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महापंडित आशाधर - व्यक्तित्व एवं कृतित्व
(पं० अनूपचं द न्याय तोर्थ 'साहित्य रत्न' जयपुर )
गजस्थान की वीर भूमि को जिस प्रकार युख भूमि में और महाराजा पृथ्वीराज चौहान पर विजय प्राप्त की उसी अंतिम दम तक डटे रहने वाले बलवान योद्वानों को जन्म देने समय अजमेर पर भी गौरी मे अधिकार किया था । इस का गौरव प्राप्त है उसी प्रकार जन्म भर अथक परिश्रम कर आक्रमण के फलस्वरूप देहली और अजमेर में तथा राज ने वाले मच्च माहित्य वियों को जन्म देने का भी सौभाग्य स्थान में चारों ओर अराजकता मच गयी । माघे दिन प्राप्त है। प्राकृत संस्कृत अपभ्रश हिन्दी एवं राजस्थानी मुसलमानों के प्राक्रमण होते थे और जानमाल की सुरक्षा भाषा के अनेक विद्वानों ने इस प्रदेश की धरा पर जन्म का कोई प्रबंध नहीं था । प्राशावर ने जब यहां चारों ओर लेकर तन मन धन से मां भारती की अमूल्य संथा की है अशान्ति देखी तो परिवार सहित धारानगरी बखे गये। तथा अपनी मौलिक रचनाओं, भाषान्तर किये हुए ग्रन्थों इन की प्रारंभिक शिक्षा पहिले माखनगद तथा पीके धारा में तथा अन्य अन्य प्रकार से यहां के ज्ञान भण्डारों को ही हुई। धारानगरी उस समय साहित्य एवं संस्कृतिका समृद्ध बनाया है राजस्थान में ये ज्ञान भण्डार इतने अधिक केन्द्र थी। और इसीलिए इन्होंने भी वहीं व्याकरण पूर्व महत्वपूर्ण हैं कि आज भी इनमें सब मिलाकर लक्षाधिक न्याय शास्त्र का गंभीर अध्ययन किया। हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहीत हैं। राजस्थानी साहित्य कारों ने धारा नगरी से माहित्य एवं संस्कृतिका परिज्ञान एवं पुराण, चरित्र, काव्य व्याकरण कोष, नाटक, प्रायुवंद प्रादि नलकच्छपुर (नालछा) से माथु जीवन प्राप्त हुआ था। सभी महत्वपूर्ण विषयों पर अनेक भाषानों में रचनायें की उनके हृदय में धारा नगरी में ही जैन धर्म एवं साहित्य सेवा है जिस से भारतीय संस्कृति को जीवित रखने में पर्ण योग का उत्कृष्ट भाव पैदा हो गया था किंतु वहां का वातावरण मिला है। इन्हीं साहित्य सेवियों में १३ वीं शताब्दी के उपके नायक देख वहाँ नहीं रह सके औ महा पं० श्राशाधर जी थे जिनकी साहित्यिक संवानों का विवश होकर नलकाछपुर जाना पड़ा। वहाँ का मेमिनाथ सभी भारतीयों को गर्व होना चाहिए।
चयालय उनकी पाहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया पं. श्राशाधर जी संस्कृत साहित्य के अपार दर्शी वे लगभग ३५ वर्ष तक मालछा में ही रहे और वहीं एकनिष्ठा विद्वान थे। ये माल गढ़ (मेवार) के मूल मिधास थे में साहित्य पर्जना में लग गये। वे निर्मीक विद्वान थे तथा किंतु मेवाह पर मुसलमान बादशाह शहाबुद्दीन गौरी के किमी की कभी परवाह नहीं करते थे। और जैसा भी माक्रमणों से त्रस्त होकर मालवा की राजधानी धारामगरी पागम साहित्य में लिखा है उसके अनुसार अपने इष्टमित्रों में अपने स्वयं एवं परिवार की रक्षा के निमित्त अन्य लोगों को चलने का प्राग्रह करते थे। यदि उन्होंने गृहस्थों के लिये के साथ आकर बस गये थे। पं० श्राशाधर वोरवाल जाति के सागार धर्मामृत जिला तो मुनियों के लिये भी माधार श्रावक थे। इनके पिता का नाम सल्लक्षण एवं माता का व्यवस्था उन्हें करनी पड़ी और उनके लिये अनगार धर्मा. माम श्री रत्नी था। सरस्वती इनकी पत्नी थी जो बहुत मृत लिम्वकर इस क्षेत्र में प्रागे होने वाले प्राचार्यों मुनियों सुशील एवं सुनिता थी। इनके एक पुत्र भी था जिसका नाम एवं श्रावकों को एक नयी दिशा दी। म्याकरण और न्याय छाहरू था। इनका जन्म किस संवत् में हुड़ा यह नो निर शास्त्र के असाधारण विद्वान् थे तथा प्रायुर्वेद एवं ज्योतिष चित रूप से नहीं कहा जा सकता किंतु ऐतिहासिक तथ्यों जैसे विषयों पर भी उनका पूर्ण अधिकार था। काव्य रचना के माधार पर उनका जन्म वि.सं. १२३४-३५ के जंगल में तो वे अत्यधिक पारंगत थे। उन्हें जिस किसी विषय पर भग अनुमानित किया जाता है। महाबुद्दीन मौरी ने वि. भी कोई रचना लिखनी होती ये निकालने और वह भी सं. १२५के पास पास जब दिल्ली पर माक्रमण किया अद्वितीय रचना होती । वास्तव में पाशाधर जैसा गमीर