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साहित्य-समीक्षा
१. दिगम्बर जैन मन्दिर मूर्ति-लेख संग्रह-संग्रह- दिल्ली-६ । पृष्ठ संख्या १६६, मूल्य दो रुपया ।
1 प्रकाशक, मूलचन्द किसनदास कापाडया, प्रस्तुत ग्रन्थ मे वती जीवन के अन्त में होने वाले क पडिया भवन गांधी चौक, सूरत । पृष्ठ ३३४ बिना मूल्य समाधि-मरण का सुन्दर विवेचन किया गया है। मूल ग्रथ ६ पैसे पोष्टेज भेजने पर प्राप्त ।
भ. सकल कीर्ति गणि की एक अप्रकाशित कृति है जिसे शिलालेखो की तरह मूर्तिलेख भी इतिहास मे उप- प्रकाश में लाया गया है। ग्रथ सस्कृत के २१५ पद्यो में योगी होते है । प्रस्तुत पुस्तक मे सूरत और मूरत जिले के समाप्त हुआ है। पुस्तक में मानव जीवन की सफलतामन्दिर और मूर्तिलेखो का संग्रह किया गया है। इससे सूचक सलेखना के साथ देहोत्सर्ग करने का विधि-विधान अनेक जातव्य बातो पर प्रकाश पड़ता है। इन मूर्तिलेखो अकित करते हुए उसकी महता पर प्रकाश डाला गया है से भट्टारको, प्राचार्यो, विद्वानो और श्रावक-श्राविकाग्रो अनुवाद मूलानुगामी है। ग्रन्थ को जो बाने अनुवाद मे आदि के इतिवृत्त का मकेत मिलता है, साथ ही मामयिक, स्पष्ट नहीं हो सकी, उनको स्पष्ट करने के लिए मम्पादक धार्मिक कार्यों की जानकारी भी प्राप्त होती है। ये लख ने विशेषार्थ द्वारा स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है और एतिहासिक तथ्यो के निर्णय में सहायक होते है। इनगे उसे दूसरे बारीक टाइप में छपाया है। विविध जातियो के इतिहास पर भी प्रकाश पडता है। वयोवद्ध विद्वान श्री जुगलकिशोर मुख्नार ने अपने इस मग्रह में विक्रम की १२वी शताब्दी से २०वी शताब्दी प्राक्कथन में सल्लखना के स्वरूप, उसका प्रयोजन तथा तक के मूतिलेखों का मग्रह किया गया है।
मल्लेखना की विधि का अच्छा दिग्दर्शन कराया है। श्री कापडिया जी प्रपनी लगन के एक ही व्यक्ति है, और सम्पादक ने अपनी प्रस्तावना में भ० सकलकाति जो इतनी वृद्धावस्था म भी समाज-गेवा के कार्यो में दिन- और उनकी कृति का ऐतिहासिक परिचय कराते हुए चस्पी रखते है । जैन समाज मे अनेक रिटायर्ड पेन्सन- मल्लेग्वना के सम्बन्ध में अच्छा प्रकाश डाला है, मरण के याफ्ता व्यक्ति है जो आजीविकादि कार्यो से पेन्मन पा गये १७ प्रकारो का उल्लेख करते हुए, समाधि-मरण कराने है और अपना शेष जीवन धार्मिक एवं मास्कृतिक कार्यों वाले माधुग्री की मख्या और उनका कर्तव्य भगवती में व्यतीत करना चाहते है। उन्हें ऐसे धार्मिक और आगधना के अनुसार बनलाया है। ममाधिमरण की साहित्यिक कार्यो में सहयोग देना चाहिए। भारत में जैन आवश्यक्ता और प्रयोजन का उल्लेख करते हुए समाधिमन्दिर और मूर्तियाँ प्रचुर मात्रा में है। यदि उन सबके मरण कराने में कम से कम दो व्यक्तियों के महयोग का लेखो का सकलन हो जाय, तो जैन इतिहास के निर्माण में निर्देश किया है। साथ ही परिशष्टो द्वारा हिन्दी के बहुत कुछ सहयोग मिल सकता है। प्राशा है समाज इस समाधि-विषयक अन्य पाठो को भी सङ्कलित कर दिया पर ध्यान देगी । पुस्तक सुन्दर और सग्रहणीय है। है। जो समाधि के इच्छुक व्यक्ति के लिये उपयोगी है।
२. समाधि मरणोत्साह-दीपक-मूलकता गरिण इसमे ग्रन्थ की उपयोगिता अधिक बढ़ गई है। ममाधिसकलकीति, अनुवादक प. हीरालाल जैन सिद्धान्त शास्त्री, मरण के इच्छुको को चाहिये कि वे इस ग्रन्थ को मगाकर प्राक्कथथन प० जुगलकिशोर मुख्तार, सम्पादक और अवश्य पढे और अपने इष्ट-मित्रों को पढ़ने की प्रेरणा प्रस्तावना लेखक प० दरबारीलाल जैन कोठिया एम. ए., करे। इस सुन्दर सस्करण के लिये सयोजक, सम्पादक न्यायाचार्य प्राध्यापक हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी, और प्रकाशक धन्यवाद के पात्र है। प्रकाशक मन्त्री वीरसेवा मन्दिर ट्रस्ट, २१ दरियागज ३. कुण्डलपुर- रचयिता श्री नीरज जैन, सुषमा