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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ ग्रंथमें है.
तथा श्रुतदेवी हमकों ज्ञानकी दात्री होवे यह कथन श्रीउत्तराध्ययनकी बृहद्वृत्तिमें है.
तथा जिनवरेंद्र श्रीमहावीरकों, तथा श्रुतदेवताकों तथा गुरुओंकों नमस्कार करके आवश्यक सूत्रकी वृत्ति रचता हूं ॥ इति हारिभद्रीयावश्यकवृत्तौ ॥
तथा जिन श्रुतदेवीका अतुल्य प्रसाद अनुग्रह करके भव्य जीव जो है सो अनुयोगके जानकार होते है तिस श्रुतदेवीकों में नमस्कार करता हूं, यह कथन श्रीअनुयोगद्वारकी वृत्तिमें है..
तथा श्रीनिशीथचूर्णिके शोलमें उद्देशेमें भाष्यचूर्णिमें साधुयोंकों वनदेवताका कायोत्सर्ग करना कहा है, सो पाठ यहां लिखते है ॥ ताहे दिसा भागममुणंता वालवुढ़ गच्छस्सरक्खणट्ठाए वणदेवताए काउस्सग्गं करेंति ॥ इत्यादि.
तथा श्रीहरिभद्रसूरिजीने श्रुतदेवताकी चौथी थुइ रची है. "आमूलालोलधूली" इत्यादि, यह थुइ जैनमतसें प्रसिद्ध है.
(८०) तथा श्रीआमराजा ग्वालियरका तिस्का प्रतिबोधक श्रीबप्पभट्टसूरि महाप्रभावक हूए हैं तिनोंका जन्म विक्रम संवत् ८०२ में हुआ है तिनोने एकैक तीर्थंकरके नामसें तथा संबंधसें प्रथम थुइ, दूसरी सर्व तीर्थंकरोकी थुइ, तीसरी श्रुतज्ञानकी थुइ, अरु चौथी श्रुतदेवी, विद्यादेवी आदिककी थुइ इसतरें चौवीस चोक छानवें थुइयां रचीयां है, तिनमें सर्वत्र चोथी थुइयोंमें अनुक्रमसें इन देवी देवतायोंकी स्तवना करी है. तहां श्रीऋषभदेवके संबंधकी चौथी थुइमें वाग्देवताकी थुइ है. श्रीअजितनाथके साथ अपराजिता देवीकी थुइ है, ऐसेही रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रश्रृंखला, वज्रांकुशी, अप्रतिचक्रा, काली, मानवी, पुरुषदता, महाकाली, गौरी,
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