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जिसमें रामपुर के चौहान राजा हम्मीर के शीर्यपूर्ण कार्य शरणागत-रक्षा और अलाउद्दीन खिलओ के साथ युद्ध का वर्णन है। साहित्यिक दृष्टि से भी यह एक महत्त्वपूर्ण कृति हैया का दूसरा ऐतिहासिक महाकाव्य जयसिंह सूरिकृत 'कुमारपाल चरित्र' है | गुजरात के चालुक्य नरेश जयसिंह मिराज और कुमारपाल का जीवनवृत्त जानने के लिए यह काव्य बड़ा उपयोगी है । सन् १२८१ में सर्वानन्द सूरी ने 'जगडूचरित' लिखकर जगहूशाह की कार्ति को अमर कर दिया, जिसने अपने गुरु के मुम्ब से आने वाले अकाल की बात जानकर प्रचुर अन्न का संग्रह किया और सन् १२५६-५८ ई० के गुजरात के भीषण दुर्भिक्ष में अन्न कष्ट से मरते हुए प्राणियों को दान द्वारा बचाया था। महाकाव्य में इस त्रिवर्षीय अकाल का सुन्दर वर्णन हुआ है | बालवन्द्र सूरि कृत 'वसन्तविलाम' में गुर्जरेश मृजराज से लेकर वीरधवल तक के राजाओं का ऐतिहासिक वृतान्त है और वस्तुपाला का मंत्री होना, भृगुकच्छ के शंख के साथ वस्तुपाल के युद्ध का तथा शंख की पराजय का वर्णन है । इसके बाद वस्तुपाल की यात्राओं के वर्शन से लेकर उसकी मृत्यु तक का वर्णन है। इस महाकाव्य में भी गुजरात के इतिहास की महत्व पूर्ण सामग्री सुरक्षित है। वस्तुपाल की यात्राओं से सम्बन्धित दूसरा ऐतिहासिक महाकाव्य 'धर्माभ्युदय महाकाव्य' है जिसके प्रथम और अन्तिम वर्गो में ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त है। इन सगों में वस्तुपाल, उनके गुरु तथा अन्य जैनाचार्यो से सम्बन्धित ऐतिहासिक वृतान्त है ।
अनेकान्त
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जिनका उद्देश्य उपदेश देना या किसी मत विशेष का प्रचार करना होता है । अमरचन्द्र सूरि कृत 'बालभारत' और माणिक्य सूरि कृत 'नलायन' या 'कुबेर पुराण' पौराणिक महाकाव्य के अन्तर्गत प्राते हैं ! पुराणों की भांति ये महाकाम्य भी पत्रों और मर्गों में विभक्त है। 'बालभारत की कथा का संक्षेप में वर्णन किया गया है और 'नलायन' में नल-दमयन्ती का प्रसिद्ध कथा है। देवप्रभसूरि का 'पाचरित्र' भी पौराणिक शैली का महाकाव्य है । अधिकतर देखा जाता है कि पौराणिक महाकाव्यों का लक्ष्य केवल कथा कहना होता है अतः उनकी शैली में कवित्व कला और चमत्कार प्रियता का अभाव होता है, किन्तु ये तीनों महाकाव्य काव्यकला की दृष्टी से भी उच्च कोटि के काव्य हैं।
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इस युग में कुछ ऐसे भी महाकाव्य हैं जिन्हें पौराणिक महाकाव्य कहा जा सकता है। इन महाकाव्यों की शैली पुराणों से बहुत प्रभावित है ! पुराणों में प्रायः देखा जाता है कि उनमें कथा की अन्विति कम होती है और अवान्तर कवाओं की बहुलता तथा घटनाओं को विविधता रहती है,
१. कार्ये निजे क्रियत एत्र खरोऽपि वप्ता
२. प्रथमं दश्यते तैलं तैलधराय दृश्यते
३. सर्वोऽपि परस्याले स्थूलं पश्यति मोदकम्
४. वक्रं नाजनि रोमपि
२. तालिका ने हस्तिका
६. गगने रोपिता
झालोय युग में रोमेन्टिक शैली का प्रतिनिधि काव्य 'अभयकुमार चरित' है। इस महाकाव्य के प्रारम्भ से लेकर अन्त तक अभयकुमार ऐसे-ऐसे अद्भुत कार्य करता है कि पाठक को दांतों तले अंगुली दबानी पड़ती है। ऐसा कोई भी दुष्कर कार्य नहीं जिसे वह सम्पन्न नहीं कर सकता । महाकाव्य की कथा बड़ी जटिल, पेचीली और भ्रम्न व्यस्त है जिसे याद रखना कठिन है । प्रबन्ध भी शिथिल है। कवि ने जगह-जगह नई कथाएँ आरम्भ कर दी हैं, जिनका सम्बन्ध बाद में बड़ी कठिनता से जुड़ता है। किन्तु अभय कुमार के माहसिक कार्य तर का पता लगाना, वासवदत्ता का संगीत शिक्षा के लिए उदयन को चतुरता से लाना आदि अद्भुत कार्यो से इस महाकाव्य का रोमेन्टिक गुण बढ़ गया है, जो पाठकों के कौतूहल को बढ़ाने वाला है। मुहावरों और लोकोक्तियों का इस काव्य में भरमार है ये कालीन समाज में प्रचलित मुहावरे और लोकोक्तियों हैं जिनका प्रयोग आज भी हिन्दी में होता है । कुछ जोकोक्तियों व मुहावरे देखिए
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अपने काम के लिए गधे को बाप बनाना पड़ता है । तेल देखों, तेल की धार देखो।
दूसरे के थाल का लड्डू, हमेशा बड़ा दीखता है।
बाल टेढ़ा न कर पाना
एक हाथ से ताली नहीं बजती
आकाश पर चढ़ना