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होयसल नरेश विष्णुवर्धन और जैनधर्म
के० भुजबली शास्त्री, मूडबिद्रो
[होयसल नरेश महाराजा विष्णुवर्धन वैष्णव थे, किन्तु जैनधर्म पर भी उनका अगाध प्रेम था, यह बात विद्वान लेखक ने प्रामाणिक उद्धरणों से सिद्ध की है। अन्त में एक किंवदन्ती का उल्लेख है कि दारसमुद्र के ७५० मनोज जैन-मन्दिरों को विष्णुवर्धन ने ही, वैष्णव होने के उपरान्त नष्ट करवाया था। शायद लेखक इससे सहमत नहीं है। अच्छा हो कि कोई अन्य विद्वान इसे अपनी खोज का विषय बनायें।
-सम्पादक] पश्चिमी घाट की पहाडियों मे कडूर जिले के मूडगेरे किन्तु इस विषय में मै निम्नलिखित बातो पर विद्वानो का तालुका मे 'प्रगडि' नामक एक स्थान है। इसका प्राचीन ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। पहली बात यह है कि नाम शशकपुर था । यही स्थान होयमलो का उद्गम विष्णवर्धन की 'सम्यकत्व-चूडामणि' उपाधि स्वय उन्हे स्थान है। यहाँ पर आज भी वान्तिकादेवी का पुराना जैनधर्म-श्रद्धालु सिद्ध करती है । दूसरी बात है कि विष्णुमन्दिर मौजूद है । क्योकि इस समय यह मन्दिर वैदिको वर्धन के द्वारा मन्दिरो के जीर्णोद्धार और मुनियों के के अधिकार में है। पर मैने अपने एक लेख में इस आहार दानार्थ शल्य प्रादि ग्रामो का दान देना भी उन्हे वासन्तिकादेवी को पद्मावतीदेवी मिद्ध किया है। वासतिका स्पष्ट जैनधर्म का प्रेमी प्रकट करती है१ । तीसरी बात है पद्मावती का ही अपर नाम है। जैन मन्दिर होने के कि गगराज, हल्ल, भरत और मरियण्ण प्रादि कट्टर जनकारण ही मुनि सूदन यहाँ पर रहा करते थे। आज भी धर्मावलम्बियो को सचिव, सेनानायक जैसे दायित्वपूर्ण देखने पर वामन्तिका की मूर्ति पद्मावती की मूर्ति से ज्यो सर्वोच्च पदों पर स्थापित करना भी जैन धर्मानुयायियो की त्यो मिलती है।
से विष्णुवर्धन का अटूट अनुराग व्यक्त करता है। एक गेज यही पर 'मल' नामक एक सामन्न ने एक
। यहा पर 'मल नामक एक सामन ने एक खासकर गगराज पर विष्णुवर्धन को बड़ा गर्व था। व्याघ्र से सुदत्त मुनि की रक्षा करने के हेतु 'पोयसल' नाम नरेश प्रधान सेनानायक गगरज को बहुत मानते थे। प्राप्त किया था। यही 'पोयमन' नाम आगे चल कर श्रवण बल्गोल के लेख न०६० (२४०) में पाया जाता 'होयमल' बना। इस वश के भावी नरेशों ने अपने को है कि "जिस प्रकार इन्द्र का वज, बलराम का हल विष्णु 'मलपरोलगण्ड' अर्थात् पहाडी मामन्तो में प्रधान कहा है। का चक्र, शक्तिधर की शक्ति और अर्जुन का गाण्डीव उसी इसमे सिद्ध होता है कि प्रारम्भ में होयसल वश पहाडी प्रकार विष्णुवर्धन नरेश के गगराज सहायक थे।" गगराज था। इस वश मे पागे विनयादित्य, बल्लाल आदि कई जन्म से ही सेनानायक-परम्परा के रहे। पाप नृपकाम के प्रतापी नरेश हुए है। बल्कि बल्लाल ने ही अपनी राज- विश्वासपात्र महासेनानी एच के सुयोग्य पुत्र थे । अपने धानी शशकपुर से 'बेनूर' मे हटा ली। हाँ उनकी राज- शौर्य, साहम एव राजनिष्ठा के कारण गगराज द्रोहघरट्ट' धानी 'बेलूर' के सिवा द्वारसमुद्र या वर्तमान हलेबाडु मे -द्रोहियो को चूर-चूर करने वाले इस समुन्नत उपाधि से भी रहने लगी। बल्लाल के उत्तराधिकारी विष्णुवर्धन के विभूषित थे। विष्णुवर्धन अपने को पितृ तुल्य मानने पर समय मे होयसल नरेशो का प्रभाव बहुत बढ़ गया। भी गगराज उन्हे बड़ी गौरव-दृष्टि से देखते रहे। गगराज गगवाडि का पुराना राज्य मब उनके अधीन हो गया और वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध एव समरविद्या पारङ्गत थे। उन्हे जैन विष्णुवर्धन ने कई अन्य प्रदेश भी जीते ।।
अधिकाश विद्वानो का मत है कि प्रारम्भ में विष्णु- १. श्रवणवेल्गोल लेख न० ४६३ (शक १०४८) वर्धन जैनधर्मावलम्बी थे, पर बाद मे वैष्णव हो गये थे।
देखे।