Book Title: Anekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 290
________________ अपभ्रंश का एक प्रमुख कथाकाव्य २७१ धर्म और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में कतिपय कयाभिप्राय न्वित औचित्यपूर्ण लक्षित होती है। परन्तु अवान्तर कथानों वर्णित है । ऐसी कथाएँ प्रायः लोक-जीवन और मस्कृति की विशेष संयोजना से कही-कही मध्य और अन्तिम भाग को समझने के लिए महत्वपूर्ण होती है। भविष्यदन की गतिहीन तथा प्रभावहीन जान पड़ता है। वस्तुत: प्रबन्ध यह कथा उत्पाद्य है, जिसमें मुमित्रा के लिए युद्ध, मरिण- का पूर्वाद्ध जैसा कसा हुआ है वैमा उत्तगई नहीं। इसभद्र यक्ष की सहायता से मैनागद्वीप से गजपुर पहुँचने और लिए कही-कही प्रबन्ध-रचना में शिथिलता दिखाई पड़ती भविष्यानुरूपा के दोहला के समय तिलकपुर में भ्रमण की है। एक तो यही कारण है और दूमरा प्रादर्श महत् न घटनाएँ एव वृत्त कल्पित जान पड़ता है। इसका मुख्य होने के कारण इसे महाकाव्य नहीं कहा जा सकता है। कारण धार्मिक वातावरण प्रस्तुत करना है। यह मस्कृत के एकार्थक कोटि का प्रबन्ध-काव्य है जो कथा काव्य की विशेप विधा के अनुरूप लिखा गया है । चरित्र-चित्रण ___समालोचकों ने प्रबन्ध-काव्य मे कार्यान्वय की प्रावघटनामो की भाँति भावो मे मघर्ष का चित्रण करना श्यकता पर अधिक बल दिया है। डा. शम्भूनाथसिह के अपभ्र श-कथाकाव्यो की मामान्य प्रवृत्ति है। यद्यपि मत में रोमाचक कथाकाव्यो में कार्यान्विति नहीं होती और भविष्यदत्त सामान्य व्यक्ति है इसलिए भाई के द्वारा द्वीप न नाटकीय तत्व ही अधिक होते है। उनका कथानक मे छोड़ दिए जाने पर ग्रामू बहाता है, पश्चाताप करता प्रवाहमय और वैविध्यपूर्ण अधिक होता है पर उसमे है परन्तु विनय, गालीनता, साहम और धैर्य आदि गुणो कमावट और थोडे में अधिक कहने का गुण, जो महाकाव्य से मयुक्त होने के कारण वह धीरोदान नायक की भाँति का प्रधान लक्षण है, नही होता२३ । परन्तु भविष्यदत्त की चित्रित किया गया है। अपभ्रश के कवियो ने अपने कथा में थोडे मे अधिक कहन का गुण कूट-कूट कर भग काव्यो में मामान्य व्यक्ति को भी नायक मानकर उसके हमा है । कार्यान्विति भी प्रादि से अन्त तक बराबर बनी क्रिया-कलापो से उदात्त जीवन में उन्हें प्रतिष्ठित किया है हुई है। मम्भवतः इमीलिए विण्टरनित्स ने इसे रोमाचक और इसका मूल कारण उनकी धार्मिक वृत्ति जान पड़ती महाकाव्य माना है२४ । प्रबन्ध-काव्य के मौलिक गुणो की है, जिमके अनुसार वे "नर से नागयण" वनने की मान्यता दृष्टि से यह एक सफल रचना कही जा सकती है। क्योकि मे विश्वास रखते है। अतएव भविष्यदत्त धीर, बीर ही इसमें कथानक का विस्तार शान के लिए न तो नही साहसी और क्षमाशील भी है। जातीय गुणों के साथ चरित्र-चित्रण के लिए हमाहे, जो महाकाव्य का प्रधान हा उमम क्षात्रधम का दप पार तज भा दिखाई पडता हा गुग्ण माना जाता है। चरित्र-चित्रण मे मनोवैज्ञानिकता प्रतएव सिन्धूनरेश के अन्यायपूर्ण प्रस्ताव से असहमत हो का सन्निवेश इस काव्य की विशेपता है। फिर, कथानक कर वह मबसे आगे बढकर युद्ध लड़ता है और निर्भीकता मे नाटकीय तत्वो का भी समावे के माथ अपनी वीरता का परिचय देता है। इस प्रकार पर नारकीय चित्रो की प्रशिक्षार्टि सामान्य वणिक्पुत्र होकर भी भविष्यदत्त राजीचित इस कथाकाव्य का महत्व तीन बातों में है-पौराणिकता प्रवृत्तियो एव गुणो को प्रदर्शित कर अन्त में राजा बनता से हटकर लोक-जीवन का यथार्थ चित्रण करना, काव्यहै और सफलता से राज्य शासन करता है । लखक ने जहाँ रूढियो का समाहार कर परम्परागत प्रवृत्ति का निर्वाह देवी सयोग, आकस्मिकता और असाधारण वृत्ता की करना और चलते वर्णनो के बीच काव्य को मवेदनीय सयोजना धार्मिक प्रभाव स्पष्ट करने के हेतु की है वही बनाना। नायक चारित्रिक गुणों पर भी प्रकाश डाला है। २३. डा० शम्भूनाथसिंह : हिन्दी महाकाव्य का स्वरूपप्रबन्ध-संघटना विकास, पृष्ठ ८८। कथा-बन्ध की दृष्टि से भविष्यदत्त कथा प्रबन्ध-काव्य २४. एम. विण्टरनित्स : ए हिस्ट्री प्राव इण्डियन लिटहै जिसमें घटनामो की कार्य-कारण योजना मोर रसा- रेचर, १९३३, खण्ड २ पृष्ठ ५३२ ।

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