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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१
नमाए द्वयंग प्रणाम, मस्तक अरु दो हाथके नमावणेसें व्यंग प्रणाम, दो हाथ अरु दो जानु के नमावणेसें चतुरंग प्रणाम, शिर, दो हाथ अरु दो जानु यह पांचों अंगके नमावणसें पंचागं प्रणाम होता है ॥ तथा दंडक अरिहंत चेइयाणं इत्यादि चैत्यस्तवरुप स्तुति प्रसिद्ध है जो तिसके अंतमें देते हैं. तिन दोनुका युगल, ये दोनोही वा युगल यह मध्या चैत्यवंदना है. यह व्याख्यान इस कल्पभाष्यकों आश्रित होके करते है ॥ तद्यथा निस्सकड, इत्यादि गाथा जिस वास्ते दंडकके अवसानमें एक थुइ जो देते है । इति दंडक स्तुति युगल होते है ॥२॥ तथा पंच दंडक, शक्रस्तव, चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धस्तव, इन पांचों दंडको करकें. और थुइ चार करके स्तवन कहना जयवीयराय इत्यादि प्रणिधान करके यह उत्कृष्ट चैत्यवंदना, यह व्याख्यान भी कोइ करते हे तिन्निवा इत्यादि गाथा इस कल्पकी गाथा के वचनकों और पणिहाणं मुत्तसुत्तीए इस वचनकों आश्रित होके करते है ।।३।।
वंदनक चूर्णिमें भी कहा है सो कहते है सो चैत्यवंदना जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेदसें तीन प्रकारें है जिस वास्ते कहा है नवकारेण जहन्ना इत्यादि गाथा तिहां नवकार एक श्लोक उच्चारणसें प्रणाम करणे करके जघन्या चैत्यवंदना होती है ॥१॥ तथा अरिहंत चेइयाणं इत्यादि दंडक कहकें कायोत्सर्ग पारके थुइ देते है सो दंडक और थुइके युगल दोनु करके मध्यम चैत्यवंदना होती है कल्पमें निस्सकड इत्यादि गाथासें कहा है ||२|| तथा शक्रस्तवादि दंडक पांच, और थुइ चार, और प्रणिधान पाठसें संपूर्ण उत्कृष्ट चैत्यवंदना होती है ॥३॥
___ तथा संघाचार वृत्तिमें इस गाथाके व्याख्यानमें बृहद्भाष्यकी सम्मतिसें नवप्रकारकी चैत्यवंदना कही है. तथा च तत्पाठो लेशः ॥ एतावता तिहाओ वंदणयेत्याद्यद्वार गाथा गत तु शब्दसें सूचित नव प्रकारसे
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