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अपभ्रंश का एक प्रमुख कयाकाग्य
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भाषा में जो वैकल्पिक रूपो की प्रचरता, लोच और व्या- स्वयम्भू का उतनो प्रभाव नहीं है जितना कि विबुध श्रीधर करण के नियमों की शिथिलता दिखाई पड़ती है वह प्रा. विरचित "भविष्यदत्तचरित्र" बारहवी शताब्दी (वि०म० हेमचन्द्र के अपभ्रंश-व्याकरण मे नही मिलती। इसका १२३०) की रचना मे है । लोक-जीवन का प्रभाव पौर यही अर्थ है कि धनपाल ने जब अपने इस काव्य को लिखा अभिव्यंजना की लोक-प्रचलित शैली धनपाल ने सम्भवतः होगा तब अपभ्रश लोक मे बोली जाती थी और हेमचन्द्र विबुध श्रोधर मे ग्रहण की होगी। क्योकि चौदहवीं के समय मे (बारहवी शताब्दी) में आकर वह केवल शताब्दी में पाकर अपभ्र श रूढ हो चुकी थी। उसका साहित्य की भाषा बन कर रह गई थीह। डा० भायाणी विकास रुक गया था। वह परिनिष्टित हो चुकी थी। ने स्वयम्भू के "पउमचरिउ" और धनपाल की 'भविसयत्त- किन्तु धनपाल की भापा मे जो लोक-तत्त्व मिलता है वह कहा' के कुछ प्रशो की तुलना करते हए यह निश्चय किया विबुध श्रीधर का प्रभाव कहा जा सकता है। इस प्रकार है कि धनपाल के मामने प्रारम्भिक कडवको को लिखते अन्तरग प्रमाणो से यह प्रतीत होता है कि धनपाल का समय "पउमचरिउ" विद्यमान था१०। और इन सब जन्म तरहवा' शताब्दा महुमा थापार वि० स० १२९ प्रमाणो के माधार पर विद्वानो ने धनपाल का समय दमवी में उन्होंने "भविमयत्तकहा" की रचना की थी। यह या ग्यारहवी शताब्दी माना है। यह तथ्य एक प्रकार से कथा-काव्य कवि के शब्दो मे-वि० सवत्सर तेरह सौ रूढ हो गया कि "भवियमत्तकहा" दमवी शताब्दी की तेरानवे मे, पोप मास मे, शुक्ल पक्ष मे, बारस सोमवार रचना है। परन्तु उपलब्ध प्रति के आधार पर अब इन रोहिणी नक्षत्र में, वाधू के लिए यह मुन्दर शास्त्र ममाप्त मतो का खण्डन हो गया है। लेखक को प्राप्त हई इम हुआ था११ । कवि ने उस ममय दिल्ली के सिंहासन पर कथाकाव्य की मबसे प्राचीन प्रति में यह प्रमाणित है कि मुहम्मदशाह का शामन करना लिया है। इतिहाम मे इसका रचना-काल दमवी शताब्दी न होकर चौदहवीं बादशाह का नाम मुहम्मद विन तुगलक मिलता है। कितु शताब्दी है।
उमके अन्य नामो मे मुहम्मद तुगलक और मुहम्मदशाह यदि हम धनपाल की भविष्यदन कथा का प्रारम्भिक का भी उल्लेख मिलता है१२ । मुहम्मद बिन तुगलक का भाग यह मानकर छोड दे कि पूर्ववर्ती प्रबन्ध-काव्य की शामनकाल १३२५-५१ ई. माना जाता है। मालोच्यमान परम्परा उत्तरकालिक प्राकृत तथा अपभ्रश प्रबन्ध काव्यो रचनाकाल १३३६ ई० है। ग्रन्थ की पुष्पिका मे जिस की रचना होती रही है इमलिए महाकवि स्वयम्भू के
ताली नदी कितनी माताली "पउमचरिउ" का प्रभाव प्रस्तुत काव्य मे मिलता है तो
होना चाहिए क्योकि स० १२३० तेरहवी शताब्दी स्वाभाविक ही है । दोनो को ध्यान में देखने पर स्पष्ट हो
-सम्पादक जाता है कि धनपाल ने “पउमचरिउ" को आदर्श मानकर
उक्त निष्कर्षानुमार धनपाल का जन्म विक्रम की कुछ बाते प्रभाव रूप में और कुछ ज्यो की त्यो ग्रहण की
१४वी शताब्दी में हमा था, तेरहवी में नहीं । क्योंकि है। उदाहरण के लिए-जिस प्रकार केतुमती पुत्र के
उसका रचनाकाल स० १३६३ दिया है । -संपादक वियोग मे "हा पुत्त-पुत्त" कह कर विलाप करती है वैसे
११. सुमवच्छरे अक्किरा विक्कमेण, ही कमलश्री भविष्यदन के शोक मे "हा हा पुत्त-पुत्त" ।
महीहि तेणबुदि तेरहमएण । कहती हुई करुण विलाप करती है। इससे स्पष्ट है कि
वारस्मय पूमेण सेयम्मि पक्वं, धनपाल स्वयम्भू के पश्चात् हुए । भौर वर्षों के अन्तराल
तिही वारमी मोमिगेहिणिहि रिक्वे ।। से नही वरन शताब्दियो के बाद हुए। अतएव उन पर
-भविसयत्तकहा की प्राचीनतम हस्तलिग्विन प्रति की ६. भविसयत्तकहा की भूमिका, पृ०४।
अन्तिम प्रशस्ति मे । १०. डा. हरिबल्लभ चुनीलाल भायाणी : पउमचरिउ की १२. द दिल्ली सल्तनत : प्रकाशित भारतीय विद्याभवन भूमिका, पृष्ठ ३६-३७॥
प्रथम सस्करण, पृ०६१।