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ब्रह्म जीवंधर और उनकी रचनाएँ
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घोल को तय्यार कराकर साथ में ले जा रही थीं । नेमि जिन मन विषाद युक्त बन गया। में आगे क्या करूंगा। जब ये राज्य भी भाभियों की प्रेरणा से बसन्तोन्मय के लिये तय्यार हो करेंगे । अन्यथा कोई अन्य उपाय करना होगा । परिणाम गये थे। उस समय नमि कुवर की सुन्दर श्यामलि मृरत स्वरूप हलधर ने किसी नमित्तिक को बुलाकर पूछा कि बड़ी मुहावनी लग रही थी । वनमें पहुच कर कृष्ण की राज्य कौन करेगा? तब नैमित्तिक ने कहा कि नेमि जिन रानियों ने नेमि जिन के शरीर पर वावन चन्दन का घोल खूब राज्य नहीं करेंगे। पश्चात कृष्ण ने उनके विवाह का उपक्रम छिड़का। उन के वस्त्र केशर के रंग से तरबतर हो रहे थे। किया। और भूनागढ़ के राजा उग्रपन की लाड़ली पुत्री फिर भी ये रानियां अंजुलियों में घोल भर भर कर उनके राजमती के साथ विवाह निश्चित कर द्वारिका वापिस पाए। अंगों पर छिडक रही थी। और अनेक दोहा, गीत तथा रास्ते में एक बाडे में पशुओं को इकट्ठा किया गया, और अनुष्टु । छन्दों में उनकी म्नुनि की जा रही थी । इस तरह सागथि से कहा गया कि यदि ममि जिन पूछे तो बतला बपन्ता मत्र मना कर सब जने द्वारिका वापिस लोट आये। देना कि पशु बारात के आतिथ्य के लिये रोके गये हैं। कवि ने नेमि जिन की बाल अवस्था की उन्हीं घटनाओं
यथा समय बागन सजधज कर चली, नेमि जिन ने का उल्लेख किया है, जिन का कथन हरिवंशपुराण पागदव- उन पशुओं की करुण पुकार सुनते ही रथ रुकवा दिया और पुराण और नेमि चरित वादि में पाया जाता है। मारायि से पूछा कि पशु क्यों रोके गए है । तब उस ने कहा
एक दिन राजसभा में नेमि जिन के बल का कथन हो कि बारात के आतिथ्य के लिये कराए गये है। यह सुनने रहा था, इतने में बलदेव ने कहा कि यहां नेमिजिन से कोई ही उन्हें वैराग्य हो गया। उन्हों ने कहा मुझे उस विवाह से अधिक बलशाली नहीं है। इस बात को सुनकर श्री कृष्ण क्या प्रयोजन है जिसमें निरपराध पशुयों को मनाया जाय । को अभिमान पा गया । और उन्हों ने मिजिन से कहा उन्होंने सभी पशुश्रीको छडवा दिया और रथ से उतर कर कि यदि पाप धधिक बलशाली हैं नो माल युद्ध कर देव । रेवन गिरि पर चले गये । और दिगम्बरी दीक्षा लेकर ग्रामलीजिये। तब नेमि कुमार ने कहा -
माधना में संलग्न हो गये। नेमि भणइ मुणि वधव ! मल्ल करहि मल युद्ध ।
जब इस बात को राजुलने सुना तो वह मूर्दा पाकर जुक्त नहीं नृप नंदन हं, जे निज मान घरंत ॥
गिर पड़ी। उपचार करने पर जब होश श्राया, तब वह जो तू बल देखो चहै, नमावइ ती मुझ पाउ ।
अपनी मग्वियों के साथ गिरनार पर जाने के लिये तय्यार अथवा कर कर सूधरी, के लहु अंगुलि नमाउ ।
हुई। माता पिता और परिजनों ने बहुत समझाया, परन्तु कन्ह वि लग्गउ पद हत्येहि, ने पुण नमइ न जाय ।
वह न मानी, और वहां दीक्षा लेकर तपश्चारण करने में निरत तिव मो धरि तिर्ण अंगली, नाम मुलायउ नाहु । रही । और प्रात्म-साधना द्वाग स्त्री लिग को छद कर गयण हि दुदुहि बाजा देव कर जयकार ।
अच्युत म्वर्ग में देय हश्रा। जैसा कि कवि के निम्न दोहे से मान गमायो प्रापण, विलखउ भयउ मुरार ॥
प्रकट है :नेमि जिन ने कहा, योद्धा मल्ल युद्ध करते हैं यह ठीक ----- है। किन्तु मल्ल युद्ध राजकुमारों को नहीं करना चाहिये। परम महोच्छवि श्राहा, नेमिजिन तोरण द्वार। जो तुम मेरे बल को देखना चाहते हो तो मेरा पांव अथवा हाथ तिव सवुदिहि दयावणे, पशुवहि कियउ पुकार ।।१०५ की अंगुली ही नमाश्रो । किन्तु कृष्ण से पांव नहीं नमाया दीन वयणु मुणेविकरि, मारथि पूछि नाम । जा सका । किन्तु नेमि जिन ने कृष्ण को अपनी अंगली से तिसु कहणी भेउ जाणियो, अधिहि नेमि जिन माम॥ १०५ ही झुला दिया । तब आकाश में दुदु भि बाजा बजा, और नेमामा इम बोलए विग धिग यह संसार । देवों ने जय जय कार किया, श्री कृष्ण विचार करते हैं कि राज्य विवाह कारणे को करइ जीउ संधार ॥ १.६ मैं यह नहीं जानता था कि नेमिजिन इतने बलशाली हैं, धरि विराग रथु फेरियउ, निहा ते करणाधार । इस घटना से उन का बड़ा अपमान हश्रा और उससे उ क पशु बंधन छोडाविकरि, नेमि डे गिरनार ॥ १..