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अपभ्रंश का एक प्रमुख कषाकाव्य
कथा काव्यों का उल्लेख मिलता है१८ । मुक्तिविमल कृत किस प्रकार भाई तथा भौजाई अपनी परीक्षा देते थे और "ज्ञान पचमी" तो बहुत पहले (१९१६ ई.) मे प्रकाशित भन्त मे सफलता प्राप्त करते थे? ऐसे ही कुछ प्रश्न है, हो चुकी है। इस प्रकार कथाएँ मिलती है जिनमे जिन पर कवि ने प्रकाश डाला है। भविष्यदत्त का कथानक काव्य के विभिन्न रूपों मे चित्रित
बस्तु-विवेचन किया गया है। परन्तु भावो की उदात्तता कल्पना की
कथानक के दो भेद कहे जाते है-मरल पौर अतिशयता और वस्तु का जो यथार्थ चित्रिण हमे धनपाल के कथा काव्य मे मिलता है उतने सुन्दर रूप मे अन्य
जटिल । सरल कथानक में कार्य-व्यापार एफ मोर काव्य मे नही है। कवि ने अपनी रचना को दो खण्डो
अविच्छिन रहता है। वस्तु की जटिलता एवं उलझन और बाईम सधियों में विभक्त कहा है। प्रबन्ध और
इममे नहीं मिलती। जहाँ-कहीं लेखक को उलझन या
रहस्य प्रतीत होता है वही तुरन्त घटना विशेष से उमका वस्तु-तत्त्व की योजना सोद्देश्य नियोजित है। इसलिए
सम्बन्ध जोड देता है। इस प्रकार मुख्य कथा कई छोटीमिकता का पुट म्पष्ट है। किन्तु भवान्तर तथा प्रति
छोटी कथानी से एक माला के रूप में अनुबद्ध रहती है। लौकिक बातो को यदि छोड दिया जाये तो कथा शुद्ध रूप
अपभ्रश के कथाकाव्यो मे हमे अधिकतर ऐसी ही कथाएँ मे लोक कथा झलकने लगती है।
मिलती है जो शृखलाबद्ध रूप मे वणित है। इमे ऐकिक अपभ्र श के कथाकाव्यो मे भविष्यदत्त की कथा
कहानी कहा जा सकता है जिसमे कई मरल कथानों से अत्यन्त करुण, मजीव और यथार्थ है। परिवार की छोटी
मिलकर एक बृहत्कथा बनती है। मूल रूप मे कथा बहुन सी घटना को लेकर वस्तु-बीज किस प्रकार समाज, जाति
छोटी रहती है किन्न वस्तु-वर्णन तथा विभिन्न अभिप्रायऔर देश के मूल तक पहुंच जाता है-इसका सटीक वर्णन इम काव्य मे मिलता है। समस्याए प्रत्येक युग में
मूनक घटनाग्रो के योग से समूचे जीवन का चित्र चित्रित प्रत्येक मामाजिक के मामने रही है और उसकी सफलता
करने वाले प्रबन्ध काव्य का प्राकार ग्रहण कर लेती है। तथा विफलता का समाधान प्रायः साहित्यकार करते है।
उदाहरण के लिए भविष्यदत्त की कथा में एक साथ तीन यही नही, उनके परिणमन तथा सघर्षों के परिणामो का अन्य उपकथाए जुडी हुई है। मुनि के प्राशीर्वाद से लेखा-जोखा भी किमी न किसी रूप में चित्रबद्ध किया
भविष्यदत्त का उत्पन्न होना और पाँच सौ व्यापरी एवं
भाई बन्धुदत्त के साथ समुद्रो-यात्रा के लिए जाना, मार्ग जाता रहा है। धनपाल के इस कथा काव्य को पढने से स्पष्ट हो जाता है कि उम युग में किस प्रकार मामन्त
मे मैनागीप में बन्धुदत्त के द्वारा भविष्यदत्त को छोड़ युगीन धनिक वर्ग कामवामना की तृप्ति के लिए बहु
दिया जाना, वहां से भविष्यदत्त का तिलकपुर में पहुंचना विवाह करते थे और मनति पर उमका क्या दुष्परिणाम
और भविष्यानुरूपा से मिलना, बन्धुदत्त के लौट कर प्राने पडता था? इसी प्रकार सत्ता तथा बाहुबल पर किस
पर उसी द्वीप मे फिर मे मिलने और छल से पुन. भाई प्रकार गजा लोग सुन्दरी का अपहरण करते थे और इस को प्रकला छोड कर बन्धुदत्त का भाभी के साथ घर प्रकार छोटी-छोटी बातो के लिए युद्ध करते थे? भाई
को पहुँचने की कथा एक सूत्र मे बद्ध है। यह कथा मूल रूप भाई किस प्रकार सम्मान तथा प्रात्म-तृप्ति के लिए सगे।
मे मे "बड़ी मां की कहानी" है जिसमे सतिली मों का
व्यवहार और उसके सिखाये हए पाठ से बड़े भाई के साथ भाई के साथ छल-कपट करते थे और किस प्रकार मात
छोटे भाई का खोटे से खोटा कम और नीच कर्म का तुल्य भौजाई को हथिया लेने का षड्यन्त्र रचते थे?
वर्णन तथा उसके फल का विवरण है । कही-कही इन १८. महेश्वर सूरि कृत ज्ञानपंचमीकथा का प्रस्तावना, घटनामो से कथा को गतिशील बनाये रखने के लिए
पृ० ७॥ १९. मोहनलाल दुलीचद देसाई : जैन उपवाक्यो की भांति उपकथाएं जडी रहती है। संक्षेप मे, साहित्य नो सक्षिप्त इतिहास, बम्बई, १९३३, यदि भविष्यदत्त की कथा की घटनाओं पर विचार किया
जाये तो निम्न-लिखित घटनाये मुख्य लक्षित होगी।