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भनेकान्त (१) सेठ धनवइ का कमलश्री को त्याग कर और बड़ी को तथा उसके पुत्र को तिरस्कार की दृष्टि से दूसरा विवाह सरूपा से करना और बन्धुदत्त का जन्म देखा जाता है। सौतेला भाई कुछ तो स्वभाव से भौर होना । भविष्यदत्त का ननिहाल में पालन पोषण होना। कुछ माता के सिखाने से विमाता के लड़के को धोखा देकर
(२) पांच सौ व्यापारियों तथा बन्धुदत्त के साथ मार डालने की चेष्टा करता है पर इस कार्य में उसे पूर्ण भविष्यदत्त की कंचनद्वीप की यात्रा, मार्ग मे मैनागद्वोप मफलता नही मिलती। इतना ही नहीं, विमाता का पुत्र में भविष्यदत्त को अकेला छोडकर बन्धुदत्तकी प्राजा से अपने भाइयो की सहायता या सकट से उनकी रक्षा जहाज का कचन द्वीप के लिए प्रस्थान करना। करता है। किन्तु वही सौतेला भाई फिर से धोखा देकर
(३) भविष्यदत्त का उजाड नगर तिलकपुर में उसका अनिष्ट करने की चेष्टा करता है और अन्त में प्रवेश करना तथा अपने साहस से गक्षस को प्रसन्न कर असफलता ही उसके हाथ लगती है। राजकन्या भविष्यानुरूपा का पाणिग्रहण कर बारह वर्षो पहली मुख्य घटना से सम्बन्धित एक अन्य घटना के बाद अपने नगर के लिए प्रस्थान कर समुद्र तट पर है-माता का पुत्र से विछोह हो जाने के कारण पुन. पहुँनना । मयोग से बन्धुदत्त का मिल जाना । छल प्राप्ति के लिए व्रत करना और परिणामस्वरूप पुत्र मे भेट पूर्वक भविष्यदत्त को छोडकर भविप्यानुरूपा के साथ होना। ऐसी कई व्रत-कथाएं है जिनमे बाहर गये हुए अतुल मपनि लेकर बन्धुदत्त का स्वदेश-गमन करना। अथवा किसी प्रकार विछुड़े हुए पुत्र या पति की प्राप्ति के माग मे जल-देवता के प्रभाव मे तूफान का आना और लिए व्रत-विधान निर्दिष्ट है तथा जिनके पालन से मनोभविष्यानुरूपा के सतीत्व की रक्षा होना। एक मास की वाछिन फल की प्राप्ति होती है। स्कन्द पुराण के अन्तर्गत अवधि में पति से मिलने का स्वप्न देखना । घर पहुँच "गणेश चतुर्थी" की कथा ऐसी ही कथा है जिसमे इस कर बन्धुदत्त की भविष्यानुरूपा के साथ विवाह की तैयारी व्रत के पालन से रानी दमयन्ती को सातवे महीने मे पुत्र होना। इतने में भविष्यदत्त का लौटकर घर पहुँचना । गजा और पति की भेट होती है । इसी प्रकार ठाकुर 'मारझुलि' को सच्चा वृत्तान्त ज्ञात होने पर बन्धुदत्त को दण्ड देना। मे मद्भलित 'कलावती राजकन्या' नाम की कहानी में भी
(४) राजा का भविष्यदत्त के साथ सुमित्रा का कलावता एक महीने के व्रत के फलस्वरूप पति को तथा व्याहने का प्रस्ताव रखना, धनवइ का उसे स्वीकार बुद्ध और मुतुम की माता जल-देवता की प्राराधना से करना। पाचाल नरेश चित्राग का सुमित्रा को मागना यात्रा से लौटे हुए पुत्र को प्राप्त करती है२० । इसी प्रकार और सकल राज्य में वश मे करने तथा कर देने का माहसिक गजकुमारो तथा सौदागगे की अनेक कहानियाँ प्रस्ताव रखना , भविष्यदत्त का विरोध करना। युद्ध के मिलती है जिनमे समुद्री-यात्रा करते समय अनेक सकटो लिए तैयारी । भविष्यदत्त का चित्राग को बन्दी बनाकर
को झेलना पड़ता है और अन्त मे उनसे उबर कर कचनसुमित्रा से विवाह करना । बरसो तक सुखोपभोग करने
कामिनी एव अतुल वंभव प्राप्त करने का उल्लेख मिलता के बाद संन्याम मे दीक्षित होना तथा तपस्या कर परमपद
है । वस्तुतः सकट-निवारण के लिए व्रत-उपवास का पालन को प्राप्त करना।
करना भारतीय जीवन की चिर-प्रचलित लोक-रूढि है ।
अतएव लोक-कथानो मे उनका निर्देश होना स्वाभाविक ये मुख्य घटनाएँ अपने आप में छोटी-छोटी चार
हो है। इसी प्रकार सकट में पड़े बिना, और साहसी कार्यो लोक-कथाएँ है जो प्राज भी अलग-अलग कई रूपो मे
को बिना किए हुए मनुष्य जीवन की समृद्धि को प्राप्त नही कही-सुनी जाती है। जहा तक कथा की पहली मुख्य
कर सकता। इसलिए इन कथानों में रोमांचक तथा प्रेरक घटना एव कहानी का सम्बंध है वह सौतेली मा की
तत्त्वो की सयोजना इस रूप में की गई है कि वे जीवन कहानी से सम्बन्धित है जिसमें एक ही राजा या सेठ की कई पत्नियो या दो रानियों में से सबसे छोटी के साथ २०. सं० दक्षिणारजन मित्र : ठाकुर मारझुलि, वागला और उसके पुत्र के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है रूपकथा, पृष्ठ १६ ।