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जैनधर्म-तर्क सम्मत और वैज्ञानिक
(मुनि श्री नगराज) जैन धर्म केवल मास्थानों का ही धर्म नहीं, वह पूर्ण पूर्व कर्म तो थे नहीं नो फिर सृष्टा ने एक को पशु और तर्क सम्मत और वैज्ञानिक हैं। आज के बुद्धिवादी युग में एक को मनुष्य क्यों बनाया, विश्व की प्रादि से पूर्व धर्म के नाम से जीवित रह सकने वाली कोई वस्तु है तो अनन्तकाल तक वह मृष्टा क्या रहा है उसे उसी दिन विश्व जैन धर्म है, जिसका प्रत्येक पहलू यौक्त्तिक और सहेतुक हैं। संघटना की बात यो सूझी ? जन धर्म मानता है, बीज जैन धर्म बताता है-अहिंसा हमें इमलिए मान्य है
से वृक्ष और मनुष्य से मनुष्य जिस प्रकार अाज पैदा होना कि हमारी तरह सभी प्राणी जीना ही चाहते हैं, मरना
है, वैसा ही क्रम अतीत में मदा ही रहा है और अनागत कोई नहीं चाहता। इस स्थिति में किसी को किसी की हिंसा
में भी सदा ही रहेगा, इसलिए विश्व स्वयं मे अनादि करने का अधिकार नहीं।
जैन धर्म बनाता है विश्व अनादि अनन्त है। इसका जैन धर्म बताता है-स्यावाद हमें इसलिए मान्य है कोई पुरुष विशेष या अपुरुष विशेष मृष्टा नहीं है। यदि कि अनन्त धर्मात्मक वस्तु को अभिव्यक्त करने के लिए हम विश्व का किसी एक दिन प्रादुर्भाव हुअा और उसका कोई एक साथ एक ही स्वभाव को व्यक्त कर सकते हैं। स्यासृष्टा है तो प्राणी जगत और मानव जगत में दीग्वने वाली दस्ति और म्यान्नास्ति हमें इसलिए मान्य है कि पदार्थ म्वयं ये विविधाएं निर्हेतुक ठहरती हैं, क्योंकि विश्व की प्रादि से इसी प्रकार व्यक्त होना स्वीकार करते हैं।
चौथा मन्दिर सुमतिनाथ का है, जो राम कोट के दो बड़े दरवाजे हैं जिनके साथ कुछ कोठरियों बनी हुई है। भीतर है अवध गजेटियर के अनुसार इस मन्दिर में भगवान दो पके कुए हैं जिनमें मशीन से पानी निकाला जाता है। पारर्वनाथ की दो और नेमिनाथ की ३ मूर्तियों विराज- यह दर्शनेश्वर बाग राजा दुमरावन का था, जिसे अयोध्या मान हैं।
के राजा ने खरीद लिया था। और अब अयोध्या के राजा पांचवा मन्दिर अनन्तनाथ का है, जो गोला घाट के
से जैन समाज ने खरीद लिया है । इसमें बादिनाथतीर्थकर नाले के पास एक ऊंचे टीले पर है । इसका दृश्य सुन्दर है।
ऋपभदेव की ३१ फुट ऊँची एक विशाल भव्य मूर्ति विराज दर्शनार्थी यात्रियों को चाहिये कि वे इन मन्दिरों का दर्शन
मान की गई है। उसके चारों ओर दर्शन पूजनादिका स्थान पूजनादि कर उनके उद्धार प्रादि में अपना सहयोग प्रदान
रहेगा । उक्र मूर्ति के विराजमान होने से उस स्थान की शोभा दुगणित हो गई । छतरी प्रादि के निर्माण और प्रति
प्छा कार्य सम्पन्न होने पर यह स्थान धर्म साधन के लिए दर्शनेश्वर
बहुत ही सुन्दर रहेगा। यदि समाज का पूर्ण सहयोग मिला अयोध्या का यह वर्तमान स्थान बहुत ही सुन्दर और तो यह स्थान अपने उत्कर्ष' द्वारा जैन संस्कृति के प्रचार में चित्ताकर्षक है। इसका नाम दर्शनेश्वर है जिसकी लम्बाई सहयोगी हो सकता है। जैनाचार्य श्री देश भूषण जी की चौदाई २८...गज है और जिसके चारों ओर पाठ फुट इच्छा उसे सुन्दरतम बनाने की है, वह सुदिन कब ऊँची और दो फुट चौड़ी एक पकी दीवाल बनी हुई है। आवेगा।