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अनेकान्त
भुजबन्द आदि पहन रखें हैं । इस प्रतिमा के पैर के नीचे कमर का लचीला और सुन्दर विन्याय प्रशंसनीय का भाग खण्डित है।
है । यह प्रतिमा चदम्त है। सामने वाले हाथ राजा भोज द्वारा प्रतिष्ठापित मूतियां
की कलाइयों में गोल, बड़े बड़े माणयुत्र, लटकते हुए उत्तरी भारत की भांति दक्षिणी भारत में भी सरम्बती तिलड़े, एवं मध्य में त्रिकोण भुजबन्ध पहना हुश्रा है । प्रतिमा निर्मित की जाती थी, जो आज भी वहां के मन्दिरों हाथों में मांकल से लटकता हुथा गृधग दिखाई दंग है। के अन्दर बाहर तथा विभिन्न गंग्रहालयों में पायी जाती है। कलाई में चूड़ियों पहने है, उसके प्रागे गृजरी और नीखी बम्बई के प्रिन्स श्राफ बेल्प म्यूजियम में रखी कुछ मध्य- अंगड़ी जैसे कंकन पहिने है। हाथों में हथयांकला उस समय कालीन सरस्वती प्रतिमा विशेष प्रसिद्ध हैं। नालन्दा से की प्रथा को द्योनित करने हैं। इनका प्रचलन अाज कज एक कांस्य निर्मित सरस्वती प्रनिगा प्राप्त हुई है जो बीणा नहीं है । हाथ के अंग एवं सभी जंगृतियों में अंगृटियाँ बजा रही है । लन्दन के ब्रिटिश म्यूजियम में भी सरस्वती स्पष्ट है । अंगुलिया लम्बा व तायी है, जिनक नाग्वन बढे की प्रतिमा सुरचित है। ये प्रतिमाएं मंगमरमर, भूरे बलुया हुए हैं । इन्हें देखने से लगता है उस समय नाग्वन बढाना पत्थर आदि से निर्मित हैं । इनके आधार पर एक लेख से सुन्दरता में शामिल था। हथेन्दी पर ग. चिर व अन्य ज्ञात होता है कि ई० १०३४ में परमार राजा भोज ने प्रति सामुद्रिक चिन्ह स्पष्ट दिग्बाई दने है । दायें हाथ में माला मानों की प्रतिष्ठापना की थी।
ब बायें हाथ में कमण्डलु है। दूसर दोनों हाथ पीछे से पल्लू ग्राम की प्रतिमा
ऊपर की ओर गये है, जिनमें चूड़े के अतिरिक्त अन्य सन् १९१६ में प्रसिद्ध पुरात ग्व-वत्ता डा. एल. पी० प्राभूषण भी है। दाहिने हाथ में अत्यन्त सुन्दर कमल. टेरिस्टोरी को बीकानेर के दक्षिण पश्चिम में पल्लू नामक । नाल है जिस पर पोइस दल कमल है। बाएं हाथ में इंच ग्राम में दो अन्यन्त सुन्दर जैन सरस्वती प्रतिमाए प्राप्त हुई लम्बी नारपत्रीय पुस्तक है । तीन जगह काष्ट फल लगा थी। ये दोनों प्रतिमाएं सफेद संगमरमर पत्थर से निर्मित कर डोरी से ग्रंथ को बांधा है । कमर में कटिसूत्र है जो खूब हैं। इन दोनों में से एक प्रतिमा बीकानेर के राजकीय भारी है इसमें झालर लटकन हवे हैं । कमर एवं नीचे की संग्रहालय में तथा दूसरी नई दिल्ली के संग्रहालय में है। ओर वस्त्र परिधान म्पष्ट हैं। नीचे घाघरे की कामदार प्रतिमाओं का प्राकार-प्रकार
मगजी भी है । वस्त्र को मय में एकत्र कर दिया है । पैरों ये दोनों प्रतिमाएं लगभग १२वीं शताब्दी की है।
में केवल पाजेब है। पर अत्यन्त सुन्दर हैं। इनकी अंगुइनमें से प्रथम प्रतिमा की ऊचाई ३ फुट ५ इंच है। और
लियाँ कुछ लम्बी व छरहरी है। यह प्रतिमा कमलामन पर सपरिकर ४ फुट ३इंच है। भगवती सरस्वती की इस मांग
खड़ी है। प्रतिमा के पृष्ठ भाग में प्रभा मण्डल बना हुश्रा सुन्दर मूर्ति के लावण्य भरे मुग्य मण्डल पर गंभीर शान्त
है। इसके ऊपर के भाग में जिनेश्वर भगवान की पदमायएवं स्थिर भाव है। देवी के नेत्र विशाल हैं, जिनमें नेत्र
नस्थ प्रतिमा विराजमान है । सरस्वती के कन्ध प्रदेश के बिन्दु म्पष्ट है । कानों में मणिमुक्रा की ४ लडी का कर्णफुल
पास दो पुष्पाचारी देव अभिवादन कर रहे है । ये भी हार शोभित हो रहा है। केश पंवार के नथा मस्तक पर जटाज़ट
___ कंकड़ भुजबन्द प्रादि ग्राभूषणों से युक्र है । मूर्ति के उभय
केकड़ भुजबन्द आदि शाभूषर सा दिग्बला कर उस पर मन्दर किरीट सुशोभित है। पन में वीणाधारिण। दवियों है जिनका श्रंग विन्यास सन्दर फुन्दनों से युक्त चोटी पीछे वाई और चली गई हैं। देवी व भावपूर्ण है तथा ये भी समस्त प्राभपणों से अलंकी नामिका आभूषण विहीन हैं। गले में पड़ी सलवटें कृत है। अत्यन्त मुहावनी प्रतीत होती है। गले में हंसली धारण विभिन्न प्रतिमानों में अन्तर किये है, जिनके नीचे झालरा पहिने है जो कि दोनों कन्धों इस सौन्दर्यमय सरम्बती प्रतिमा के लिए निर्मित प्रभा तक गयी है । इसके बाद ३ लड़ियों वाला हार पहना हुआ तोरण श्रायन्न सुन्दर है । ये दो स्तम्भ तथा उस पर स्थित है जो नाभि तक पा रहा है। उदर, नाभि और एक उल्टे अर्धचन्द्र के योग से बने हैं । सम्पूर्ण तोरण देवी