करते है. तिसकों रोहिणी आदि तप जानना. इति गाथार्थः ॥
___ अब देवताही दिखाते हुए कहते है ॥ रोहिणीत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ १ रोहिणी, २ अंबा, तथा ३ मदपुण्यिका, ४ सर्वसंपत्, ५ सौख्या ॥ सुयसंति सुरत्ति ॥ ६ श्रुतदेवता, ७ शांतिदेवता, ८ काली, ९ सिद्धायिका, ए नव देवीयों है इति गाथार्थः ॥
___ एमाइ इत्यादि गाथाकी व्याख्या । इत्यादि देवताको अश्रित तिनकी आराधनाकेवास्ते अपवसन अपजोषण करना ये नानादेशमें प्रसिद्ध है. ये सर्व तपविशेष होते हैं. तिनमेंसें रोहिणीतप रोहिणीनक्षत्रके दिनमें उपवास करे, इसतरें सात वर्ष सात मासाधिक तप करे और श्रीवासुपूज्य तीर्थंकर भगवंतके प्रतिमाकी प्रतिष्ठा अरु पूजा करे. इति रोहिणी तप ॥१॥
__ तथा अंबातप ॥ पांच पंचमीमें एकाशनादि करना, और श्रीनेमिनाथजीकी तथा अंबिकाकी पूजा करें २
तथा श्रुतदेवताका तप ॥ इग्यारे एकादशीयोंमें उपवास मौनव्रत करे और श्रुतदेवताकी पूजा करे, शेषतपविधि रूढीसें जान लेनी ॥ इति गाथार्थः ।।
अथ किसतरें देवताके उद्देश करके विधीयमान यथोक्त तप होवे, ऐसी आशंका लेकर कहते है. जत्थ कसाय इत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥
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