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अनेकान्त
की भावना प्रों में बसे रहते हैं । सवेरा होता है और पक्षी 'जरा सोचो तो तुम क्या क्या छोड़ कर जा रहे हो. बाहबली, उड जाने हैं। अब मरा हो गया है, भैया, अब में जा तुम्हारे पास क्या नहीं है ? दुनिया में सबसे प्यारा भाई तुम्हारे रहा हैं। और में तुम्हारी समस्त भावनामों के लिए, तुम्हारी पाप है। संसार के सारे सुख जिस संपदा से खरीदे जाते हैं स्नेहमयी भावनाओं के लिए तुम्हें धन्यवाद देता हूँ।' वह लचमी अाज तुम्हारे चरणों की दामी है । तुम्हारे पसीने
भावावेश में भरत चिल्ला उठा। 'बाहुबली, बाहुबली।' पर अपना खून बहा देने वाले मित्र तुम्हारे इशारों की राह बाहुबली ने शांत स्वर में कहा । 'भरत, भैया, हम
देखते हैं । संसार का श्रेष्ठ नारी रन्न तुम्हारे पीछे दीवाना
है, और तुम क्या चाहते हो, बाहबली ? और तुम एक ही राह के दो मुसाफिर थे । हम भाई-भाई थे, अब दाराह पा गया है। हमारी मंजिले एक दूसरे से
बाहुबली ने हंस कर कहा, 'वज्रबाह, मित्र, मैं संतोष अलग अलग हैं, दर है, प्रायो हम गले मिल कर सम्मान
चाहता है।' से विदा लें। हमारा साथ यहीं तक था।'
इस एक उत्तर में क्या क्या निहित था उसे वज्रवाह
ने समझा, भरत ने समझा, किन्तु विशाल काति का तरुण ___ म्वप्नचारी की तरह भरत भावातिरेक से बोला, 'नहीं,
हृदय उमं न समझ मका, उसने कहा, 'संताप भी तो इसी बाहवली, मा न कहो, अभी दोराहा दर है, तुम नहीं।
संपदा से मिलता है, चाचा जी।' मानते, तो हम तुम साथ एक ही सिंहासन पर बैठेगे, मिल कर राज्य करंगे, मिल कर उसका त्याग करेंगे, हम दोनों साथ- बाहचली उपकी ओर दम्ब कर मुम्कराए, 'नहीं, संतोष साथ तप करेंगे, और एक ही साथ २ संसार बंधन को काट इन वस्तुओ से नहीं मिलता, पुत्र । भरत ने पृथ्वी जीती, कर वहां जाएंगे, जहां से फिर पाने का कष्ट उठाना नहीं वह अपने दिल पर हाथ रखे और उमस पूछे क्या उसे पडता ।'
मंतोष मिला है, तुम उपके युवराज हो, बनायो तो, क्या
तुम्हारा मन कभी एक क्षण को भी व्याकुल नहीं हश्रा है ? याहुबली ने कहा 'भैया, तुम दुखित क्यों होत हो,
गरचा संताप तो त्याग में है, विशाल, राग में नहीं।' इस संसार में कब किमी का ऐसा माथ हुश्रा है ? अपना शरीर ही अपना माथ नहीं देता । रोग प्राता है, तन ढह
फिर विशालकीर्ति के कंधे पर एक हाथ रख कर दूसरा जाता है, बुढ़ापा पाता है झुक जाता है, यह पानी का बुल- हाथ वज्रबाहु के कंधे प ररखने हए बाहबली ने वज्रवार को बुला है, हवा अाती है यह फुट जाता है।'
ल च्यकरते हुए कहा, 'महाराज बज्रवाह, हो सके तो मान का भरत ने बाहुबली के सामने घुटने टेक दिए । 'बाहुबली
त्याग करना, इस से तुम्हें सुम्ब होगा, सबको सुख होता है।' अब तक मैं तुम्हें एक अभिमानी राजा ही समझता था। श्रार उन्हान वज्रबाहु के हाथ में विशालकीति का हाथ द तुम कितने महान् हो यह श्राज ही जाना, तुम मर छोटे दिया। भाई नहीं हो, मुझसे कहीं बड़े हो, संसार से बड़े हो । में भरत इस व्यवहार को कुछ भी न समझ सका, बाहेतुम्हारी पूजा करता हूँ।
बली ने उसका हाथ पकड कर इस बंधे हुए एक जोड़ी बाहुबली एक हाथ से अपनी आंखों के अंतिम स्नेहाथ हाथों पर रखते हुए कहा, 'भरत, तुम संरक्षक हो, विशाल पोंछने हुए भरत को उठा रहे थे । सारा रणक्षेत्र बाहुबली को बहू मिलेगी और तुम्हें पुत्र वधू मिलेगी, अयोध्या को की जय के नारों से गुजायमान हो रहा था। क्षण भर में उसकी युवराज्ञी मिलेगी। पाया ऐसा पलट गया था, जिसकी ओर किसी का अनुमान भरत, वज्रबाह और विशाल कीर्ति के नेत्र हर्ष, विशाद भी न जा सकता था। बाहुबली ने शपने वस्त्र उतार दिए और अाकस्मिक चमत्कार से प्रभावित से होकर स्थिर हुए थे।
सब कुछ देख रहे थे, किन्तु जो कुछ भी हो रहा था उसका वज्रवाह मित्र का अकस्मात् परिवर्तन देख कर विमुढ अर्थ किसी की भी समझ में भली प्रकार नहीं पा रहा था, हो गए थे। इसलिए अब तक उनकी जबान से एक भी जसे नियति अपने पास में भविष्य को बांध कर पलायन शब्द नहीं निकला था। किन्तु अब उन से न रहा गया, कर रही हो, इस प्रकार सब ने बाहुबली के सामने सिर