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३८वें ईसाई तथा सातवें बौद्ध विश्वसम्मेलन की श्री जैन
संघ को प्रेरणा कनकविजय जी महाराज
[भनेकान्त के विगत अंक में प्राचार्यप्रवर तुलसी गणी के 'तीन सुझाव' शीर्षक निबन्ध से प्रनप्राणित होकर मुनि कनकविजय जी महाराज ने प्रस्तुत लेख की रचना की है। लेखक ने ३८ ईसाई और ७वें बौद्ध विश्व-सम्मेलन स्वयं देखे थे । उससे जैन संघ के प्रति उनकी जो अनुभूतियां जागृत हुई, उनका इस निबन्ध में सांगोपांग विवेचन है । इस सम्बन्ध में मुनि जी की विस्तृत जानकारी है। यह निबन्ध जैन संघ के प्रति उनकी श्रद्धा का घोतक है । प्राशा है कि जैन समाज के कर्णधार विचार करेंगे। लेख क्रमशः प्रकाशित होगा।
-सम्पादक लेख को प्रेरणा
पूर्ण ईसाई-बौद्ध-जैसे दो विश्व सम्मेलन हुए हैं। हर तीन सारनाथ वाराणसी में नवम्बर २६ से ४ दिसम्बर वर्ष मे हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक के कुम्भ के रूप १९६४ तक ७वां विश्व बौद्ध सम्मेलन जो हुआ था उसका मे तथा प्रति वर्ष माघ मेले के रूप मे धूमते-फिरते मैं बहुत समीप से दर्शक रहा हूँ। क्योंकि २८-११-६४ से विशाल हिन्दू सम्मेलन तो होते ही है, फिर भी चालू वर्ष ८-१२-६४ तक मैं सारनाथ मे ही रहा था। श्री जैन संघ के अप्रैल में विश्व हिन्दू सम्मेलन दिल्ली में होगा। इतना का मेरे पर इतना महान् ऋण है कि जो किसी तरह से ही नही सन १९६६ के माघ महीने में प्रयाग के पूर्ण कुम्भ उऋण न किया जा सकता। अतः उस सम्पूर्ण प्रसग के पर पुनः दूसरा विश्व हिन्दू सम्मेलन भी होने वाला है। प्रत्येक अनुभव से लेकर पाज तक मेरी दृष्टि के सामने इन सारे प्रेरणादायी प्रसंगो से श्री जैन सघ जैसा अत्यन्त बराबर श्री जैन संघ रहा है। एक हित चितक के रूप मे विचक्षण और बुद्धिमान संघ भी क्या कोई उपयोगी प्रेरणा श्री संघ की सेवा में कुछ लिखने की इच्छा तो थी ही, ले सकता है कि नहीं ? और यदि ले सकता है तो क्या किन्तु जैन सघ की वर्तमान कर्तव्य शून्य अवस्था को प्रेरणा लेनी चाहिए? यह विचारने के लिए ही यह लेख देखते हुए उसका अमल नही होता था। भावनगर, लिख रहा है। यद्यपि प्राचार्य श्री तुलसी गणी जी महाराज सौराष्ट्र से प्रकाशित होने वाले १६-१२-६४ के 'जन' मे अर्थात् तेरापंथी जैन समाज का अणुव्रत प्रादोलन तथा विद्वान् संपादकीय लेखक महानुभाव ने सामयिक स्फुरण मनि श्री सुशीलकुमार जी का अनेकों स्थान मे हुए विश्व में ईसाई विश्व सम्मेलन के सम्बन्ध मे जो कुछ लिखा, धर्म सम्मेलनों, श्री कामता प्रसाद जी जैन प्रादि के द्वारा वह पढ़ने के पश्चात् पुन. भीतर से उमि उठी, जिसकी संचालित विश्व जैन मिशन, अलीगंज, एटा मादि प्रवृपूर्ति ३-१-६५ के "जैन" मे प्राचार्य श्री तुलसी गणी जी तियाँ श्री जैन संघ के लिए गौरव रूप ही हैं, फिर भी महाराज का लेख "जैन समाज के लिए तीन सुझाव" इतना तो कहना ही पड़ता है कि उन प्रवत्तियो में जसा पढने के पश्चात निर्णय हया और उसी कारण से कुछ संगठन होना चाहिए. वसा नहीं हैं। प्रत' भारत तथा विलम्ब से भी श्री संघ की सेवा मे यह लेख लिख रहा है।
' विश्व में उतना समुचित प्रभाव भी नहीं पड़ता कि जिससे शास्त्रों का नहीं, जीवन्त अनेकान्तवाद चाहिए
जंन सस्कृति का नाम उज्वल हो। बात तो यह होनी श्री जैन संघ की आँखों के सामने ही अत्यन्त महत्व- चाहिए थी कि संगठित जैन संघ की प्रेरणा विश्व की अन्य