Book Title: Anekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 309
________________ तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर पर विहार सरकार का पक्षपात पूर्ण रवैया सम्मेदशिखर जैनियो का अत्यन्त पवित्र तीर्थ क्षेत्र है, इसे दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों ही पूज्य मानते है। समस्त टोके दिगम्बर माम्नाय की प्रतीक है। श्वेताम्बर समाज ने जमीदारी अधिकार छिन जाने पर भारतीय जैन समाज के नाम से पान्दोलन किया पौर कानूनी कार्यवाही भी की। पत्र व्यवहार तथा प्रतिनिधि मण्डल भेज कर मैमोरेण्डम प्रादि देकर तीर्थराज को पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न किया। परिणाम स्वरूप सन् १९६४ मे भारत सरकार के रवैये मे कुछ परिवर्तन प्रतीत हुआ। भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी ने १८ अक्टूबर सन् १९६४ को विहार सरकार के मुख्य मत्री को एक ज्ञापन (मेमोरेण्डम) दिया कि तीर्थराज के सम्बन्ध में जो भी नया कदम उठाया जावे उसमें दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनो ही सम्प्रदायों को समानता दी जाये । इस पर उनका प्राश्वासन भी प्राप्त हुआ । किन्तु हमें दुख है कि ३ फर्वरी १९६५ को विहार सरकार ने अपने प्राश्वासन पर ध्यान न देते हुए जैनियो के परम पुनीत इस तीर्थ राज को श्वेताम्बर सम्प्रदाय के एक भाग केवल मूर्तिपूजक श्वेताम्बरो से एग्रीमेन्ट कर उन्हे अधिकार मौप दिया, जिससे समस्त दिगम्बर जैन समाज में अत्यन्त क्षोभ है।। दिगम्बर समाज देशभक्त और शान्ति का प्रचारक है। उसके द्वारा सदैव ऐसे कार्य सम्पन्न हुए है, जिनसे वातावरण मधुर बना रहे। परन्तु धार्मिक अधिकारो पर आघात मानव जीवन पर एक महान् प्रहार है। विहार सरकार के इस पक्षपातपूर्ण रवैये ने दिगम्बर समाज मे आतक पंदा कर दिया है। जिससे समाज मे अशान्ति उत्पन्न हो गई है। प्रत्येक जैन अपने धार्मिक अधिकारो का संरक्षण जीवन का परम कर्तव्य मानता है। वह चाहता है कि समस्या शान्तिपूर्ण ढङ्ग से सुलझ जाये। सौभाग्य की बात है कि हमारे राष्ट्रपति महान् सन्त धर्मज्ञ और दार्शनिक हैं। समाज की दृष्टि उनकी ओर है। यदि वे हमारे धार्मिक अधिकारी की ओर ध्यान दे, तो समस्या आसानी से सुलझ सकती है। विहार सरकार ने मूर्तिपूजक श्वेताम्बर समाज से जो एग्रीमेण्ट किया है, वह सर्वथा एकांगी और अनुचित है। दिगम्बर समाज के अधिकारों पर कुठाराघात है। हमें पूर्ण प्राशा है कि विहार सरकार अन्यायपूर्ण एग्रीमेण्ट को वापिस ले लेगी। दिगम्बर जैन समाज का कर्तव्य है कि वह विहार सरकार के अन्यायपूर्ण उक्त निर्णय का विरोध कर शक्तिशाली कदम उठाये पौर तीर्थराज पर अपने अधिकारों की रक्षार्थ सर्वस्व अर्पण के लिए तय्यार रहे। और दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के आन्दोलन में पूर्ण सहयोग देते हुए अपने सामाजिक संगठन को और भी अधिक मजबूत बनाये। -प्रेमचन्द जैन सं० मन्त्री वीरसेवा-मन्दिर प्रकाशक-प्रेमचन्द जैन, वीर सेवामन्दिर के लिए, रूपवाणी प्रिंटिंग हाउस, दरियागंज दिल्ली से मुद्रित ।

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