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वरबाबा जाति
उनके कथनानुसार चवरिया गोत्र को देवो चंद्रसेन है, "भुरिया
भोरे। ठोल्या गोत्र की देवी खंडवा है, पिनजिया गोत्र की देवी १२ मढया
पेंढारी । रूखमा है, बागडिया गोत्र को देशो चामुम्हा है तथा १३ साबला
गहाणकरी, भोंगाडे। भुरिया गोत्र की देवी महिकावतो है। ये नाम जैनधर्म १४ सेठया
मुधोजकर। के स्वीकार के पहले के होने चाहिये यह स्पष्ट ही है। क्यों हरसोरा कस्तूरीबाजे, नगरनाईक(चॉदूर), कि जैन शासन देवियों में ये नाम नहीं पाये जाते।
हरसुले (संगई)। दक्षिण प्रवास
कुछ स्मरणीय व्यक्ति-- उपयुक्त अनुश्रुति में वषेरबालों के दक्षिण-प्रवास अब हम वषेरवाल जाति के उन स्मरणीय व्यक्तियों का समय सं० १२४१ बताया है तथा इसके नेता पूनाजी का संक्षिप्त उल्लेख करेंगे जिन्होंने अन्धलेखन, मूर्ति-मन्दिर खटोड बताये हैं। किन्तु पूनाजी का समय विक्रम की निर्माण प्रादि कार्यों से ऐतिहासिक महत्व प्राप्त किया था। सोलहवीं शाही में निश्चित है क्यों कि वे कारंजा के भष्टारक (क) पंडित माशाधर-बघेरवास जाति का सर्वसोमसेन के शिष्य थे। इनके साथ वषेरवालों के १७ प्रथम उल्लेख पंदित प्राशावर जी ने किया है। उन्होंने गोत्रों के लोग दक्षिण पाए थे। इस समय इनमें दो गोत्र अपनी जाति के इस नाम का संस्कृतीकरण 'म्यारवाखान्यवर नष्ट हो चुके हैं-१५ गोत्र अभी भी दक्षिण में हैं, इन इस रूप में किया है। सागार धर्मामृत, अनगार धर्मामत, की जनसंख्या १२०. है। महाराष्ट्र की रीति के अनुसार जिनयज्ञकरूप, त्रिषष्ठिस्मृति शास्त्र इत्यादि . संसात इन लोगों ने स्थान या व्यवसाय बतलाने वाले उपनाम ग्रंथों के रचयिता पंडित प्राशाधर का विस्तत परिचय पं. धारण कर लिये हैं तथा गोत्र नामों का व्यवहार प्रायः नाथूरामजी प्रेमी ने दिया है (जैन साहित्य और इतिहास छोड़ दिया है। प्रत्येक गोत्र के जो अलग अलग उपनाम पृ. ३४२-३५८)। उनके ग्रंथों का रचनात्मक सं. इस प्रकार हुये हैं उनकी सूची इस प्रकार है
१२८५ से सं० १३.. तक का है। गोत्रनाम
उपनाम
(ख) पंडित सोमदेव-श्रु तमुनि कृत त्रिभंगीसार , खटोड
जोहरापुरकर, महाजन(कारंजा) की संस्कृत टीका के कर्ता पंडित सोमदेव भी वषेरबान जाति २ खंडरिया
प्राग्रेकर, कलमकर (जिंतूर) के थे। ये अभिदेव तथा विजेणी के पुत्र थे। अतमुनि का खंडारे, खोरणे, खोखापुरे समय सं० १३१८ में ज्ञात है अतः सोमदेव उस समय
भीसीकर, रुईवाले। के बाद के लेखक है (जैन साहित्य और इतिहास ३ गोवाल
संगई (अंजनगाँव)। . चबरिया
खेडकर, चवरे, डोणगांवकर, (ग) जीजासाह-ये चित्तौब के प्रसिद्ध कीर्तिस्तम्भ जिंतूकर, देऊळगाँवकर, के निर्माता थे। इन के विषय में एक विस्तृत शिलालेख
देवलसी, रायबागकर। मुनि काम्तिसागर जी में प्रकाशित किया था अनेकान्त वर्ष १ जुगिया जोगी, किल्लेदार।
८ पृ० १४२) । दुर्भाग्य से उस का समय निर्देश ठीक ठोक्या
कलमकर (कारंजा), ठबनी, नहीं है। एन्युअल रिपोर्ट माफ इन्डियन एपिग्राफी सम सबाईसंगई।
१९५४-१५ में उदयपुर म्युजियम से प्राप्त एक खेसका • नंगोत्या गरिने।
सार इस प्रकार दिया है इस लेख में बघेरवाल जाति के - पितलिया नांदगांवकर, दर्यापूरकर । जीजाक द्वारा एक स्तम्भ की स्थापना का उल्लेख है। इस बागडिया मिश्रीकोटकर।
खेल की मुख प्रति देखने पर हमें यह वाक्य इस प्रकार १.बोरखंडया मगरनाईक (कारंजा), महाजन मित्रा-वरवास साहजीजाकेन कारितः स्वभः । चित्तोड़
(मागपुर), मालदी। केकीतिस्तम्भ का शिखर पिछली शताब्दी में राया