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विश्व-मैत्री
[डॉ. इन्द्रचंद्र शास्त्री, एम० ए० पी० एच० डी०, दिल्ली] प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन व्यवहार के लिए दो धेरे पर यदि उसे अपने अधीन कर लिया जाय तो अधिक लाभ बनाता है । पहला "a" का घेरा होता है जहां उपका हो सकता है। फलम्यरूप पराजित कुल के सदस्यों को संबंध मित्रतापूर्ण होता है। उस घर के प्रत्येक सदस्य को गुलाम + रूप में रखा जाने लगा। यह मित्रता या सहदम्बकर उपके मन में हर्ष होता है । उपक दग्व को वह अपना योग की घोर पहला कदम था। यहाँ हत्या की अपेक्षा दम्ब मानना है और उसके मुख को अपना मुग्व । इतना शत्रु जावन को अधिक मूल्यवान मान लिया गया। है। नही म्बय दुम उटाकर भी उसे मुम्बी करना चाहना धीर-धार पराजित और विजेता का सम्बन्ध प्रजा और है। माता म्वयं भूखी रहकर सन्तान का पेट भरना चाहती राजा के रूप में परिणत हो गया। राजा रक्षक बन गया है। प्रेमी अपने प्रेमपात्र के लिये बड़े से बड़ा कष्ट उठाने और प्रजा की रक्षा करना अपना धर्म मानने लगा । दूसरी को तैयार रहता है । इस घेरे में मुम्ब का प्राधार प्राप्ति और प्रजा कर या अन्य रूपों में उसे सुख-सुविधाएं प्रदान नहीं, उ.सर्ग होता है । इमर के लिए त्याग करने और कष्ट करने लगी । वर्तमान लोकतन्त्र में यह भेद समाप्त भी हो उटाने में अानन्द प्राने लगता है।
गया। राजा और प्रजा एक ही भूमिका पर भा गये। इस महाकवि भवभूति का कथन है कि प्रियजन एक एपी प्रकार शासन के क्षेत्र में हम विषमता से समता या शत्रता वस्तु जो बिना कछ किये ही दुःख दूर कर देती है। से मित्रता की धार बद।।
और मुखों की सृष्टि करने लगती है परचा प्रेम बदलने बार पर की परिधिका दूसरा रूप भौगोलिक में कुछ नहीं चाहता। हम जिससे प्रेम करते हैं इनना ही मीमा धा । छोट-छोटे कल जब कृषि करने लगे तो वाहन है कि वह मुखा रहे । उसके मुम्ब एवं उन्नति के विभन्न स्थानों पर बम गये। इन बस्तियों को प्राम कहा समाचार सुनकर हदय तृप्त होता है।
जाता था, जिसका अर्थ है समूह । किन्तु एक ग्राम का दूसरा घेरा "पर" का है। इस घर के व्यक्तियों को
दमर ग्राम के मात्र सम्बन्ध मित्रतापूर्ण नहीं होता था। दो हम पर या शत्र मानने है उन्हें देखते ही हदय प्राशंका या
ग्रामों के मिलने को मंग्राम कहा जाता था जिसका अर्थ भय में भर जाता है। उनका उन्नति मुनकर मन में ईर्ष्या युद्ध । धार-धीरे प्रामों में मित्रता पूर्ण संबन्धों का विकास होती है और हानि मुनकर प्रसन्नना। वे हमार विरन्द्व हश्रा और 4 जनपदों के रूप में मंगठित हो गये। किन्तु कुछ करे या न कर उनका अम्नि-व ही हृदय में अशांति एक जन का दूसरे जन के साथ सम्बन्ध युट के रूप में ही उत्पन्न करता रहता है।
होना था । संस्कृत में इसे जन्म कहा जाता है जिसका 'स्व' का घंग जितना छोटा होता है व्यक्ति उतना ही ध्यप यय-दो जनों को मिलना और प्रचलित अर्थ है दुःम तथा निर्बलता का अनुभव करता है । यह घेरा ज्यो.
युन । क्रमशः उनमें भा प्रेमपूर्ण सम्बन्धों का विकाग्र हुमा ज्या विस्त होता है उसका अन्त होना जाना है। बल और राष्ट्री का रूप लिया। कछ गट प्राकृतिक मीमाएँ नथा प्रानन्द की अनुभूति बदती चली जाती है। उच्च
है। उच्च लिये हुए थे, उनका अन्य राष्ट्रों के माय अधिक संपर्क धार्मिक परम्परानों ने इसी बात पर बल दिया है कि पर
पर नही रहा । फलस्वरूप ये युद्धों में बचे रहें और अपना के घेरे को घटान हुए म्व के घेरे को बढाने जाना चाहिए। सांस्कृतिक विकाम करते रहे । उदाहरण के रूप में चीन
प्राचीन मानव छोटे-छोटे कुलों में विभक्त था और और भारत को उपस्थित किया जा सकता है । प्राकृतिक उनमें बराबर युद्ध चलते रहने थे। प्रायः विजेता कुल, मीमानों के न रहने पर राष्ट्रों में परम्पर पुद्ध चलते रहे। पराजित कुज को समाप्त कर देता था। क्रमशः उसने यह यूरोप का रक्तरंजित इनिहाम इसका पाती है। अनुभव किया कि पराजिन कुलों को मार डालने के स्थान वैज्ञानिक प्राविकारों ने भौगोलिक परिधियों को