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अनेकान्त
काव्य-रचना में अत्यन्त निपुण था और साधु-दीक्षा लेने कथा मे कवि की कोई मौलिक उद्भावना नहीं लक्षित के पूर्व ही उसकी प्रसिद्धि फैल चुकी थी। परन्तु 'विलास- होती है। परन्तु हँसी का वियोग-वर्णन वास्तव में कवि वईकहा" की रचना मुनिदशा में ही की गई । भीनमाल की कल्पना प्रसूत है । यथा(मिल्लमाल) कूल के शिरोमणि लक्ष्मीधरशाह के कहने खणे गएणह उडुहि खणे जलि बुडहि विरहजलणसंतावियइ पर यह कथाकाव्य लिया गया । गुजगत प्रदेश में स्वर्ण तीरलयावणे संकमति सुरसरिहि पुलिणे विरलइ भमंति अहमदाबाद के निकट धन्धुका नाम के नगर मे इम निमुणे वि सद्दु एवहि मिलनि पुरणु चक्कवाय संक्ए छलति प्रेमाख्यानक-काव्य की रचना हुई। काव्य का लेखक तो गरुय सोय अभिभूययाह हुय मरण वेबि कय निच्छयाड गुजगत प्रदेश के ही किमी भाग को अल कृत कर चुका सुरमरिहि सौति बुड्डन्ति जाम्व पक्खालिउ कुकुम सयल ताम्ब था। गुजगत का यह कवि वास्तव मे अपनी इस मुन्दर पेक्खाव परोप्परु धवलकाउ तो दोण्हवि पच्चमि जाणु जाउ रचना के कारण अमर हो गया, इसमे कोई सन्देह नहीं है।
अर्थात्-विरह की ज्वाला से संतप्त हो वह हमी इम कथाकाव्य की रचना वि०म० ११२३ को गुजरात
क्षण भर में प्राकाश में उडती और छिन-छिन मे उम के धन्धुका नाम के नगर में हुई थी। यह वही नगर है
जलाशय मे डुबकी लेती। दूसरे क्षण मे व्याकुल हो वह जिमे प्रा. हेमचन्द्र मूरि और "मपामचग्यि" के लेखक
सरोवर के तौर पर पा जाती और वन मे तथा पुलिनो लक्ष्मणगणि जमे विद्वानो को जन्म देने का मौभाग्य प्राप्त
पर व्यथित हो भ्रमण करती। हस के समान शब्द सुन हुआ था । काव्य-ग्रन्थ ३६२० श्लोक रचना प्रमाण है।
कर वह चौक पडती । किन्तु फिर चत्रवाक का मशय यह काव्य मन्धिवद्ध है । इममे ग्यारह मन्धियाँ है । पहली
होने पर वह भ्रम से दुखी हो जाती। इस प्रकार गुरुतर मन्धि मे मनत्कुमार और विलासवती का ममागम, दूसरी शोक से अभिभूत हो उस हसी ने मरण का निश्चय में विनयधर की सहायता, तीमरी में समुद्र-प्रवाम मे नौका- किया। और वह उसी समय सरसरिता के सोते मे जा भग, चौथी मे विद्याधरी-मयोग, पाचवी मे विवाह-वियोग, कर जैसे ही इबी वैसे ही उसका समस्त शरीर कुकुम छठो मे विद्या-साधना सिद्धि, सातवी मे दुर्मुखवध, पाठवी
प्रक्षालित हो गया। मे मनगरतिविजय और राज्याभिषेक, नवी मे विनयधर
__इस प्रकार उक्त पक्तियों में लेखक ने नाटकीय दृश्य मयोग, दमवी में परिवार समागम और ग्यारहवी मे
तथा वातावरण प्रस्तुत करते हुए नायक सनत्कुमार की सनत्कुमार तथा विलामवती के निर्वाण-गमन का वर्णन है।
मनोव्यथा को प्रकृति मे अत्यन्त सुन्दर विधि से चित्रित इम प्रकार विलामवती और सनत्कुमार की कथा रोमाचक
किया है और प्रकृति के माध्यम से अनेक कार्यशैली मे इस समूचे कथाकाव्य मे वणिन है।
व्यापारी का सुन्दर चित्र अकित किया है। समस्त काव्य काव्य-चयिता ने इम महाकाव्य की विषय-वस्तु को में ऐसे कई सुन्दर चित्र अकित हुए है जो बिम्बों से स्फीत प्रा. हरिभद्र सूरि कृत "समराइच्चकहा" से उद्धृत किया तथ सौन्दर्य-बोध से सयुक्त है। प्रत्येक सन्धि मे विविध है । यह कथा ज्यो-की-त्यो उद्धृत की गई है। इसलिए स्थलो पर कवि ने प्रकृति के संश्लिष्ट वर्णन के द्वाग
मनुष्य के प्रान्तरिक भावो को अभिव्यक्त किया है । काव्य १. एक्कारमहि सएहि गएहि नबीम वरिसअहिगहि ।
पढ़ते-पढते हठात् बाण भट्ट की समस्त पदावली का पोस चउदमि सोमे सिप्रा घधुबकय पुरम्मि ।।
स्मरण हो पाता है । जैसे कि-अन्तिम प्रशस्ति
लडियतडविडवनिवडंतसडियफला। कुररकारबंकल२. एसा य गणिज्जति पाएणा णट्रभेण छदेण ।
हमकोलाहल । कुचवबकायसारसियसदाउला। तवसुमहसपुण्णाइ जाया छत्तीस सयाइ वीमाह । वही
ल्लकल्लोलमालाउलविउलविलुलंत संखउलवेलाउल । ३. समगडच्चकहाउ उद्धग्यिा सुद्धमघिबघेण । कोऊहलेण एमा पसन्नवयणा विलासवई॥
प्रकृति के विविध वर्णनों में सौन्दर्य के स्पष्ट चित्र ६. अन्तिम प्रशस्ति । अकित है। शब्द-विन्यास मे कवि की सुष्टुता विशेषरूप