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अनेकन्त
भगवान महावीर ने दीक्षा काल से निर्वाण प्राप्ति उसके उत्तराधिकारियों के सरक्षकत्व मे सारे भारत पर तक के वयालीस वर्षों में १४-१५ चतुर्मास इसी मगध मे छा गया था। जैन शास्त्रों के अनुमार श्रेणिक भगवान् नालन्दा, राजगृह और पावापुरी में बिताए थे। यहाँ महावीर का अनुयायी हो गया था। उसकी रानी चेलना की पावनभूमि को ही सौभाग्य प्राप्त है कि उन्हें केवल और उसके अनेक पुत्र जैन-मुनियो के परम भक्त थे। ज्ञान इस क्षेत्र की एक नदी ऋजु कला (वर्त० कि ऊल) जैनागमो का कुणिक और श्रेणिक का उत्तराधिकारीनदी के किनारे ज़ भक गाँव (वर्तमान जमुई का क्षेत्र) मे अजात-शत्रु जैनधर्मानुयायी था। उसका बेटा उदयभद्द प्राप्त हुआ था और उनका प्रथम उपदेशामत गजगृह या अपने पिता के समान ही पक्का जैन था। पाटलिपुत्र को पावापुरी में मगध की जनता को सुनने को मिला था। प्रकर्ष देने का श्रेय उदायि को ही है। जैनागम ग्रन्थ बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि भगवान् बुद्ध के समय आवश्यक सूत्र के अनुसार उसने नई गजधानी के मध्य मगध मे जनो के कई केन्द्र थे, जिसमें नालन्दा, राजगह एक जैन चंत्य गृह बनवाया था और अष्टमी चतुर्दशी और पावा प्रमुख थे। मझिम निकाय के अनुमार को प्रोषध का पालन करता था। उदायि ने अनेकों बार नालन्दा मे ही अनेक धनी जैन रहते थे। मगध के कई उज्जैन के राजा को पराजित किया था। प्रभावक जैन श्रावक और श्राविकाओं का नाम बौद्धग्रन्था उदायि के बाद मगध का साम्राज्य अनेक राजमे मिलता है, जैसे राजगह का सचक, नालन्दा का उपालि
नीतिक एवं धार्मिक प्रतिद्वंद्वितापो का शिकार बन गया,
नीतिक ni fre गृहपति आदि ।
पर जन-हृदय पर जैनधर्म के प्रभाव की धाग कम हो भगवान् महावीर के समय गजगह अनेक विद्वानो क्षीण हो सकी। जैन-ग्रन्थो मे उदायि के बाद और नवऔर प्रसिद्धवादियो का केन्द्र था। उनके प्रथम उपदेश नन्दो के आविर्भाव के बीच के राजापो का नाम नही को समझने और धारण करने वाला प्रथम शिष्य इन्द्र- मिलता । नन्द राजा और उनके मन्त्रीगण भी जैन थे। भूति, जो गौतम गणधर नाम से प्रसिद्ध हुआ, इसी स्थान उनका प्रथम मन्त्री कल्पक था, जिसकी सहायता से नन्दों का एक विशिष्ट ब्रह्मण था भगवान् के ग्यारह गणधरों ने क्षत्रिय राजानो का मान-मर्दन किया था। नवमे नन्द मे छह तो इसी प्रदेश के थे। कहते है कि राजगृह से का मन्त्री शकटाल भी जैन था, जिसके दो पुत्र थेभगवान् महावीर का जन्म-जन्मान्तरो से सम्बन्ध था। स्थूलभद्र और श्रीयक । स्थूलभद्र तो जैन साधु हो गया, पर और पवित्र पाँच पर्वतों से घिरा हा यह नगर अनेक श्रीयक ने मन्त्रि-पद ग्रहण किया। नन्द राजा जैन धर्मामहापुरुषों की लीला-भूमि तथा मुक्ति-प्राप्ति का स्थान नुयायी थे, यह बात मुद्राराक्षस नाटक से भी मालूम होती रहा है। केवलज्ञान प्राप्ति के समान ही भगवान् महा- है। नाटक की सामाजिक पृष्ठभूमि मे जैन प्रभाव स्पष्ट वीर को निर्वाण पद देने का सौभाग्य मगध की पावन- काम कर रहा है। नन्दो के जैन होने के अकाटय प्रमाण भूमि को ही प्राप्त है। ईसापूर्व ५२७ मे 'पावा' से सम्राट् खारवेल का शिलालेख है, जिसमे उल्लेख है कि वर्धमान मोक्ष प्राप्त हुए थे । पटना के कमलदह (गुल- नन्द गजा कलिग देश से आदिनाथ की प्रतिमा अपनी जार बाग) नामक स्थान से महाशीलवान् सुदर्शन सेठ ने विजय के चिन्ह स्वरूप मगध ले आया था। नन्दों के समाधि पाई थी।
समय मगध का साम्राज्य चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया था। महाभारत और पुराणों से विदित होता है कि नन्दों के बाद भारत की विदेशी प्राक्रमणों से रक्षा प्रागैतिहासिक-युग में मगध के प्रतापी नरेश जरासन्ध ने करने वाला, सारे भारत को एकछत्र के नीचे लाने वाला समस्त भारत पर राज्य स्थापित किया था । वह भगवान सम्राट चन्द्र गुप्त निर्विवाद रूप से जैन था। बौद्ध अनुनेमिनाथ का युग था। पुनः ईसा की छठवीं शताब्दी पूर्व श्रुति मे उसे मोरिय नामक व्रात्य क्षत्रिय जाति का युवक श्रेणिक बिम्बसार के नेतृत्व में मगध ने ऐसे साम्राभ्य बताया है। जैन ग्रन्थ 'तिलोय पण्णत्ति' मे उसे उन वाद की नीव डाली जो पीछे जैन सम्राट चन्द्रगुप्त और सम्राटों में अन्तिम कहा गया है, जिन्होने जिन-दीक्षा