________________
भनेकान्त
विद्रोह का उल्लेख है वह दिल्ली सल्तनत से सम्बन्धित था उल्लेख मिलते है। जिन रत्नकोश मे दस "ज्ञान पंचमी" जो लगभग १३३५ ई. के लगभग हुमा था। इसी प्रकार कयामों का उल्लेख है ।१४ इसी प्रकार मंजुश्री विरचित १३३५ ई. के अकाल का भी उल्लेख मिलता है। कवि "कातिक सौभाग्य पचमी माहात्म्य कथा" सस्कृत में तथा धनपाल जौनपुर के निकट (लगभग चौदह-पन्द्रह मील दूर) पद्ममुन्दर कृत "भविष्यदत्त चरित्र" (नाटक) का उल्लेख जागबाद मे रहते थे। अकाल पड़ने पर सन् १३३५ मे मिलता है। १५ । हिन्दी में ब्र० रायमल्ल विरचित दिल्ली की दशा बहुत ही खराब हो गई थी। धर्मात्मा "भविष्यदत्त चौपई" मिलती है जिसे पंचमी कथा या हिमपाल दिल्ली में रहते थे। वे बहुत ही वैभव सम्पन्न पचमीरास भी कहते है। बनवारी कृत "भविसदत्त थे। उसका पुत्र वाधू था । उसके लिए कवि ने यह कया. चरित्र" मवन १६६६ की रचना है जो चौपाई छन्द मे काव्य लिखा था। और इसके समाप्त होने पर वाबू निबद्ध है। इसी प्रकार मुनि सुरेन्द्र भूषण रचित "पचमी जफराबाद लेने के लिए पहुंचा था१३ । इस प्रकार इति- - व्रत कथा" वि०म० १७५७ की लिखी रचना है, जिसे हास के पालोक मे हमे जो तथ्य प्राप्त होते है उनकी कवि ने "ऋपि पचमी व्रत कथा" कहा है। जिन उदय संगति और प्रामाणिकता का भी निश्चय हो जाता है। गुरु के शिष्य और ठक्कर माल्हे के पुत्र विद्धणू विरचित पूर्व परम्परा
"चउपई" भी मिलती है जिसका उल्लेख प० नेमिचन्द्र अपभ्रश में लिखी जाने वाली यह कथा धनपाल
शास्त्री ने किया है१६ । न्यामतसिंह विरचित "भविष्यके लिए नई वस्तु नही थी। क्योकि उसके पूर्व प्राकृत में दत तिलकसुन्दरी" पद्यबद्ध नाटक है। और पन्नालाल महेश्वरसूरि "ज्ञानपंचमी कथा" और सस्कृत मे श्रीधर चौधरी कृत "भविष्यदत्त चरित्र" हिन्दी-गइ मे लिखा कवि भविष्यदत्तचरित्र लिख चुके थे। अपभ्रश में भी मिलता है। इसी प्रकार भविष्यदत्त तथा पंचमी व्रत कथा विबुध श्रीधर "भविष्यदत्तचरित्र" की रचना कर चुके थे।
के नाम से कई प्रज्ञात रचनाए हिन्दी मे लिखी मिलती "ज्ञान पचमी कथा" और 'भविमयत्तकहा' में कई बातों में है। गुजराती में वणारसी कृत "जान पंचमी चैत्यवन्दन" मन्तर है। मुख्य रूप से ज्ञान पंचमी कथा मे वरदत्त और ज्ञान-पचमी उद्यापनविधि स्वाध्याय, और विजयलक्ष्मीमरि गुणमंजरी की कथा वर्णित मिलती है। पात्रों में नाम-भेद
रचित "ज्ञान पचमीदेववन्दन", ज्ञान-पचमी स्वाध्याय के साथ ही कही-कही कार्य-व्यापारो मे भी अन्तर मिलता
तथा गुणविजय कृत "ज्ञान पंचमी स्तवन" पादि है । परन्तु दोनो का उद्देश्य एक है। और कथा-वस्तु भी
रचनाएँ मिलती है१७ । मस्कृत में मेघविजय विरचित लगभग ममान है। केवल नामों में अन्तर है, मुख्य कामो "पचमी कथा" और क्षमा कल्याण कृत "सौभाग्य पचमी" मे नही । प्राकृत में लिखी गई कथा अत्यन्त मंक्षिप्त पद्य- - बद्ध है। उसमें भविष्यदत्त कथा का उत्तरार्द्ध नहीं है।
१४ मुहमद्दमाहो विरामो पयडो, वस्तुत धनपाल की भविष्यदत्त कथा का कथानक अपभ्रंश
लियो तेण सायरपमाणेहि दण्डो, के कवि विबुध श्रीधर से लिया गया है। जिसमे कई
उसविकट्टि णिलिवि मलिनोवि माणो, बातो मे अद्भुत साम्य मिलता है। परन्तु सिन्धुनरेश के
किमो रज्जु इकच्छत्ति उवयतमाणो। साथ भविष्यदत्त के युद्ध का वर्णन धनपाल की निजी
पयट्टे विदूसम्मि काले रउद्दे, कल्पना है जो पूर्ववर्ती रचनामो मे नही मिलती।
पहुत्तो सुवम जफरायवादे।
इहत्ते परत्ते सुहायारहेउ, जैन-साहित्य में भविष्यदत्त की कथा अत्यन्त विख्यात
तिणे लिहिय सुमपंचमी णियहं हेउ ॥ ग्रंथ-प्रशस्ति । रही है अतएव प्राकृत, सस्कृत, अपभ्रंश और हिन्दी तथा
१५. स. एच. डी. वेलणकर · जिनरत्नकोश, पृ० १४८ अन्य भाषामों में इस कथा के पद्यबद्ध लिखे जाने के
१६. वही, पृ०५५। १७. नेमिचन्द्र शास्त्री, जैन-साहित्य१३. डा. नागेन्द्र : अरस्तू का काव्य शास्त्र, पृ०७५ । परिशीलन, पृ० २०६।