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अयोध्या एक प्राचीन ऐतिहासिक नगर
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मारा गया और उसी स्थान पर दफनाया गया। इसी कारण और बहुत कम मांसाहारी हैं। इसी से अनुमान किया जाता वह स्थान शाहजूरन का टीला कहलाता है। जिनमन्दिर है कि यह लोग पहले जैनी ही थे३ । १२ वीं शताब्दी तक वहाँ थाढे समयबाद पुनः बन गया, किन्तु बहुत समय तक के श्री वास्तव बडे प्रसिद्ध थे और ठाकुर कहलाते थे। फैजाउस मन्दिर का चढ़ावा शाहजूरन के वंशज ही लेने रहे। बाद और उसके पास पास के जिलों में अब भी ब्राह्मणों जो अब तक अयोध्या के बकमरिया टोले में रहते थे।। और ठाकुरों के बाद हिन्दू समाज के प्रतिष्ठित अंग माने जाते
इस घटना के बाद ५० वर्ष में अयोध्या पर मुसलमानों है। मुसलमानों द्वारा इनकी राजसत्ता का अन्त हो जाने का पुरा अधिकार हो गया ।
पर भी ये लोग दीवान, सूबेदार, कानूनगो प्रादि विभिन्न दिल्ली के शाही राज्य में अयोध्या
प्रशासकीय पदों पर काम करते रहे हैं । और धीरे धीरे तुर्क पठानों के शासन काल में प्रयोध्या पर अनेक मुशागिरी
मुन्शीगिरी इनका पेशा बन गया। मुसलमान शासक रहे, परन्तु उन ने अयोध्या की कोई श्री
अयोध्या के वर्तमान जैन मन्दिर वृद्धि नहीं की। सन् १२३६ और मन १२४२ ईम्बी में
अयोध्या में दिगम्बर जैनियों के १ मन्दिर विद्यमान हैं. नसीरुद्दीन नवारी और कम उद्दीन कैरान अयोध्या के शासक
जिन का सामान्य परिचय निम्न प्रकार हैंरहे हैं । जब जौनपुर में उसकी सरूतनत स्थापित हुई ना अयोध्या पर भी उसका अधिकार हो गया। यहां अनेक
प्रादिनाथ मन्दिर-यह मन्दिर स्वर्ग द्वार के पास मुसलमान फकीर हो रहे हैं। उद और हिन्दी के प्रसिद्ध मुराईटाले में एक ऊँच टीले पर है जिसे शाहजरन के टीले कवि अमीर खुशसे भी अयोध्या में प्राया और उसने वहां के नाम से पुकारा जाता है । यह वहा स्थान है जहां पर के दो प्रसिद्ध मुसलमान फकीरों (फजलप्रवास कलन्दर
मन 11६४ ईवी (वि० सं० १२५१) में मुहम्मद गौरी के और मृपा प्रासिकान) के श्राग्रह पर अपने सिपह
भाई मखदुम शाह जग्न गौरी ने सब में पहले इस प्राचीन मालार मारबाकी के द्वारा अयोध्या के प्रसिद्ध राममन्दिर को विशाल जैन मन्दिरको नष्ट किया था, और स्वयं भी काल तुडवाकर उपके स्थान पर उमी की सामग्री से मसजिद बन का प्राम बना था। वहीं उसकी कय बनाई गई थी। यह वा दी। यद्यपि अकबर के शासन काल में कुछ हिन्द व जैन मन्दिर उसी स्थान पर पुनः बनाया गया था । अतएव ऐतिमन्दिर पुन. बन गये, किन्तु पीरगंजबने उन्हें फिर तुड़वा हापिक दृष्टि से बड़े महत्व का । यह आज भी शाहज़ान दिया। मुगल शासन काल में अयोध्या का नाम फैजाबाद रख केटीले के नाम से प्रसिद्ध है। दिया गया और वह सूबा अवध की राजधानी रही।
दसरा मन्दिर अजितनाथ का है.--जो इंडोश्रा (सान अयोध्या के श्रीवास्तव नरेश
मागर, के पश्चिम में हैं। इसमें एक मति और शिलालेग्व श्री वास्तव गजानों ने अयोध्या पर नीन मी वर्षा के है। इसका जीर्णोद्वार पं. १७८१ में नबार शुजाउद्वीला लगभग राज्य किया है। सन १८७० ईम्बी में श्री पी. के खजांची दिल्ली निवासी लाला केशरीसिंह ने नबाब की कारनेगी ने लिखा था कि अयोध्या का यह परयू पारी राज्य प्राज्ञा से किया था। बंश जैनधर्मानुयायी था । अनेक प्राचीन देहर व जैन धर्मा
तीसरा मन्दिर अभिनन्दन नाथ का है, जो सराय के यतन जा अाज विद्यमान है । मूलतः इन्हा राजाश्रा क बनवाए पास है, यह भी प्रायः उसी समय का बना हुआ है। हा थे२ । इन सबका जीर्णोद्धार हो चुका है। लाला मीताराम ने अपने इतिहास में लिखा है कि-'अयोध्या के श्री
3. A Historical Sketch of Fuzabad, वास्तव कायस्थों के संपर्ग से बचे रहे, नो मथ नहीं पीत
मन् 1870 - - - - - - - - ----- - - 1-अयोध्या का इतिहास प्र. १४६
४. अवध गजेटियर भा.मन 10 नया अयोध्या का २-अयोध्या का इनिहाय पृ. १५२-१५३
इतिहास पृ. 11