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अनेकान्त
प्रतिमानों के नीचे उनको शासन सेविका यक्षिणियों की एक सर्वांग सुन्दर मूर्ति का चित्र इस लेख के साथ दिया मूतियां तथा उनके नाम अंकित हैं जो जैन पुरातत्व का जा रहा है । इस मूर्ति की सज्जा, परिकर और इन्द्रादिक एक दुर्लभ प्रौर महत्वपूर्ण अंग है। भगवान नेपिनाथ के तो बोलते से प्रतीत होते हैं तथा मूर्ति की सौम्यता और इस मदिर का प्रवेश द्वार भी अपनी कलापूर्ण सज्जा मनोज्ञता मे मनन्त शान्ति के दर्शन होते हैं। मति के पौर विशाल प्राकार-प्रकार के कारण अनोखा है तथा भामण्डल के चारों ओर अग्नि शिखा का अंकन "ध्यान इसी मदिर में भगवान नेमिनाथ की यक्षी देवी अम्बिका अग्नि कर कर्म-कलक सबै दहे" का स्मरण दिलाती की तदाकार सुन्दर मूर्तियाँ हैं । प्रथम तीर्थ कर की यक्षी है और अपने ढंग की प्रतितीय बन पड़ी है। चक्रेश्वरी की मर्व सुन्दर और २४ भुजा वाली अद्भुत
अन्य मदिरों तथा स्तम्भों पर यत्र तत्र उत्कीणित मूर्ति भी इमी मदिर की देव-कुलिकामों में से एक मे ,
हजारों तीर्थकर मूर्तियाँ, सैकड़ों प्राचार्य, मुनि, प्रायिका स्थापित है। इनके गर्भगृह मे नेमिनाथ को जो प्रतिमा प्रतिमाए', अनेक शासन देवियों की मतियां और कुछेक स्थापित थी वह ग्यारह हाथ ऊँची रही होगी ऐसे प्रमाण विरल कृतियां भी दर्शनीय हैं । ऐसी प्रतिमानों में शचीउपलब्ध हैं। कालान्तर में वह प्रतिमा नष्ट हो जाने पर सेवित शयन करती हुई तीर्थ कर की माता की प्रतिमा, जीर्णोद्धार के समय सत्रहवी शताब्दी मे एक पाठ फुट शास्त्रार्थ करते हुए मुनियों की प्रतिमाए तथा प्राचार्यों ऊंची शांतिनाथ की मूर्ति यहाँ प्रतिष्ठित कर दी गई है की मूर्तियां उल्लेखनीय है। जो आज भी प्रसिद्ध है।
इसी मदिर को घेर कर एक छोटा परकोटा जीर्णो- देवगढ़ अपने कोष में अनन्त सौंदर्य के प्रक्षय भण्डार द्वार के समय बना दिया गया था जिसके दोनों ओर लग को लेकर हमारी यश और गौरव गाथा का वाहक-प्रचाभग एक हजार प्रतिमाए बड़ी बेतरतीबी और कम हीनता रक बन कर खड़ा है। हमें इसकी व्यवस्था, उन्नति और से चिन दी गई है, उन तीर्थकरो तथा अम्बिका, चक्र प्रचार पर ध्यान देना चाहिए। श्रावक-शिरोमणि, दान. खरी धरणेन्ट- पटामवती प्राटि की प्रतिमा प्रमख वीर साहु शातिप्रसाद जी द्वारा बुन्देलखंड के प्रहार, जो सातवी शती ईसा पूर्व से लेकर सत्रहवी शती ईसा पपौरा, चन्देरी, कन्धार, थूबौन, बानपुर प्रादि जिन पूर्व तक की कला का प्रतिनिधित्व करती है। मेरा तो क्षत्रा पर
क्षेत्रों पर जीर्णोद्धार का कार्य हो रहा उनमें देवगढ़ भी अनुमान है कि इस दीवार के बीच में भी प्रचुर मात्रा में
शामिल है। और यहाँ काम हो भी रहा है" अपेक्षाकृत वंशावशेषों का उपयोग किया गया होगा; क्योंकि
देवगढ की महत्ता को देखते हुए श्री साहु जी के दान के जीणोद्धार के जमाने में वही सबसे सस्ता और सहज
द्रव्य का जो अंश देवगढ़ को चाहिए वह अभी उसे सुलभ पाषाण देवगढ़ में प्राप्य था, साथ ही हम खंडित
प्राप्त नहीं हो पा रहा । उनकी ओर से काम कराने के मूर्तियों के कलात्मक महत्व को भूल चुके थे।
लिए बाव विशनचद जी एक प्रोवरसियर यहाँ रह रहे मंदिर नं० २५ में लगी हुई सामग्री संम्भवत: इस हैं जो एक उत्साही और पुराने सामाजिक कार्यकर्ता क्षेत्र की प्राचीनतम सामग्री है। मेरा विश्वास है कि हैं; इस क्षेत्र का निरीक्षण यदि कभी श्रीमान साह जी
में स्थापित जिन विज तथा गायनासोर करेंगे तो निश्चित ही इस के काम में प्रगति मौर विशिइन्द्र, विद्याधर तथा शासन देवियों के गठन से उनका ष्टता हो जायगी। निर्माण काल गुप्त काल का उत्तरी भाग मोकना उचित हम और पाप भी क्षेत्र की बन्दना करके उसके होगा। इसी मंदिर के मूलनायक भगवान सन्मति की उद्धार-यज्ञ में यथा शक्ति पाहुति तो छोड़ ही सकते हैं।