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श्री दलपतिराय और उनकी रचनाएँ
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"प्रतिनिधि-वकील, मुतलक, नायब, मुसाहिब । अमान्य: वजीर, दीवान, प्रधान । सनापति-बम्बमी। शालापनि = मीरमामान, खानमामा । मुलग्यक-मुन्शी । महत्तर==नाजिर। अनलाध्यक्ष मीर भातश, नोपखाना का दरोगा। वास्तुक==मीर इमारन । नगर गौप्तिक- कोटवाल । धर्माध्यन ==काजी। गणनायक रिमालेदार-इत्यादि ।
इस के पश्चात कारग्वानों के नाम दिए गए हैं। इनकी मंख्या ३६ बतलाई गई है। इससे पता चलता है कि उस समय ३६ कारखाने होते थे। इनका शब्दकोश की दृष्टि से अत्यन्त महत्व है। हर कारखानों के नाम दर्शनीय हैं
[ ] शय्यागार==मुम्बगंज ग्वाना । [0] मजनागार:=गुमल्ल बाना, हम्माम । [३] देवायतन-तमन्बीह खाना । [४] भंपज्यागार==दवाई ग्वाना। [१] फलागार==मेवा खाना। [६] महानम==बबर्ची ग्वाना, रमौडा । [७] मुगंधागार==खुशबोई गाना । [=] प्रहरणागार-कोरमाना, मिनह ग्वाना । [6] मंन्तरागार==फराश बाना । [10] श्रीगृह -ग्वजाना । [31] मंदुग-अस्तबल, नरेला' ... - 'इस्यादि ।
उपयुक्त इन सभी का मस्कृत पद्या में विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इसी रचना का नाम "राजरीति निरूपण" है। उदाहरण के लिए.-"अबल-खिदमत" के नामों में 'प्रतिनिधि' का उल्लेख किया गया है-वे लिखते हैं
"वकील-मुनलक-नायब-मुसाहिब"प्राज्ञा भवेद्यदायत्ता हस्तलेखश्च भूपतः । जानीहि तं प्रतिनिधि राज्य सर्वस्वधूर्वहम् ॥३॥ वजीर-प्रधान-दीवान"प्रायद्वाराधिकाराः स्युर्यदायत्ताः महीभुजः । अमात्यं मन्त्रिणं विद्धि प्रधान सचिवं हि तत् ॥४॥
मुन्शी"पत्राणि प्रति पत्राणि लिखेद्यो हि नृपाशया। मुलेबक विजानीयाद् राजमन्त्र निकेतनम् ॥८॥ नाजिर'योs बरोधम्य कृत्यानि गुप्यादीनि विचेष्टते । महत्तरं विजानीयात तं प्रतीतं जितेन्द्रियम् ॥११॥ काजी"प्राचार व्यवहारेषु प्रायश्चिरोषु योजनात् । प्रवर्गयन्मान्यनमोधर्माध्यक्षः प्रकीर्तितः "२"इत्यादि ।
'प्रहल विदमन' के नामों की परिभाषा देकर-शाला भेद' निर्दिष्ट किए हैं। जैसे-मुम्बसेज खाना
"माचाः मम्तरणाय च यत्र तत्परिचारकाः। शट्यागारं विनिर्दिप्टं राजरातिविशारदः ॥३५॥ गुमल्ल म्वाना"यापङ्गनोद्वर्तनानि मचरोपम्करं जलम् । यत्र नन्मज्जनगृहं राजरातिज भाषया ॥३६॥ इत्यादि ।
इनके वर्णन करने के पश्चात्-देश विभाग तथा उपक अधिपों की परिभाषाएं प्रस्तुन की हैं जिनमें मूबा, पिरकार, प्रगणा (परगना) मौजे, बंदर, दयार, मजमूएदार का उल्लेख है
सूबा"ममुद्र गिरिपर्यन्तं की चक्रं चक्री तदीश्वरः । मदांम्तम्य विभाग. स्याद् राष्ट्र जनपदं च तत् ॥१॥ "दयार"शिपिनः कर्मकागश्च व्यापार व्यवहारिणः । चतुरंग बलो राजा यत्र नदरंगमुच्यते ॥१०॥ चक्री चक्राधिपः सम्राट राष्ट्रपालः प्रकीर्तितः । मगदलेशी महाराजः सामन्तो विषयाधिपः ॥६॥ प्रामाणि कतिचिद्यम्य वशऽमी भौमिकः स्मृतः । ग्रामणीग्राममुख्यं (चौधरी) म्याद्रीनिजी देशपंडितः ।
[कानूनगो] ॥२॥ मजमुपदार'राजवेतनदानांशान प्रामाप्ति दशवार्षिकीम् । लिखित्वा धारयद्यम्नु लेखमंग्राहको मतः ॥१३॥