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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२
. (५) यह पुस्तक ही श्रीधनविजयजीने अभिमान, क्रोध, राग, द्वेष, उत्सूत्र भाषण, अन्याय अंगीकार करके लिखा है, और अज्ञ लोकोंकों भ्रम अंध जालमें गेरनेके वास्ते अगडम सगडम अंडबंड स्वकपोल कल्पित झूठ लिखके एक बडी पोथी परमार्थसें थोथी लिखके छपवाइ है, यह पोथी ऐसी है, जेसे ऊंची दुकान फीका पकवान अर्थात् देखनेमें मोटी गप्पे और लेखमें मोटी, और जिनमार्गसें खोटी । इस पोथीमें श्रीधनविजयजीने अपने अंदरके अज्ञान और झूठ लिखनेमें बडा ही परिश्रम कीया है।
प्रश्न:- श्रीधनविजयजीने इस थोथी पोथीमें क्या अज्ञान और मृषाभाषण लिखा है सो प्रगट करके लिख दिखलाओ।
उत्तरः- हे भव्य ! इस थोथी पोथीमें श्रीधनविजयजीने जितना जूठ लिखा है वो सर्व लिखुं, इतना मूजे अवकाश नहीं है, तो भी तुमारे जानने वास्ते थोडासा लिख दिखाता हूं ॥ श्री अहमदावादका तथा अन्य सहरोका सर्व श्री संघ जानता है कि, श्री आत्मारामादि १४ साधुयोंने श्री अहमदावादमें मांडलिया योग्य वहके श्री बुद्धिविजयजी महाराजके नामनी दीक्षा लीनी. उस समयमें तपगच्छ के जितने त्यागी साधु थे, वे सर्व पीत वस्त्र कच्छेके रंगे रखते, और दिन प्रतिक्रमणकी आदि तथा राइ प्रतिक्रमणके अंतमें चार थूइकी चैत्यवंदना करते थे. और सर्व श्री तपगच्छके श्रावक इरियावहिया पडिक्कमके पीछे सामायिकका उच्चार करते थे । और तपगच्छकी समाचारी श्राद्धविध्यादि शास्त्रोंमें भी ऐसे ही चैत्यवंदन सामायिक करनेकी विधि लिखि है। अब श्रीधनविजयजी थोथी पोथीके लिखनेवाला इस पोथीके कितने ही पृष्टोंपर लिखता है कि, श्रीआत्मारामजीने पीतांबर धारण करे, चौथी थुइ स्थापन करी, इरियावहियाके पीछे 'करेमि भंते' स्थापन करी. अब सुज्ञजनो विचार करो कि प्रीत वस्त्र तो श्रीयशोविजयजी तथा गणि श्रीसत्यविजयजीने किसी
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