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जैनसमाज के समक्ष ज्वलंत. प्रश्न
· कुमार चन्द्रसिंह बुधोरिया, कलकत्ता श्री रघोरिया जी ने प्रस्तुत निबन्ध में, जैन समाज के बिखरे तत्त्वों को एक सूत्र में प्राबद्ध होने का निमन्त्रण क्या है । एकता की बात नई नहीं पुरानी हैं, समय-समय पर चली है और चल-चल कर छूटती रही है। यह सच है कि प्राज की परिस्थितियां कुछ अधिक प्रतियोगात्मक हो गई है और हमें एक होना चाहिए। प्रश्न केवल महावीर जयन्ती के अवकाश का ही नहीं है पौर भी अनेक है। दिल्ली विश्वविद्यालय में 'बौद्ध चेयर' स्थापित है महावीर पीठ" नहीं, मागरा विश्वविद्यालय में जैन दर्शन का कोई स्वतन्त्र प्रश्नपत्र नहीं है, उत्तरप्रदेशीय विश्व विद्यालयों में प्राकृतभाषामों के अध्ययन-अध्यापन का कोई सुबीता नहीं। यह सब एकता के बल पर ही निर्भर है। हो कसे? ...
-सम्पादक]. "जैन-समाज के प्रतीत और वर्तमान का चित्र जब पीढी के नेतामों और कर्णधारों की शिथिलता के कारण, कभी दृष्टि के सामने खड़ा होता है तो लार्ड कर्जन के इस प्राज स्थिति विल्कुल भिन्न और विपरीत है। समाज पाज कथन की ओर कि-"हिन्दुस्तान की धन-दौलत का स्वार्थपरता, फिरकापरस्ती और दलगत भावनामो से अर्थाश जैनियों के हाथ से गुजरता है"... ध्यान अनायाम आक्रान्त है, जिसका परिणाम सारे ममाज को भोगना ही माफष्ट हो जाता है । शीघ्रता से बदलने वाली अर्थ
पड़ रहा है । जिस जैन-ममाज की जन-जीवन के क्षेत्र मे व्यवस्था और धन-सम्पदा के विकेन्द्रीकरण के इस काल
प्रमुखता रहो, प्राज वह परमुखापेक्षी बनता जा रहा है। में यह कोई बहुत अच्छी मिशाल नहीं मानी जायेगी।
देश का यह अग्रणी समाज आज लगातार उपेक्षित होता फिर भी, इस कथन से कम से कम इतना तो स्थिर हो
जा रहा है। जाता है कि, लार्ड कर्जन के जमाने में जैनियों की जो
देश मे राष्ट्रीय सरकार की स्थापना के बाद भारत की स्थिति थी उसमें भोर प्राज की स्थिति मे कितना अन्तर
विभूतियों को जयन्तियाँ एवं पुण्य-तिथियां मनायी जाने मा गया है।
लगी हैं । दिवंगत विभिन्न नेतामो की जयन्तियों पर जैन-समाज की उपलब्धियों का एक बड़ा कारण यह रहा विशेष डाक टिकट जारी होने लगे हैं और उन दिनों है कि समाज के नेतागण पुरुषार्थी जीवन व्यतीत करने सरकार की प्रोर से ड्रट्रियाँ घोषित की जा रही हैं। के साथ ही समाज के अधिकार एवं सामूहिक हित के लेकिन घोर सन्ताप की बात है कि, सारे संसार को लिए सदा सर्वदा जागरूक रहते थे । प्राधिक साधनों के अहिंसा, अपरिग्रह और समभाव का अमूल्य सन्देश प्रभाग में जो व्यक्ति अपने गुणों और हुनरों का विकास देने वाली मानवजाति की महान विभूति. भगवान नहीं कर पाते थे, समाज के सम्पन्न व्यक्तियों के ध्यान महावीर की जन्म अथवा निर्वाण तिथियों पर अखिल में यह बात माते ही तत्काल उनकी सहायता की व्यव.. भारतीय स्तर पर समारोह करने की बाते तो दूर स्था हो जाती थी। समाज के सुख-दु.ख में शामिल होने रही, हम इस परम पावन दिवस पर सरकारी उद्री के साथ ही समाज के उत्थान एवं अभ्युदय की भावनाये भी स्वीकृत नहीं करा पाये हैं। इसका प्रधान कारण उस समय समाज के नेताओं के हृदय में कूट-कूट कर समाज की शिथिलता है। भी हुई थी।
पुरुषार्थ मोर बुद्धिकौशल पर प्राधारित जो जैन. लेकिन कालान्तर के प्रभाव से हो अथवा वर्तमान समाज वाणिज्य-व्यवसाय के क्षेत्र में ही नहीं, जन-जीवन