________________
भारतीय संस्कृति में बुद्ध और महावीर
मुनिश्री नयमल
ढाई हजार वर्ष पहले का काल धर्म-दर्शन का उत्कर्ष केवलज्ञान की उपलब्धि हई। वे वर्धमान से महावीर बन काल था। उम समय विश्व के अनेक अचलो मे महान् गए । मध्यम पावापुरी में उन्होने धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन धर्म-पुरुप अवतीर्ण हुए थे।
किया। उमी ममय भारतीय क्षितिज पर दो पृष्प अवतीर्ण
भारतीय संस्कृति हा। दोनो क्षत्रिय, दोनो गजकुमार और दोनों जनमनाक राज्य के अधिवामी। एक का नाम था मिद्धार्थ
भारतीय संस्कृति श्रमण और वैदिक इन दोनो प्रोर क का नाम था वर्धमान । मिद्धार्थ ने नेपाल की गागयों का गगम है। फिर भी कुछ विद्वान् इग विषय मे नगई में कपिलवस्तु में जन्म लिया। वर्षमान का जन्म उलझे हुए है। श्रमण मंस्कृति को वैदिक मस्कृति की वैशाली के उपनगर क्षत्रिय कुण्रपुर में हया। सिद्धार्थ के शाखा मानने में गौरव का अनुभव करते है। लक्ष्मण माता-पिता ये माया और शुद्धोदन । वर्धमान के माता शास्त्री जोशी ने लिखा है-जैन तथा बौद्धधर्म भी वैदिक पिता थे त्रिशला और गिद्धार्थ । दोनो श्रमण परम्पग के मस्कृति की ही शाम्बाएँ है। यद्यपि मामान्य मनुप्य इन्हें अनुयायी थे। दोनो श्रमण बने और दोनो ने उमका वैदिक नही मानता। मामान्य मनुष्य की दम भ्रान्त उन्नयन किया।
धारणा का कारण है मूलत इन शाखायो के वेद-विरोध मिद्धार्थ का धर्म-चक्र प्रवर्तन
की कल्पना। सच तो यह है कि जैनो और बौद्धो की तीन
अन्तिम कल्पनाग-कम-विपाक, ममार का बन्धन और सिद्धार्थ गुरु की शोध में निकले। वे कालाम के
___ मोक्ष या मुक्ति -अन्ततोगत्वा वैदिक ही है। शिष्य हए । सिद्धान्तवादी हुए. पर उन्हें मानसिक शान्ति
हिन्दू संस्कृति को वैदिक मस्कृति का विकास तथा नही मिली । वे बहाँ में मुक्त होकर उद्रक के शिष्य बने।
विस्तार मानने में बीती हुई मदी के उन अाधुनिक विद्वानो समाधि का अभ्यास किया पर उममे भी उन्हे मन्तोप
को आपत्ति है जिन्होन भारतीय मस्कृति और हिन्दू-धर्म नही हुआ। वे वहाँ से मुक्त हो गया के पाम उमवेल गाव
का अध्ययन किया है। वे टम निर्णय पर पहुँचे है कि में गए । वहाँ देह-दमन की अनेक क्रियायो का अभ्याम किया। उनका शरीर अस्थिपजर हो गया पर शान्ति नही
विद्यमान हिन्दू मस्कृति अमल में वैदिक तथा प्रवैदिक, मिली। देह-दमन में उन्हें कोई मार नही दीखा। अब वे
प्रार्य और अनार्य लोगो की विविध मरकृनियों का स्वय अपने मार्ग की शोध मे लगे। वैशाखी पूर्णिमा को
सम्मिश्रण स्वरूप है। इन मनीषियो के मन में मूर्तिपूजा उन्हे बोधि लाभ हुआ। महाभिनिष्क्रमण के ६ वर्ष बाद
करने वालो की पौराणिक मस्कृति अवैदिक एव गनाएं बुद्ध बने । माग्नाथ में उन्होंने धर्म-चक्र प्रवर्तन किया।
ममूहो द्वारा निमित मस्कृतियो की उनगधिकारिणी है
और जन तथा बौद्धधर्म वैदिकी धर्म के प्रतिद्वन्द्री हे, वर्धमान का धर्म-तीर्थ प्रवर्तन
वैदिको को परास्त करने वाले प्रबल विद्रोही है। इनके वर्धमान प्रारम्भ में ही अपने निश्चित मार्ग पर चले। कथनानुमार विमान हिन्दु मरकृति भिन्न-भिन्न विचाउन्होने कोई गुरु नहीं बनाया न केवल कठोर तप ही तपा को की चार धागों के मन में बनी है। पहली धाग और न केवल ध्यान ही किया, नप भी तपा और ध्यान है वेदो के पूर्ववर्ती अनार्यों की मूल संस्कृति की, दूमरी भी किया। उन्हे अपनी माधना-पद्धति में पूर्ण मन्तोप वेदो के पूर्ववर्ती काल के भारतीय अनार्यो पर विजय पान था। महाभिनिष्क्रमण के माडे बारह वर्ष पश्चात् उन्हे वाले आर्यों द्वाग स्थापित वैदिक मस्कृति की, नोमरी