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अनेकान्त
प्रतिमाएं प्राप्त हुई है, वे निश्चय रूप से ७ वी ८ वीं डाहलमण्डलीय क्षेत्र में बहुत मिलती हैं। जबलपुर जिले में शताब्दी की हैं। सिरपुर की जन प्रतिमाओं में पार्श्वनाथ त्रिपुरी, बहगांव रीठो, धाभाहिनौता, कारतलाई, बिलहरी की प्रतिमाएं विशिष्ट हैं। उसी प्रकार राजिम में, जो कि आदि स्थानों में कलचुरि काल में जैन केन्द्र स्थापित थे, वर्तमान में भी हिन्दुओं का एक मुग्व्य तीर्थ है, पार्श्वनाथ वहां अनेक मंदिरों और प्रतिमाओं का निर्माण हुश्रा । की एक प्रतिमा उपेक्षित पड़ी है । वह संकेत करती है कि त्रिपुरी की जैन प्रतिमाएं कलकत्ता और नागपुर के संग्रहाप्राचीन काल मे राजिम में जैन मंदिर स्थापित था, जिसके लयों में भी प्रदर्शित हैं । इनको कला उच्च कोटि की है। कोई अन्य अवशेष अब अप्राप्य हैं। बिलासपुर जिले के त्रिपुरी की दो प्रतिमाओं पर कलचुरि सं... के उत्कीर्ण रतनपुर में भी प्राठवीं-नौवीं शती की अम्बिका प्रतिमाएं लेग्स हैं । जबलपुर के हनुमानताल स्थित जैन मंदिर में मिली हैं।
विराजमान कलचुरि कालीन प्रनिमा अतीय प्रभावपूर्ण है। कलचुरि राजवंश के राज्य काल में महाकौशल में बहुरीबन्द में शांतिनाथ की विशाल प्रतिमा है, वह कलचुरि अनेक जैन मंदिरों का निर्माण हुमा । इस वंश की डाहल- राजा गयाकर्णदेव के समय में स्थापित की गई थी। पिलमण्डलीय और दक्षिण कोमलीय, दोनों ही शाखाओं के हरी में जैन तीर्थंकरों की पद्मायन और कायोमर्ग दोनों नृपति बड़े ही धर्ममहिष्णु रहे हैं। डाहलमण्डलीय कल- श्रासनों की प्रतिमाएं मिलती है। वहां की बाहबलि प्रतिमा चुरियों की राजधानी त्रिपुरी (जबलपुर के निकट) और अपने किस्म की एक ही है । बडगांव की जैन प्रतिमाएं । दक्षिण कोसलीयों की राजधानी रत्नपुर (जिला बिलामपुर) वीं शती की हैं। कटनी के निकट कागतलाई नामक ग्राम में स्थापित थी। इसलिये इन दोनों ही स्थानों में जन में अनेक जैन मंदिरों के अवशेष बिम्वर पई हैं। इस स्थान कलाकृतियों का निर्मित होना स्वाभाविक था। प्रारंग (जिला की बहुत सी जन प्रतिमाएं अब रायपुर संग्रहालय में ले रायपुर) में बारहवों सती का एक जैन मंदिर आज भी खडा पाई गई हैं और वहां दीर्घा में प्रदर्शित हैं। इन अप्राप्त हा है। इस मंदिर की प्रतिमाओं के अतिरिक्त कुछ और प्रतिमाओं में विभिन्न तीर्थकरों यथा ऋपभनाथ, अजितनाथ. जन प्रतिमाएं उसी गांव के महामाया मंदिर में रखी हुई हैं। संभवनाथ, पुष्पदंत. शीतलनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ. ये सभी प्रतिमाएं बहुत ही सुन्दर हैं और भिन्न-भिन्न तीर्थ मल्लिनाथ, मानमुघतनाम, पार्श्वनाथ और महावीर की करों की हैं। इन प्रतिमाओं को देखने से एमा ज्ञात होता प्रतिमाओं, साथ जैन दवियों, अम्बिका, पद्मावती और है कि प्रारंग में कायोत्सर्ग आसन की प्रतिमाएं अधिकतर सरस्वती का भी प्रतिमा है । महनकृट जिन-बिम्ब और बनाई जाती थी । इन प्रतिमाओं के अलावा, प्रारंग में सर्वतोद्रिका प्रनमाग भी इस संग्रह में हैं और सबसे स्फटिक की तीन प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जो अब रायपुर के महत्वपूर्ण तो हैं द्विमूर्तिका-प्रतिमाएं त्रिमूर्तिका और चतुएक जैन मंदिर में विराजमान हैं। ये स्फटिक प्रतिमाएं १० विशतिपट्ट। वीं ११ वीं शती की प्रतीत होती है । उनमें से बड़े श्राकार नरसिंहपुर जिले में प्राप्त कुछ प्रतिमाएं नागपुर के की प्रतिमा पार्श्वनाथ की है और दोनों छोटी प्रतिमाएं संग्रहालय में हैं । इनका समय १३ वीं शती ई. है। शीतलनाथ की। सिरपुर (रायपुर जिला) रत्नपुर और बैतूल; और बुरहानपुर की प्रनिमाएं भी उसी संग्रहालय में धनपुर (बिलासपुर जिला) भी तत्कालीन जैन केन्द्र थे। सुरक्षित हैं । मुक्तागिरि श्राज भी एक जैन तीर्थ है । स्नपर की कलेक जैन प्रतिमाएं रायपुर के संग्रहालय में ले सागर और दमोह जिलों में भी अनेक प्राचीन जैन प्राई गई हैं। धनपुर में आज भी अनेक मूर्निरखण्ड तितरे- केन्द्र हैं, जिनमें रहली, फतहपुर और कुण्डलपुर मुख्य हैं। बितरे पड़े हैं। कल्लार की प्रतिमाओं का उल्लेख पहले मंढला का कुकर्रामठ जैन कहा जाता है। किया जा चुका है, उनमें से अनेक बड़ी विशाल हैं।
इस प्रकार महाकौगल क्षेत्र में गुप्तोत्तर काल से लेकर त्रिपुरी के कलचुरियों के समय की जैन कलाकृतियों कलचुरि काल तक की प्राचीन प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं।