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अनेकान्त
कर ज्याज्य बताया है । इसी प्रकार किसी ने इसे 'छल' केवल ज्ञान प्राप्त किया। यह घटना ऋजुबालिका की अपेक्षा
और किमी ने इसे 'मंशयवाद' की मंज्ञा प्रदान की है किन्तु से 'मन' है किन्तु भगवान महावीर ने 'पावापुरी में चल यह सब म्याहाद के हाई को नहीं समझने का ही परिणाम ज्ञान प्राप्त किया, यह 'ग्रमन' ही कहा जागा । काल भी है। प्राचीन बद्धमूल रूद धारणाएं नथा जैनेतर ग्रन्थों में जन अपेक्षित है। प्राचार्य श्री तुलसी को । मा ६२ को दर्शन के लिए किए गए कथन को ही प्रमाण घोषित करना अभिनन्दन ग्रंथ भेट किया गया। यह 'मन' है. किन दमक भी इसमें सहायक हुए हैं। अन्यथा पापेक्ष दृष्टि से 'हे' अतिरिक्त किसी अन्य काल का कथन वस्नु को प्रकट नहीं
और 'नही है। के कथन में विरोधाभास होना ही नहीं करता । द्रव्य, क्षेत्र और काल की तरह भार भी अपेजित चाहिए।
है। तरलता की भावना जल की मना को ही व्यक्त करती मर्राफ की दुकान पर किसी ने दुकानदार से पूछा- यह है, अन्यथा वाप कग या हिम भी उस अन्तर्गन होन, जेवर सोने का है न दुकानदार ने उत्तर दिया-'हां यह जो कि पानी नहीं किन्तु उपक रूपान्तर है। इस प्रकार मोने का हैं । दसरे व्यक्ति ने पूछा-'यह जेवर पीतल का है उपरोक्न 'मत-अमन' अथवा विधि-निये व पेन्निक न दुकानदार ने उत्तर दिया-'नहीं, यह पीतल का नहीं है। कथन के समान ही बम्न में एक अनेक, वाच्य अवाच्य यहाँ कथ्यमान जेबर के लिए 'यह जवर पाने का है। यह प्रादि विभिन्न धर्मों की मना विद्यमान है। कथन जितना सत्य है उतना ही यह पीतल का नहीं है यह किसी वस्तु या पदार्थ में जो अपना घटिननी है। भी माय है। एक ही जेवर में मोने की अपेक्षा से 'मन' उनका म्बीकरण ही अनेकान्त का मिन्द्रान्त है। इसका अर्थ
और पीतल की अपेक्षा में 'अमत्' अर्थात् है' और 'नहीं यह नहीं है कि जिस वस्नु में जो अपेक्षा विद्यमान न हो, है। ये दोनों कथन सत्य है । म्याद्वान इसी मिन्दान्त की उपका भी अनेकान्त के माध्यम से स्वीकरण हो । शशकशृग पुष्टि है । 'मन' है तो 'अमन' कम हो सकता है, यह या गगन पुष्प की अस्तित्व सिद्धि में अनेकान्त यारेज नहीं संदह तो ठीक ऐसा ही है कि पुत्र है तो पिता कैसे हो सकता है, क्योंकि उममें अस्तित्व का हो अमिन्द्वि है। अनेकान्त है किन्तु वह अपने पिता का पुत्र है, तो अपने पुत्र का का क्वल यथाथता का प्रटीकरण करता है। वस्तु का पिता भी है। इसमें विरोध नहीं, कंवल अपेक्षा भेद है। यथेच्छ परिवर्तन उसे अभीष्ट नहीं है।
प्रत्येक वस्तु और पदार्थ स्वराज्य, स्वतंत्र, स्वकाल और दर्शन क्षेत्र में महावीर का अनेकान्त विचार-क्रान्ति की स्वभाव की अपेक्षा से 'मन' और परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल दिशा में एक नया मोड है। श्राचार-क्रान्ति के लिए विचार
और परभाव की प्रणेता से 'अम्मन' है । इसे महजतया ही क्रान्ति आवश्यक होती है । अन. विचार-पक्ष को उदार, समझा जा सकता है। वस्त्र म्वद्रव्य रई की अपेक्षा में परिष्कृन पर संस्कृत बनाने के लिए अनेकान्त का प्रयोग 'मत्' और परदन्य मिट्टी की अपेक्षा से 'श्रमत' है। क्यों- अत्यन्त उपयुक्त एवं वास्तविक है। इसमे अनाग्रह दृष्टि कि वस्त्र, वस्त्र है मिट्टी नहीं । द्रव्य के समान वस्तु में क्षेत्र का विकास होता है और वही वस्तु मन्य एवं नत्व की परख भी सापेक्ष है भगवान महावीर ने ऋजुबालिका नदी के तट पर की वास्तविक मरणी है।
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अनेकान्त की पुरानी फाइलें
अनेकान्त की कुछ पुरानी फाइलें अवशिष्ट है जिनमें इतिहास पुरातत्व, दर्शन और साहित्य के सम्बन्ध में खोजपूर्ण लेख लिखे गए हैं। जो पठनीय तथा संग्रहणीय है । फाइलें अनेकान्त के लागत मूल्य पर दी जावेंगी, पोस्टेज खर्च अलग होगा।
___ फाइलें वर्ष ८.१, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६. की हैं अगर बापने अभी तक नहीं मंगाई हैं तो शीघ्र ही मंगवा लीजिये, क्योंकि प्रतियों थोड़ी ही अवशिष्ट हैं।
मैनेजर 'अनेकान्त' वीर सेवामन्दिर, २१, दरियागंज, दिल्ली।