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तृतीय विश्व-धर्म-सम्मेलन
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मयुक्त नैतिक शक्ति को सपोजित करने से सभव है। तृतीय विश्व धर्म सम्मेलन विश्व धर्म सम्मेलन का प्रायोजन इसका साधन है।
इस बार तृतीय विश्व धर्म सम्मेलन पुन दिल्ली मे विश्व धर्म सम्मेलन के प्रायोजन का एक शुभ परि- करने का निश्चय जागतिक परिस्थितियो को ध्णन में णाम यह भी होगा कि विभिन्न धर्मों का, सास्कृतिक रख कर किया गया है। यह प्राशा की जा रही है कि पृष्ठभूमि का, तथा ज्ञान-विज्ञान का ममन्वयात्मक अध्ययन इस बार सम्मेलन में बाहर से बहत बडी मख्या में प्रतिका योग्य अवसर प्रतिनिधियो को उपलब्ध हो सकेगा। निधि तथा गणमान्य महानुभाव पधारेंगे। जिससे अन्ततोगत्वा धर्म के सारभूत तत्त्वो पर मानव की यह प्रसन्नता की बात है कि विश्व धर्म मगम के श्रद्धा तथा निष्ठा जमेगी और विश्वबन्धुत्व की स्थापना प्रवर्तक मुनि श्री सुशील कुमार जी महाराज जिन्होंने मे सहायता मिलेगी। इस तरह धार्मिक शक्तिया विश्व- पहले दोनो सम्मेलन कगये थे, तृतीय विश्व धर्म सम्मेलन शान्ति की स्थापना की दिशा मे मक्रिय रूप से उपकारक को अपना पुनीत पाशीर्वाद प्रदान करने की अनुकम्पा की मिद्ध होगी। एक दिन ऐमा भी या मकता है जब धर्म है। के नाम पर होने वाले मघर्ष एवं पृथकतावादी तत्त्व इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए अनेक महाममाप्त होगे । इस अर्थ मे विश्व धर्म सम्मेलन अहिमा, पुष्पो, राजनेताप्रो एव विशिष्ट जनो की एक स्वागतसत्य और भातृभाव पर आधारित विश्व-शान्ति का एक समिति गठित की गई है। प्रबन्ध के लिये अनेक सक्षम पावन अभियान है।
समाज-सेवको के सहयोग से विभिन्न उपसमितियो का विश्व धर्म मगम द्वारा आयोजित विश्व धर्म सम्मेलनो निर्माण किया गया है । तृतीय विश्व धर्म सम्मेलन में भाग में भाग लेने वाले भिन्न-भिन्न धर्मों के प्रतिनिधि अपने लेने वाले ममम्त अतिथियों, प्रतिनिधियो तथा प्रागन्तुक ही धर्म का गुणगान नहीं करते बल्कि वह इम बात पर महानुभावो के स्वागत, सत्कार का यथेष्ट प्रबन्ध होगा। बल देते है कि उनका धर्म किस प्रकार समूचे विश्व मे खुला प्रामन्त्रण मानव कल्याणकारी शक्तियो का मयोजित करने में तृतीय विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिये उपयोगी सिद्ध हो सकता है ।
समस्त उन नागरिको एव मस्थायी को मारह निमन्त्रण
है जो धार्मिक, विश्व-बन्धुत्व की भावना के विस्तार में प्रथम सम्मेलन
विश्वास रखते है। और इसको प्रसारित करने में अपना प्रथम विश्व धर्म सम्मेलन सन् १९५७ मे दिल्ली में
योगदान देना चाहते है। इसका प्रतिनिधि शुल्क ५०) हुना था। जिसमे भिन्न-भिन्न धर्मों के कोई २०२ प्रति
रुपया रखा गया है। सदस्यता के लिये एक आवेदन-पत्र निधियो ने लगभग २८ दशो से आकर भाग लिया था।
प्रपित करना होगा। खुले अधिवेशन मे ५ लाख से अधिक नागरिको ने उपस्थित होकर सम्मेलन की कार्यवाहियो मे सहयोग प्रदान मुनि श्री सुशीलकुमार जी का भाषण किया था। भारत के महामाहम राष्ट्रपति जा तथा हम विश्वास करते है कि विश्व के सभी देशो, मभी उपराष्ट्रपति जी, प्रधान मन्त्री, शिक्षा मन्त्री जी तण राष्ट्रो एव मभी जातियो का विकास, धर्म एव मस्कृति के अनेकों धार्मिक पुरुषो एवं राजनेतानो ने उपस्थित हो,
* पुरुषा एवं राजनतामा न उपस्थित हो, आधार पर ही हमा है। धर्म ने ही मनुष्य को राष्ट्रभेद, सम्मेलन के उद्देश्यो को बल प्रदान किया था।
भाषाभेद, भौगोलिक एव रहन-सहन के भेदी से ऊचा उठा द्वितीय-विश्व-धर्म सम्मेलन कलकत्ते में फरवरी कर कौटुम्बिकता के धागे में पिरोया है। १९६० मे हुमा या। इस सम्मेलन में विश्व के अनेक समार की कोई विचारधाग और विश्व का कोई देशो के २५० से भी अधिक प्रतिनिधियो ने भाग लिया दुसरा वाद बिना धर्म के मानव जाति को एक नही कर था।
सकता। धर्मिक एकता के प्राए बिना मानव-जाति के