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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ अस्य व्याख्या ॥ चाउ० ॥ क्षेत्रदेवतोत्सर्गं कुर्वति ॥ पाक्षिके शय्यासुर्याः ॥ केचिच्चातुर्मासिके शय्यादेवताया अप्युत्सगर्ग कुर्वति ॥ भाषा ॥ कितनेक आचार्य चातुर्मासी तथा संवत्सरिके दिनमें क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करते है. और पाक्षीमें भवनदेवताका कायोत्सर्ग करते है, अरु कितनेक चातुर्मासिके दिनमें भवनदेवत्ताका कायोस्सर्ग करते है. इति गाथार्थः ॥
इस पाठमें भनवदेवता और क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करना कहा है. जेकर श्रीरत्नविजयजी, श्रीधनविजयजी कहेगे कि यहतो हम मानते है. परंतु नित्य प्रतिदिन श्रुतदेवता और क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करना नही मानते है.
उत्तर :- पंचवस्तु शास्त्रमें श्रीहरिभद्रसूरिजीने श्रुतदेवताने अरु क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करना कहा है तिसका पाठभी उपर लिख आये है तो फेर तुम क्यों नही मानते हो ? जेकर प्रतिदिन क्षेत्रदेवता और श्रुतदेवताका कायोत्सर्ग करनेसें मिथ्यात्व किंवा पाप लगता है तो फेर पक्षी, चातुर्मासी अरु सांवत्सरी रुप महा पूर्वोके दिनोमें पूर्वोक्त कायोत्सर्ग करनेसेंभी महामिथ्यात्व और महापाप तुमकों लगना चाहियें. तो आप विचारोकि अन्य दिनोमें जो पाप न करे सोही पुरुष निरवद्य महापर्वोके दिवसोंमें तो अवश्यमेव पाप कर्म करे तब तिसकों मिथ्यादृष्टि, महा अधम अज्ञानी कहना चाहिये इतना तो तुमभी जानते होवेंगे, यह बातका जो आप तादृश विचारपूर्वक ख्याल रखोगे तो प्रतिदिन श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग निषेध करणा यह बहोत अयोग्य है जैसा आपही समज जावेगें, हमकोंभी समजानेकी जरुर नही पडेगी.
(७१) प्रश्न :- श्रुतदेवताके कायोत्सर्ग करणेसें क्या लाभ होता है ?
उत्तर :- इनके कायोत्सर्ग करनेसें महालाभ होता है यह कथन श्रीआवश्यक सूत्र जो तुम मानते हो तिसमेही करा है सो पाठ यहां लिखते
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