Book Title: Anekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 209
________________ १६५ विषय-सूची अनेकान्त को सहायता १०) जैन समाज के प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् श्री विषय ० | ५० जुगलकिशोर जी मुख्तार ने अपनी ८८वीं जन्म १. श्रीपद्मप्रभ-जिनस्तवन-समन्तभद्राचार्य १६३ ६३ | जयन्ति के उपलक्ष मे निकाले हा दान मे से दस रुपया २. भीतर और बाहर (कविता)-भूधग्दाम १६४ अनेकान्त को प्रदान किये है इसके लिए वे धन्यवाद के ३. भारतीय संस्कृति मे बुद्ध और महावीर पात्र है। -मुनि श्री नथमल ४. अपभ्रश का एक प्रेमाख्यानक काव्य-विलास ५) प० रूपचन्द जी गार्गीय पानीपत के सुपुत्र चि० | सुरेश कुमार के विवाहोपलक्ष मे निकाले हए दान मे से वई कहा-डा० देवेन्द्र कुमार शास्त्री पाच रुपया सधन्यवाद प्राप्त । ५. समयमार नाटक- डा०प्रेममागर जैन ५) जयपुर निवासी प० सुरज्ञानी चन्द जी न्यायतीर्थ ६. मगध और जैन संस्कृति के मुपुत्र श्री भवरलाल जी के विवाहोपलक्ष मे पाँच रुपया -डा० गुलाबचन्द चौधरी एम. ए पी. एच. डी २१२ डा० कस्तूर चन्द जी कासलीवाल को मार्फत सधन्यवाद ७ प्राचीन मथुरा के जैनों की सघ-व्यवस्था प्राप्त हुए। --डा. ज्योतिप्रमाद जैन, लखनऊ २१७ ८ जैन समाज के लिए तीन सुझाव अनेकान्त के स्थायी सदस्य बनें -प्राचार्य श्री तुलमी अनेकान्त के प्रेमी पाठको से अनुरोध है कि वे अपने १. दशवकालिक के चार शोध-टिप्पण | मित्रो को ग्राहक बनाये। साथ ही विद्वानो और समाज -मुनि श्री नथमल जी २२२/ के कार्यवाहको से निवेदन है कि वे अनेकान्त के स्थायी १० नेमिनाह चरिउ-श्रीअगरचन्द नाहटा २२६ मदस्य बने । और अपने मित्रों आदि को बनाने का यत्न ११ कल्पसूत्रः एक सुझाव करे । स्थायी सदस्य फीस १०१) रु० है। प्राशा है, -कुमार चन्द सिह दुधौरिया कलकत्ता २३० । माधर्मी महानुभाव अनेकान्त के स्थायी सदस्य बनकर १२ जैन संघ के छ अग जैन धर्म और जैन सस्कृति के विकास में अपना सहयोग -डा० विद्याधर जोहग पुरकर जावग २३१ | प्रदान करेंगे। १३ जैन सन्त श्री वीरचन्द की साहित्य-सेवा -व्यवस्थापक -डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल एम ए अनेकान्त पी. एच. डी. जयपुर वीर सेवा मन्दिर २१ दरियागंज, १४. तृतीय विश्व धर्म सम्मेलन दिल्ली। -डा० बूलचन्द जैन १५ साहित्य-समीक्षा-परमानन्द शास्त्री अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपये सम्पादक-मण्डल एक किरण का मल्य १ रुपया २५ न०१० डा० प्रा० ने० उपाध्ये अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक डा. प्रेमसागर जैन मण्डल उत्तरदायी नहीं है। श्री यशपाल जैन २३६

Loading...

Page Navigation
1 ... 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310