________________
यज्ञ और अहिंसक परम्पारएं
खुल जाते है।" राजा सगर को विश्वास दिलाकर पर्वत यज्ञ पूर्णत. औषधि यज्ञ था। एमसे यह भी स्पष्ट होता है ने माठ हजार पशु यज के लिए प्राप्त किए । मत्रोच्चारण कि श्रीकृष्ण भी पशु-बलि के नितान्त विरोधी थे। उन्होने पूर्वक उन्हे यज्ञ-कुण्ड मे डालना शुरू किया। महाकाल वसु को दर्शन इसीलिए दिया कि उसने अपने यज्ञ मे पशुअसुर ने दिखाया कि वे मब पशु विमान मे बैठ सदेह बलि का सर्वथा तिरस्कार किया था। स्वर्ग जा रहे है । उस माया में लोग मूढ हो गए । यज्ञ प्राणी यज्ञ में मग्ने को स्वग प्राप्ति का उपाय मानने लगे। राजा
जैन पुराणों के अनुसार पशु बलि वाले यज्ञों का वमु की सभा में भी नारद और पर्वत का विवाद हुमा ।
प्रारम्भ बीसवे तीर्थडुर मुनिसुव्रत के तीर्थकाल में हुमा। गजा वमु ने पर्वत की मा (अपने गुरु की पत्नी) के
यही काल राम लक्ष्मण का अस्तित्व काल है। इस काल प्राग्रह मे पर्वत का पक्ष ले अज का अर्थ बकग किया।
मे महाकाल अमुर और पर्वत के द्वारा पशु यज्ञ का विधान उसने कहा-पर्वत जो कहता है, वह स्वग का साधन है। किया
किया गया। महर्षि नारद ने उसका घोर विरोध भय मुक्त होकर मव लोग उसका आचरण करे । इस असत्य- या वाणी के माथ-माथ वसु का मिहामन भूमि में धम गया२।। इन दोनो पाख्यानों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते
वैश्य तुलाधार ने पशु हिमा का विरोध किया तो है कि प्रागभ में वैदिक लोग भी यज्ञ में पशु-बलि नहीं
मुनि जाजल ने उमे नास्ति कहा। इम पर तुलाधार ने दे-थे । महाभारत के अनुमार वह देवतायी और उनर
कहा-जाजले ! मैं नास्तिक नहीं हूँ, और यज्ञ का निन्दक
भी नही हूँ। मै उस यज्ञ की निन्दा करता है, जो अर्थपुगगग के अनुसार महाकाल प्रसुर और पर्वत ब्राह्मण के
लोलुप नास्ति व्यक्तियो द्वारा प्रवर्तित है३ । हिसक यज्ञ अ.ग्रह में शुरू हुई।
पहले नही थे। यह महाभारत से प्रमाणित होता है। राजा वमु पहले पशु-यज्ञ का विरोधी और हिमा
राजा विचरन्नु ने देखा-यज्ञशाला में एक बैल की गर्दन प्रिय था। उसने एक बार यज्ञ किया। उममे किमी पशु
कटी हुई है बहुत मी गौए आर्तनाद कर रही है और का वध नही हुआ उसमें जगल में उत्पन्न फल-पहल प्रादि पदार्थ ही देवताग्रो के लिए निश्चित किए। उग ममय
कितनी ही गौवे खडी है । यह देव गजा ने कहा-गौवो
का कल्याण हो । यह नब कहा जब हिमा प्रवृत्त हो रही देवाधिदेव भगवान् नागयण ने प्रसन्न होकर गजा को
थी। जैन साहित्य में मिलना है कि ऋपभपुत्र भग्न के प्रत्यक्ष दर्शन दिया । किन्तु दूसरे किमी को उनका दशन
द्वाग वेदो की रचना हुई थी। उनमे हिसा का विधान नही हुमा३ । इम प्रकरण मे स्पष्ट ज्ञात होता है कि वसु हिमा
नही था। बाद में कुछ व्यमियो द्वारा उनमें हिंमा के धर्मी और निगशी कामनामो से मुक्त था । उसने मभव
विधान कर दिए गए। इस विषय में महाभारत को भी है परम्परा के निर्वाह के लिए यज्ञ किया। पर उमका
सहमति है कि वेदो मे पहले हिमात्मक विधान नहीं थे।
वहाँ लिग्वा है-मुग, पासव, मधु, माम, तिल और चावल १ उत्तरपुराण, पर्व ६७, श्लोक ४१३-४३६ २. महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय ३३६, श्लोक १०-१२ १ उनपुगण, पब ६७, श्लोक ३२७-३८४
सम्भूता मर्वसम्भारास्तस्मिन् गजन् महाव्रती। २. उत्तरपुगण, पर्व ६७, श्लोक ३८५-४४५ न तत्र पशुधातोऽभूत् स गजव स्थिनोऽभवन् । ३ महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २६३, श्लोक २-१८ अहिस्र शुचिरक्षुद्रो निराशी कर्मसस्तुत. ।
“छिन्नस्थूण वृप दृष्ट्वा विलाप च गवा भृशम् । प्रारण्यकपदोद्भूता भागास्तत्रोपकल्पिता ।।
गोग्रहेऽयज्ञवाटस्य प्रेक्षमाणः म पार्थिव ॥ प्रीतस्ततोऽस्य भगवान् देवदेव पुगतन ।
स्वस्ति गोम्योस्तु लोकेषु ततो निर्वचन कृतम् । साक्षात् त दर्शयामास सोऽदृश्योन्येन किनचित् ॥ हिसायां हि प्रवृत्तायामाशीषा तु कल्पिता" ३. महाभारत शान्तिपर्व, अध्याय ३३६ श्लो० १०-१२ ४. महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २६५, श्लोक २३