________________
१०४
अनेकान्त
समाप्त कर दिया है । रेडियो, टेलीविजन, हवाई जहाज दय ने पर-हानि का रूप ले लिया। धर्म, राजनीति पादि मादि के कारण पादान प्रदान बन गया है कि अब कोई सभी क्षेत्रों में जो संगठन परम्पर सहयोग द्वारा विकास के देश अपने को बाझ प्रभाव से मुक्त नहीं रख सकता। फिर लिये अस्तित्व में आये थे ये विध्वंसक प्रवृत्तियों में लग भी पुरानी परिधियां हमारे मानम को घेरे हुए हैं। अब भी गये। दूसरे शब्दों में किसानों ने अन्न का उत्पादन बंद उनके आधार पर स्त्र और पर का भेद किया जा रहा है। करके विदेशी वस्तुओं का उत्पादन प्रारम्भ कर दिया। यही वर्तमान मानव की सबसे बड़ी समस्या है।
कारीगरों ने जीवन के लिये आवश्यक वम्सुए बनाना छोड जिस प्रकार जनपदों ने मिलकर राष्ट्रों का रूप ले कर हथियार बनाना शुरू किये। राजनानि के क्षेत्र में लिया, उसी प्रकार राष्ट्र मिलकर अलग-अलग गुट बना उन्होंने यन्दूक और नोपों का रूप ले लिया। मामाजिक रहे हैं और एक दूसरे के विनाश की तैयारी कर रहे हैं। क्षेत्र में परम्पर निन्दा और चुगली का धार्मिक मंत्र में प्राणविक अस्त्रों के विकास ने हम ममम्या को और भी मिथ्या प्रदर्शन, दंभ एवं प्राक्षप-प्रत्याक्षपों का। करगाणविकट बना दिया है। प्राचीन ममय में युद्ध करते समय कारी संगठन सेनाये बन गई। आवश्यकता इस बात का है प्रत्येक पक्ष अपनी जीत और दूसरों की हार की बात कि सब परिधियों को समाप्त करके पुनः सर्वोदय या पर्वसोचता था, किन्तु श्राणविक धम्त्रों ने इस धारणा को बदल मैत्री को अपना लक्ष्य बनाया जाय । कार्य-मर्यादा मीमित दिया है। समस्त विचारक यह मान रहे हैं कि यदि इनका रहने पर भी उय लक्ष्य को प्रतिक्षण मामने रहना आवश्यक प्रयोग हुमा तो जीत किमी की नहीं होगी। इस समय उद्धार है। उसे भूलने ही मानव पथभ्रष्ट हो जायगा। का एक ही मार्ग है कि परिधियों को समाप्त करके समस्त
भगवान बुद्ध का कथन है कि माता जिस प्रकार अपने 'मानवता' एक ही भूमिका पर बाजाय सर्व 'मग्री' का
इकलौते पुत्र से प्रेम करती है उसी प्रकार का प्रेम सारे पाठ सीखे।
विश्व में फैला दी। बौद्धों की महायान शाखा में इस धर्म, राजनीति, अर्थशास्त्र मादि समस्त विद्याओं का मिद्धांत का विकास महाकरणा के रूप में हुअा। वहां करुणा जन्म मानव-कल्याण के लिये हमा। किसी ने उपक अभ्यं. अर्थात परोपकार के ये स्तर बनाये गए है। सबसे नीचा तर रूप को सामने रखा, किसी ने बाह्य रूप को और किसी
किसान बाह्य रूप का बार किसी स्तर म्वार्थमुलक करुणा का है। इसका अर्थ है स्वार्थ को ने सामाजिक रूप को। किन्तु वह ही जब परिधियों से घिर लक्ष्य में रखकर दूसरे का भलाई करना । इसमें मुग्ध्य भावना गये तो असली लषय छूट गया । धर्म ने संप्रदाय का रूप प्रतिदान की रहती है। माधारण मामाजिक जीवन में ले लिया, राजनीति ने भौगोलिक अहंकार का, समाज शास्त्र परोपकार का यही रुप मिलता है। करुणा का दूसरा ने जातीय अहंकार का और अर्थशास्त्र ने वर्ग शोषण का स्तर वह है जहाँ स्वार्थ न होने पर भी दृमर को कष्ट में दूसरे शब्दों में हम यों कह सकते है कि प्रत्येक संस्था का देखकर उसे निवारण का प्रयत्न किया जाता है । दमरे का जन्म सर्वोदय के लिये हुना। वह मानव-कल्याण के लिये दुःख हमारे मन में एक प्रकार की अशांति उत्पन्न करता प्रवृत्त हुई और मर्यादिन शक्ति तथा सुविधा की दृष्टि से है. यही घेचनी दमर की महायता के लिये प्रेरित करती है। क्षेत्रविशेष को चुन लिया। किन्तु जब उसके साथ अहंकार हम इसे करुणा का मानुषी रूप कह सकते हैं । नीमरा या लोभ मिल गया तो प्रतिम्पर्धा चल पड़ी और सर्वोदय स्तर वह है जहाँ द.सरों को सहायता या परोपकार हमारा ने 'स्वोदय' का रूप ले लिया। यहाँ स्व का अर्थ व्यक्ति स्वभाव बन जाता है । किमी प्रेरणा की आवश्यकता तथा उसके द्वारा बड़ी की गई परिधि है। अहंकार की नहीं होती। बादल यह नहीं देखता कि कौन-सी जमीन मात्रा उत्तरोत्तर बढ़ती चली गई । अपनी उन्नति का लक्ष्य प्यासी है और कौन-सी मजल । बरसाना उपका स्वभाव है। धुंधला पड़ता गया और उसका स्थान दूसरे की हानि ने ले इसी प्रकार परोपकार के लिये बिना किसी बाझा प्रेरणा लिया। हमें अपने को ऊंचा उठाने की उतनी चिन्ता नहीं के सब कुछ अर्पित कर देना करुणा का सर्वोच्च रूप है। रही जितनी दूसरे को नीचे गिराने की । इस प्रकार स्वो. इसी को वहाँ करुणा कहा जाता है।