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अयोध्या एक प्राचीन ऐतिहासिक नगर
(परमानन्द शास्त्री)
अयोध्या एक प्राचीन ऐतिहासिक नगरी है, जो वर्त- वतियों के जन्म लेने का उल्लेख जैन साहित्य में पाया जाता मान में उत्तरप्रदेश राज्य के प्रवध नामक इलाके में फैजा- है। और यहां उनके अगल अलग पांच मन्दिर भी बने बाद जिले के अन्तर्गत सरयू नदी के किनारे पर अवस्थित थे । यद्यपि इस समय जैनियों के प्राचीन मंदिर वहां नहीं हैं, है। और जिसकी गणना भारत की प्राचीनतम महा नगरियों और जो हैं वे १७ वी १८ वीं शताब्दी से अधिक प्राचीन में की जाती है । जैन संस्कृति के अनुसार अयोध्या सभ्य नहीं जान पड़तं । प्राचीन मन्दिर कालदोष या साम्प्रदायिक संसार की सबसे पहली नगरी है। श्रमण संस्कृति के प्रवर्तक मनोवृत्ति के कारण विनष्ट कर दिये गये हैं । जैसा कि आगे प्राद्यतीर्थकर आदि ब्रह्मा ऋपभदेव की और अन्य चार के इतिवृत्त से ज्ञात होगा। तीर्थकरों की जन्म भूमि होने के कारण उसकी महत्ता स्पष्ट जैन साहित्य में इस नगरी का अयोध्या, अउज्झाउरि, है। इतना ही नहीं। किंतु अन्य अनेक महापुरुषों की जनक अवधा, सुकोशला, कोशलपुरी, साकेत, विनीता, इच्वाक रही है। इस कारण जैन मंस्कृति में तो उसकी महत्ता है भूमि और रामपुरी श्रादि अनेक नामों से उल्लेख किया ही। किन्तु भारतीय संस्कृति में भी उपकी महना श्रांकने गया है। । श्रादि पुगण में जिनसन ने लिखा है कि-अयोध्या योग्य है।
नगरी की रचना देवों ने की थी, और उसे वप्र प्राकार और जैनों, हिन्दुओं, बौद्धों में ही नहीं किन्तु मुसलमानों परिग्वा प्रादि से अलंकृत बनाई थी, कोई भी शत्रु उससे युद्ध में भी इसे तीर्थ रूप में माना जाता है। और यहां प्रायः नहीं कर सकते थे । वह प्रशंसनीय सुन्दर मकानों और सभी धर्मों की अनुश्र तियों का उनके साहित्य में उल्लेख ध्वजाओं से अलंकृत होने के कारण साकेत कहलाती थी३ । मिलता है । इतनाही नहीं किन्तु उन धर्मों के धर्मायतन मानों वे पताकाएं भी अपनी भुजाओं में मंकेत ही कर रही भी बहु मंख्या में पाये जाने हैं । इससे ऐसा प्रतीत होता है हैं । कोशल देश में होने के कारण सुकोशला और विनयकि वह नगरी बाद में विविध धर्म मंस्थापकों का केन्द्र बनती वाम शिक्षित एवं सभ्यलोगों से व्याप्त होने के कारणा रही है। बुद्ध और महावीर के युग में उनके अनुयायियों की विनीता कहलाती थी । इच्वाकु राजाओं की जन्मभूमि और महत्ता रही है। पश्चात विविध धार्मिक सन्तों के समय राजधानी होने के कारण इक्ष्वाकुभूमि, रामचन्द्र के जन्म के समय होने पर उनका श्रदय होता रहा है। इत्वाकु या कारण रामपुरी, और अवध प्रान्त में होने के कारण 'अवधा मूर्यवंशियों के समय जैनियों और हिन्दुओं का प्रभुत्व कहलाती थी। पउमचरिउ में अयोध्या को बारह योजन रहा है।
लम्बी और नौ योजन विस्तीर्ण बतलाया है। । हरिषेण प्राचीन काल में इस बहुन अम नक राजधानी बनने का
कथाकोश में अयोध्या और माकन नामों का अनेक कथाभी गौरव प्राप्त रहा है। नाभिराजाके प्रपुत्र और ऋषभदेव 1. विविध तीर्थकल्प पृ० २४ के पुत्र भरत सम्राट जिनके नाम से इस देश का नाम भारत- २. अरिभिः योदुन शक्या प्रादिपुराण । वर्ष पहा, अयोध्या के शासक ये । इक्ष्वाकु वंशियों और ३. प्राकेतः मह वर्तमाना माकना श्रादिपुराण १२,७५,७६ सर्य वंशी राजाओं ने यहां दीर्घ काल तक राज्य किया है। पनचरित ३, १६.. १७०
और उसके बाद अन्य अनेक वंशों के राजानों ने शामन ४. पउमचरिउ २, १३ भगवनी अाराधना १५, तिलोयकिया है। उस समय अयोध्या की समृद्धि अकल्पनीय थी। परमत्ती-म. अयोध्या का जितना महत्व जैनियों को प्राप्त है उतना ही ५. ततो गला नदी नीर वर पश्चिम दक्षिण । महस्व सनातन धर्मियों और बौद्धों आदि को भी प्राप्त है। अस्ति कोशल देशस्था माकेता नगरी परा।
अयोध्या में जैनियां के पांच नाथंकरों और दो चक्र- हरिषेण कथा कोष कथा १२, पृ. ३१२ ।