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अनेकान्त
गया । उसका दूसरा विवाह सरूपा से हुआ। सरूपा स्व- भविष्यदत्त सब को भोजन कराता है। भविष्यानुरूपा के भाव से दुष्ट तथा रूपगविता थी। भविष्यदत्त ननिहाल में साथ सब माल जहाज पर चढा दिया जाता है । भविष्यापढ़-लिख कर बड़ा होता है। सरूपा के भी एक पुत्र नुरूपा को इतने में ही स्मरण हो जाता है कि वह सेज पर उत्पन्न होता है, जिसका नाम बन्धुदत्त रक्खा जाता है। नागमुद्रा भूल पाई है। भविष्यदत्त उसे लेने के लिए जाता बन्धुदत्त नगर मे बहुत उत्पात मचाता है। नगर के लोग है। तभी बन्धुदत्त लोगो के मना करने पर भी जहाज मन्त्रियो से निवेदन करते है। अन्त में प्रधान नगर-सेठ से खुलवा देता है। भविष्यदत्त बहुत पछताता है । भौजाई के कह कर उसे व्यापार के लिए भेजते है। पाँच सौ व्या- रूप-सौन्दय से प्राकृष्ट होकर बन्धुदत्त उससे अनुनय-विनय पारियों का मुखिया बनकर बन्धुदत्त समुद्र के मार्ग से करता है, वह मौन धारण कर लेती है। भोजन-पानी जहाज पर बैठकर यात्रा करता है। भविष्यदत्त भी साथ त्याग देती है । देवी उसे स्वप्न देती है कि एक महीने मे मे जाने के लिए तैयार होता है। उसकी माता कमलश्री पति के दर्शन होगे। मार्ग में जल-देवता के प्रभाव से बहुत समझाती है। अन्त मे मामा आदि के कहने से वह तूफान पाता है । जहाज डगमगाने लगता है । सभी बन्धुभविष्यदत्त को भेज देती है । बन्धुदत्त की माता बडे भाई दत्त को धिक्कारते है । भविष्यानुरूपा से क्षमा मांगते है। भविष्यदत्त के सम्बन्ध मे सब कुछ बता देती है और किसी तब कही लहरे शान्त होती है और गजपुर की ओर भागे प्रकार मार्ग मे कही छोड पाने या समुद्र में गिरा देने की बढ़ते है । मभी अपने-अपने घर पहुंच जाते है । कमलश्री सीख देती है। कई दिनो के बाद बन्धुदत्त का जहाज भविष्यदत्त को नही आया हुआ देखकर निराश होती है । मैनागद्वीप के तट पर लगता है । सब लोग उतरकर खाने वह सबसे पूछती है । मब यही कहते है कि किसी द्वीप मे पीते है । फल-फूलो को वन में से तोड़ते है। भविष्यदत्त रह गया है, आ जायगा । बन्धुदत्त के विवाह की तैयारियाँ फूलो को चुनता हुमा दूर निकल जाता है। अवसर पाते ही होती है। पन्द्रह-बीस दिन बाद भविष्यदत्त घर लौट प्राता बन्धुदत्त भविष्यदत्त को वही छोड़कर जहाज चलवा देता है है। मामा के साथ वह राजा को सब वृत्तान्त सुनाता है । भविष्यदत्त रोता-गात जगल मे भटकता है। एक रात माता को भेजकर नागमद्रिका के अभिज्ञान से वह भविष्यानुधने जगल में, जगली जानवरो के बीच एक सिला पर सोता रूपा को राजदरबार में बुला लेता है । राजा सभा बुलाना हुमा बिताता है दूसरे दिन एक गुफा में से निकल कर एक है। सारा रहस्य खुल जाता है। नगर सेठ और बन्धुदत्त उजाड़ नगरी मे पहुँचता है । उस तिलकपुर में उसे केवल को दण्ड मिलता है। जनता विरोध करती है । भविष्यदत्त एक सुन्दर राजकुमारी को छोडकर कोई नही मिलता। बह के कहने पर धनवइ को छोड़ दिया जाता है। राजा उससे सारा हाल पूछता है । वह कहती है-राक्षस ने इस अपनी कन्या सुमित्रा का विवाह भविष्यदत्त के साथ करने नगरी को उजाड़ दिया है। तुम भी उससे नहीं बच का निश्चय प्रकट करता है। सकते। राक्षस के पाने पर वह ललकारता हुआ युद्ध के
इसी बीच पाचाल नरेश की सेना पाकर गजपुर को लिए तैयार हो जाता है । राक्षस उसके साहस तथा परा
घेर लेती है। सुमित्रा को मागने और अधीनता स्वीकार क्रम से प्रसन्न होकर उन दोनो का विवाह कर देता है।
कर लेने का प्रस्ताव रखा जाता है। राजा बड़े प्रसमजस दोनों वहां पर बारह वर्षों तक साथ में रहते है। एक
मे पड जाता है। भविष्यदत्त इस प्रस्ताव को ठुकरा देता दिन भविष्यानुरूपा ससुराल के हाल-चाल पूछती है तो
है। स्वयं सेना का नेतृत्व कर युद्ध लड़ता है और चित्रांग
मेन भविष्यदत्त को माता का स्मरण हो पाता है। वह दूसरे
ता ह । पह दूसर को बन्दी बना लेता है। सुमित्रा से उसका विवाह हो
। दिन ही उस गुफा में से होकर समुद्र-तट पर पहुँचते है।
जाता है । वह राजा बन जाता है। धनवइ भी अपनी भूल बारह वर्षों के बाद बन्धुदत्त का जहाज फिर उमी। म्वीकार कर पूर्वत्यक्त कमलश्री को अपना लेता है। सभी तट पर लगता है। लोग भविष्यदत्त को पहचान लेते हैं। का जीवन प्रानन्द से बीतता है। बन्धुदत्त गले मिलता है। भाई से क्षमा मांगता है। प्रतएव अपभ्र श की यह कथा लोक-कण है, जिसमे