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अनेकान्त
काव्य-दियाँ
प्रतीत होता है कि यह रचना की एक शैली थी जिममें मालोच्यमान कथाकाव्य में निम्नलिखित काव्यरूढ़ियों प्रबन्ध भार विषय का दाप्ट स अन्त्यानुप्रास छन्दोयोजना का पालन हुमा है.-१. मगलाचरण, २. विनय-प्रदर्शन, नियत पक्तियों में होती थी। साधारणतया एक कडवक मे ३. काव्य-रचना का प्रयोजन, ४. सज्जन-दर्जन वर्णन, कम से कम कुल पाठ यमक या मोलह पक्तियाँ देखी ५. वन्दना (प्रत्येक सन्धि के प्रारम्भ मे स्तुति या बन्दना), जाता है। इसी प्रकार मोलह मात्रामों का एक पद कहा ६. श्रोता-वक्ता शैली और प्रात्म-परिचय ।
जाता है। किन्तु इसके मम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि अपभ्रश के कथाकाव्यों मे काव्य-रूढियाँ प्रबन्ध-रचना
निश्चितता नही है । मामान्यतया कडवक के अन्त में दो
पक्तियो का दोहा के आकार मे मिलते-जुलते छन्द देखें की अंग विशेष लक्षित होती है। संस्कृत के प्रबन्ध-काव्यों
जाते है । यह काव्य पद्धडिया शैली में लिखा गया है। में मंगलाचरण, सज्जन-दुर्जन वर्णन ही किमी-किमी मे दिखाई पडता है । रूढ नही है। परन्तु अपभ्रंश के प्रबन्ध
काव्य-सौष्ठव काव्यों में इनका विशेष ध्यान रखा गया है । इसी रूढिके भविष्यदत्त कथा मे कई भावपूर्ण तथा मार्मिक स्थल अन्तर्गत कवि प्रात्म-परिचय भी दे सकता था। अत्यन्त मिलते है जिनमें कवि की प्रतिभा और भावकता का प्राचीन कवियों में अपना परिचय देने की रूढि नही थी। मच्चा परिचय मिलता है। छोटे भाई को बड़े भाई का
अकेला बीहड़ द्वीप मे छोड देने से बढ़ कर मार्मिक करण वस्तु-वर्णन पालोच्य ग्रन्थ में वस्तु-वर्णन कई रूपों में मिलता है।
दृश्य और क्या हो सकता है। भविष्यदत्त की उस समय
बही दशा होती है जो किमी साधारण जन की हो सकती कवि ने जहाँ परम्पगयुक्त वस्तु-परिगणन और इतिवृत्तात्मक शैली को अपनाया है वही लोक-प्रचलित शैली है'
है। वही धरती पर हाथ पटकता है, छानी कूटता है और मे वस्तु-वर्णन कर लोक-प्रवृत्ति का परिचय दिया है। अत्यन्त दुखी होकर कहता है कि माता ने पहले ही कहा परम्परागत वर्णनो में नगर-वर्णन, नख-शिख वर्णन और
था पर मै नही माना। मेग कार्य ही नष्ट हो गया। मै प्रकृति-वर्णन दृष्टिगोचर होते है जिनमें कोई नवीनता
व्यापार के लिए प्राया था पर यह अद्भुत दृश्य देख रहा हूँ लक्षित नहीं होती मुख्य वर्णन है-नगर-वर्णन, कचनद्वीप
कि भीत ही मेरे सामने अड गई है । इस प्रकार के विविध यात्रा वर्णन, समुद्र-वर्णन, विवाह-वर्णन, युद्ध-वर्णन, बमत- भावो में डूबता उतराता भविष्यदत्त अपने भाग्य को वर्णन, राजद्वार-वर्णन, मैनागद्वीप-वर्णन, बाल-वर्णन, रूप- कोगता हुप्रा कह उठता है कि मेरा भाग्य ही उलटा है। वर्णन तथा तेल चढाने का प्रादि का वर्णन ।
किसी का क्या दोष ? इस प्रसग में कवि ने भविष्यदन
की विविध मानसिक दशाओ की विस्तृत अभिव्यञ्जना ___ इन वर्णनों मे कही-कही उपमानो मे नवीनता, लोक
की है। तत्व और स्थानीय विशेपताएं मिलती है जिनसे स्पष्ट हो
बन्धुदत्त को कचनद्वीप की यात्रा से घर लौटने पर जाता है कि इस काव्य पर लोकजीवन का प्रभाव
जितनी अधिक प्रसन्नता होती है उसमे कही अधिक नगर विशेप है।
के लोगो को हर्ष होता है। उसके लौटने के समाचार
मिलते ही लोग हर्ष में पगे हुए नदी के तीर पर दौड़े-दौड़े अपभ्रश के प्रबन्धकाव्यो की भॉति इस कथा-काव्य जाते है । वे इतने अधिक हर्ष से उल्लसित हैं कि किसी ने में भी कडवकबन्ध है जो सामान्यन दस से सोलह पक्तियो सिर का कपडा पहन लिया है, किसी ने शीघ्रता में हाथो का है। कम से कम दस और अधिक से अधिक तीस के कगन कही के कहीं पहन लिए है, कोई पुरुष किसी स्त्री पंक्तियाँ एक कडवक में प्रयुक्त है। कडवक् पज्झट्टिका, से ही प्रालिंगन करने लगा, किसी के प्रग का प्रतिबिम्ब अडिल्ला या वस्तु से समन्वित होते है। कहीं-कही दुवई कही और पडने लगा, किसी ने किसी दूसरे का सिर चूम का प्रयोग भी मिलता है। इस भिन्नता का कारण यही लिया। इस प्रकार सभ्रम और पुलक से भरे हुए लोग
शैली