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मे लक्षित होती है। इसके साथ ही विभिन्न प्रसगो मे कवि ने मानसिक दशाओं का विशेष चित्रण किया है। काव्य मे कई मार्मिक भाव पूर्ण स्थल मिलते है जिनमे काय की वृत्ति विशेष रूप से रक्षा को अभिव्यक्त करने में समर्थ हुई है । समुद्र में नौका भग्न हो जाने पर मनत्कुमार की मन स्थिति का कवि ने अत्यन्त मजीव वर्णन किया है। कही कही भाषा अत्यन्त मरल प्रोर स्फीत है । यथा
हा सुमित हा गुजरवणायर,
यश का एक प्रेमास्थानक काव्य: विलासबाई कहा
भो वसुभूइ कत्वमह सायर ।
हा हि जहिहि मनवि बन्नउ
तह विणु कि करेमि हजं सुन्नजं ॥
इसी प्रकार - कहिवि धारस दोमंत वर विदुमं
कवि लहरोहि लहलंत तीरदुमं ।
कहिवि उट्ठत जावत ग्रह दुग्गमं,
कहिविप्रनेन जल वन्न नह संयमं ॥ fafभन्न स्थानो पर गीति शैली के दर्शन होते है । काव्य में कई स्थान उपन्यास जैसे रोचक तथा मधुर हैं। कादम्बरी की भाँति विभिन्न घटनाएँ प्रस्थिता मे पटिन होती है। देवी मयोग और eस्मिक घटनाम्रो की मयोजना से काव्य में आदि में ग्रन्त तक उत्सुकता और कुतूहल बना रहता है। कथा मे पाये जाने वाले
किसी न किसी रूप मे प्रेमरूपानक काव्य में भलीभाँति विकसित मिलते है। अतएव नाटकीय दृष्यों की योजना तथा वातावरण अत्यन्त प्रेरक एवं विशद परि लक्षित होता है। उदाहरण के लिए विलासवती के वियोग में अत्यन्त व्यक्ति तथा समुद्रीय नौका के भग्न हो जाने पर अकेला भटकता हुआ मनत्कुमार जब वनस्थली के सघन कुज के निकट पहुँचता है तब वह एक मधुर माधवी जनता को बाहुपाशी में बद्ध देखता है नायक के हृदय मे तुरन्त ही स्मृतियों का संचार होने लगता है और वह महकार (कलमी ग्राम) वृक्ष के नीचे बैठ जाता है। मगुन होने लगते है। देखता है उस वन मे मामने मे कोई मगनयनी नीचा मुख किये हुए चली रही है। जिसका मन मे चिन्तवन कि था वही सामने भी उसके
प्रागमन से वन के सूखे पत्तं विखर गये थे। मरमर ध्वनि
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सुनाई पड़ रही थी १ । इम प्रकार कवि ने विभिन्न स्थलो पर कुतूहल तथा उत्सुकता को बढाते हुए नाटकीय दृश्यो की सयोजना की है। उक्त प्रसंग को पढते ही विनासवनी के आगमन तथा पूर्ववर्ती घटनाओ के अनेक रगीनी चित्र यो के सामने भूलने लगते है। पाठक के मन में तरहतरह की कल्पनाएँ उठने लगती है । कवि अलबम की भाँति एक-एक कर सुन्दर विषो की झाँकी प्रकृति की रगस्थली में अकित करता जाता है। विलासवती कथा की यह विशेषता वस्तुत बहुत कम काव्यो मे परिलक्षित होती है ।
काव्य मून्कियो, कहावतो और मुहावरों से बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है । कुछ उदाहरण इस प्रकार है— प्रमिला कुम सम्प
अर्थात् योवन टटके हुए प्रमूनों की भांति होता है। वास्तव मे ना में जो मौग्भ और मधुरता होती है बड़ी वॉचन में देखी जाती है और उमी मौन्दर्य का आकर्षण होता है ।
ग्रहवा क्षयकाल समुठियाहं,
उठतिय पख पिपीलियाहं ।
अर्थात् मत्यु के समय चीटियों के भी पर निकल आते है ।
एक्कहिं दिसि मच्छ नदु विसालु,
वि बाधु वाढा करा
अर्थात् एक और विशाल नदी है और दूसरी ओर विकराल बाघ है |
इस और नदी है और उस ओर खाई । जिह सप्पु मरइ न लट्ठियावि,
गतिहि चितहि बुद्धि कावि । अर्थात् जिस प्रकार माप मेरे और लाठी भी न उस प्रकार विचार कर बुद्धिमान् मनुष्य को कार्य करना चाहिए।
१ अनहि दियहे भमतएण माहविलय प्रालगिउ दिट्ठउ । ग्रहमणहरू महारत तस्म ममीवे कुमर उबविट्ठउ | मामुह णि लोण वणम्मि,
जा अच्छइ चिनितउ मणमि । ता सुक्कह पन्नह वित्थरउ,
आयनिउ मम्मर ग्य १५, २४